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Thursday, September 29, 2016

बुद्धिमानो के लिए सन्देश

बुद्धिमानो के लिए

1 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के अवतार श्री कृष्ण जी का जन्म जेल में ही हुआ और पूरी उम्र उनकी युद्ध जितने में ही निकल गयी। महाभारत जैसा युद्ध जिसमे करोड़ों लोग मारे गए जिसमे उनके पक्ष की भी बहुत सी नेक आत्माएं मृत्यू को प्राप्त हुई थी, क्या वो उन युद्धों को टाल नही सकते थे। समझिये परमात्मा की वाणी से:-

श्री कृष्ण गोवर्धन धारयो, द्रोणागीरि हनुमान।
शेसनाग सब पृथ्वी धारी, इनमे कौन भगवान।।

परमात्मा कबीर जी कहते हैं के आपके द्वारा प्रचलित कथाएँ ही कहती हैं के श्री कृष्ण और हनुमान ने पहाड़ उठाये।और आप ही कहते हो के शेसनाग के फैन पे सारी पृथ्वी है तो भगवान कौन हुए धरती के एक छोटे से पहाड़ को उठाने वाले या पूरी पृथ्वी उठाने वाला?


2 सतोगुण प्रधान विष्णु जी के दूसरे अवतार श्री रामचंद्र जी अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए रोते रहे।उसी समुन्दर को जहाज से पार करके एक राक्षस सीता माता को उठा ले गया लेकिन भगवान पुल बना रहे हैं।

परमात्मा की वाणी है :-
समुदर पाट लंका गए, सीता के भरतार।
उन्हें अगस्त ऋषि पिय गए, इनमे कौन करतार।।

जिस समुदर को पार करने के लिए श्री रामचंद्र जी ने पुल इतनी मुश्किल से बनाया उस एक समुद्र नही बल्कि सातों समुद्रों को एक अगस्त नामक ऋषि अपनी सिद्धि से केवल एक घूंट में पी गए थे तो इन दोनों में बड़ा कौन हुआ?


मालिक की दूसरी वाणी:-
काटे बंधन विपत्ति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हो रे नर प्राणिया, वो गरुड़ बड़ो के राम।।

जिस गरुड़ ने मेघनाथ के नागपास में फंसे श्री राम जी और लक्षमण की जान बचाई वो बड़े हुए या राम?

अब आइये संतों पे
आधरणीय नानक जी को उस समय लोगों ने भला बुरा कहा 13 महीने तक उस संत को जेल में रखा और आज सब मानते हैं के वो परमात्मा की प्यारी आत्मा थे।लेकिन उस समय हम उनके जीते जी उनका आदर ना कर सके।

इशा मसीह जी को उस समय लोगों ने शरीर में कीलें ठोक ठोक के मारा आज आधा विश्व उनको मानता है।।लेकिन उस समय उनका आदर ना कर सके

वो भी मुर्ख है जो कहता है की राम कृष्ण अवतार नही थे। वो तीन लोक के भगवान विष्णु के अवतार थे ।लेकिन हमे पूर्ण मोक्ष के लिये इनसे ऊपर के भगवान की तलास करनी है।

ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ें और किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप किसी भी संत रामपाल जी महाराज के शिष्य से मिलिए। हम सब परमात्मा के कुते आप पूण्य आत्माओं तक इस ज्ञान को पहुंचाने में हर संभव मदद के लिए तैयार बैठे है।

सत साहेब

Tuesday, June 28, 2016

नारद मुनि ने भगवान विष्णु जी श्राप देना

नारायण नारायण कहने रट लगाने वाले नारद मुनि ने ही अपने ही भगवान विष्णु जी को श्राप दे दिया की आप इक महिला के वियोग में इक जीवन बिताओगे।

पढ़िए पुराण की कथा ज्यो की त्यों...

श्री नारद बड़े ही तपस्वी और ज्ञानी ऋषि हुए जिनके ज्ञान और तप की माता पार्वती भी प्रशंसक थीं। तब ही एक दिन माता पार्वती श्री शिव से नारद मुनि के ज्ञान की तारीफ करने लगीं। शिव ने पार्वती जी को बताया कि नारद बड़े ही ज्ञानी हैं। लेकिन किसी भी चीज का अंहकार अच्छा नहीं होता है। एक बार नारद को इसी अहंकार (घमंड) के कारण बंदर बनना पड़ा था। यह सुनकर माता पार्वती को बहुत आश्चर्य हुआ । उन्होंने श्री शिव भगवान से पूरा कारण जानना चाहा। तब श्री शिव ने बतलाया। नारद को एक बार अपने इसी तप और बुद्धि का अहंकार (घमंड) हो गया था । इसलिए नारद को सबक सिखाने के लिए श्री विष्णु को एक युक्ति सूझी।

हिमालय पर्वत में एक बड़ी पवित्र गुफा थी। उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थीं। वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यन्त सुहावनी लगी। वहां पर के पर्वत, नदी और वन को देख कर उनके हृदय में श्री हरि विष्णु की भक्ति अत्यन्त बलवती हो उठी और वे वहीं बैठ कर तपस्या में लीन हो गए । नारद मुनि की इस तपस्या से देवराज इंद्र भयभीत हो गए कि कहीं देवर्षि नारद अपने तप के बल से उनका स्वर्ग नहीं छीन लें।

इंद्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिये कामदेव को उनके पास भेज दिया। वहां पहुंच कर कामदेव ने अपनी माया से वसंत ऋतु को उत्पन्न कर दिया। पेड़ और पत्ते पर रंग-बिरंगे फूल खिल गए कोयले कूकने लगीं और भौंरे गुंजार करने लगे। कामाग्नि को भड़काने वाली शीतल.मंद.सुगंध सुहावनी हवा चलने लगी। रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं।

किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद मुनि पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद मुझे शाप न दे दें। इसलिए उन्होंने श्री नारद से क्षमा मांगी। नारद मुनि को थोड़ा भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को क्षमा कर दिया। कामदेव वापस अपने लोक में चले गए।

कामदेव के चले जाने पर नारद मुनि के मन में अहंकार (घमंड) हो गया कि मैंने कामदेव को जीत लिया। वहां से वे शिव जी के पास चले गए और उन्हें अपने कामदेव को हारने का हाल कह सुनाया। भगवान शिव समझ गए कि नारद को अहंकार हो गया है। शंकरजी ने सोचा कि यदि इनके अहंकार की बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए उन्होंने नारद से कहा कि तुमने जो बात मुझे बताई है उसे श्री हरि को मत बताना।


नारद जी को शिव जी की यह बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने सोचा कि आज तो मैने कामदेव को हराया है और ये भी किसी को नहीं बताऊं । नारद जी क्षीरसागर पह़ुंचे गए और शिव जी के मना करने के बाद भी सारी कथा उन्हें सुना दी। भगवान विष्णु समझ गए कि आज तो नारद को अहंकार (घमंड) ने घेर लिया है। अपने भक्त के अहंकार को वे सह नहीं पाते इसलिए उन्होंने अपने मन में सोचा कि मैं ऐसा उपाय करूंगा कि नारद का घमंड भी दूर हो जाए और मेरी लीला भी चलती रहे।

नारद जी जब श्री विष्णु से विदा होकर चले तो उनका अभिमान और भी बढ़ गया। इधर श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी के रास्ते में एक बड़े ही सुन्दर नगर को बना दिया । उस नगर में शीलनिधि नाम का वैभवशाली राजा रहता था। उस राजा की विश्व मोहिनी नाम की बहुत ही सुंदर बेटी थी, जिसके रूप को देख कर लक्ष्मी भी मोहित हो जाएं। विश्व मोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी इसलिए कईं राजा उस नगर में आए हुए थे।

नारद जी उस नगर के राजा के यहां पहुंचे तो राजा ने उनका पूजन कर के उन्हें आसन पर बैठाया। फिर उनसे अपनी कन्या की हस्तरेखा देख कर उसके गुण-दोष बताने के लिया कहा। उस कन्या के रूप को देख कर नारद मुनि वैराग्य भूल गए और उसे देखते ही रह गए । उस कन्या की हस्तरेखा बता रही थी कि उसके साथ जो विवाह करेगा वह अमर हो जाएगा, उसे संसार में कोई भी जीत नहीं सकेगा और संसार के समस्त जीव उसकी सेवा करेंगे। यह बात नारद मुनि ने राजा को नहीं बताईं और राजा को उन्होंने अपनी ओर से बना कर कुछ और अच्छी बातें कह दी।

अब नारद जी ने सोचा कि कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए कि यह कन्या मुझसे ही विवाह करे। ऐसा सोचकर नारद जी ने श्री हरि को याद किया और भगवान विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। नारद जी ने उन्हें सारी बात बताई और कहने लगे, हे नाथ आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दो, ताकि मैं उस कन्या से विवाह कर सकूं। भगवान हरि ने कहा हे नारद! हम वही करेंगे जिसमें तुम्हारी भलाई हो। यह सारी विष्णु जी की ही माया थी । विष्णु जी ने अपनी माया से नारद जी को बंदर का रूप दे दिया । नारद जी को यह बात समझ में नहीं आई। वो समझे कि मैं बहुत सुंदर लग रहा हूं। वहां पर छिपे हुए शिव जी के दो गणों ने भी इस घटना को देख लिया।

ऋषिराज नारद तत्काल विश्व मोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गए और साथ ही शिव जी के वे दोनों गण भी ब्राह्मण का रूप बना कर वहां पहुंच गए। वे दोनों गण नारद जी को सुना कर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुंदर रूप दिया है कि राजकुमारी सिर्फ इन पर ही रीझेगी। उनकी बातों से नारद जी मन ही मन बहुत खुश हुए। स्वयं भगवान विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गए। विश्व मोहिनी ने कुरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजा रूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी।

मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी । राजकुमारी द्वारा अन्य राजा को वरमाला डालते देख वे परेशान हो उठे। उसी समय शिव जी के गणों ने ताना कसते हुए नारद जी से कहा – जरा दर्पण में अपना मुंह तो देखिए। मुनि ने जल में झांक कर अपना मुंह देखा और अपनी कुरूपता देख कर गुस्सा हो उठें। गुस्से में आकर उन्होंने शिव जी के उन दोनों गणों को राक्षस हो जाने का शाप दे दिया। उन दोनों को शाप देने के बाद जब मुनि ने एक बार फिर से जल में अपना मुंह देखा तो उन्हें अपना असली रूप फिर से मिल चुका था।

नारद जी को अपना असली रूप वापस मिल गया था। लेकिन भगवान विष्णु पर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था , क्योंकि विष्णु के कारण ही उनकी बहुत ही हंसी हुई थी। वे उसी समय विष्णु जी से मिलने के लिए चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी जिनके साथ हो गई।

उन्हें देखते ही नारद जी ने कहा आप दूसरों की खुशियां देख ही नहीं सकते। आपके भीतर तो ईर्ष्या और कपट ही भरा हुआ है। समुद्र- मंथन के समय आपने श्री शिव को बावला बना कर विष और राक्षसों को मदिरा पिला दिया और स्वयं लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि को ले लिया। आप बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। हमेशा कपट का व्यवहार करते हो। हमारे साथ जो किया है उसका फल जरूर पाओगे। आपने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है , इसलिए मैं आपको शाप देता हूं कि आपको मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा । आपने हमें स्त्री से दूर किया है , इसलिए आपको भी स्त्री से दूरी का दुख सहना पड़ेगा और आपने मुझको बंदर का रूप दिया इसलिए आपको बंदरों से ही मदद लेना पड़े।


नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया।माया के हट जाने से अपने द्वारा दिए शाप को याद कर के नारद जी को बहुत दुख हुआ किन्तु दिया गया शाप वापस नहीं हो सकता था। इसीलिए श्री विष्णु को श्री राम के रूप में मनुष्य बन कर अवतरित होना पड़ा।


शिव जी के उन दोनों गणों ने जब देखा कि नारद अब माया से मुक्त हो चुके हैं तो उन्होंने नारद जी के पास आकर और उनके चरणों में गिरकर कहा हे मुनिराज! हम दोनों शिव जी के गण हैं। हमने बहुत बड़ा अपराध किया है जिसके कारण हमें आपसे शाप मिल चुका है। अब हमें अपने शाप से मुक्त करने की कृपा करें ।

नारद जी बोलें मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता इसलिए तुम दोनों रावण और कुंभ कर्ण के रूप में महान ऐश्वर्यशाली बलवान तथा तेजवान राक्षस बनोगे और अपनी भुजाओं के बल से पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करोगे। उसी समय भगवान विष्णु राम के रूप में मनुष्य शरीर धारण करेंगे। युद्ध में तुम दोनों उनके हाथों से मारे जाओगे।

Sunday, June 26, 2016

काल गुप्त रूप से किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करता है

काल गुप्त रूप से किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करता है - पवित्र विष्णु पुराण में प्रमाण
काल भगवान जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा।
विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।
1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।
2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

Wednesday, April 27, 2016

प्रश्न: गीता का ज्ञान किसने दिया। प्रमाण सहित ज्ञान दें।


प्रश्न: गीता का ज्ञान किसने दिया। प्रमाण सहित ज्ञान दें।

उत्तर:गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं, बल्कि उनके शरीर में सूक्ष्म रूप से प्रेतवत् प्रवेश करके उनके पिता "काल रूपी ब्रम्ह" ने दिया। काल भगवान, जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने  व्यक्त रूप में (मानव सदृष्य अपने वास्तविक रूप में) सबके सामने कभी नहीं आऊँगा। (गीता 7.23) उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा।जिसे पूर्ण ब्रम्ह के पूर्ण संत के सिवा कोई नहीं जान सका। 

प्रमाण:

विष्णु पुराण में दो जगह प्रकरण है कि काल भगवान महाविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित), चतुर्थ अंश, अध्याय दूसरा, श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश, अध्याय तीसरा, श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

3. श्रीकृष्ण जी काल नहीं थे। वे विष्णु जी के अवतार थे।अगर वे गीता ज्ञान बोलते तो अ.11.32 में यह नहीं कहते कि "मैं काल हूँ" और सबका नाश करने के लिए प्रकट हुआ हूँ। वे तो अर्जुन के समक्ष प्रकट हीं थे।और विष्णु जी का अंश थे जो काल नहीं हैं।इसका सीधा मतलब हुआ कि गीता का ज्ञान "काल ब्रम्ह" ने दिया श्रीकृष्ण जी ने नहीं।

4. तीनों देव ब्रम्हाजी,विष्णुजी एवं शिवजी की माता भगवती दुर्गा जी है। इसीलिए इन्हें अष्टांगी, प्रकृति, त्रिदेव जननी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसलिए वे विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण जी के भी माता हुए।अतः प्रकृति यानि दुर्गाजी श्रीकृष्णजी की पत्नी नहीं हो सकती।क्योंकि वे इनकी माता हैं। परंतु गीता 17.3-5 में गीता ज्ञान दाता ने प्रकृति यानी दुर्गा जी को अपनी पत्नी बताया हैं।जिससे पुनः स्पष्ट हो जाता है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं दिया।बल्कि उनके पिता काल ब्रम्ह ने दिया।

प्रमाण:
गीता 17.3-5 "इस लोक में जितने भी जीव हैं प्रकृति (दुर्गा) तो उनकी माता है और मैं (गीता ज्ञान वक्ता) उनकी योनि में वीर्य स्थापित करने वाला पिता हूँ"। इस श्लोक से प्रमाणित हो जाता है कि

a). श्रीकृष्णजी अर्थात् विष्णुजी जी की माता प्रकृति यानी दुर्गा जी है।

b) उनके पिता ब्रम्ह हैं। काल रूपी ब्रम्ह। जिन्हें महाविष्णु, महाब्रम्हा, महाशिव या सदाशिव के नाम से भी जाना जाता है।जो त्रिदेव यानी ब्रम्हा विष्णु, एवम् शिव के पिताजी हैं।

c). गीता का ज्ञान ब्रम्ह यानी कालरूपी ब्रम्ह ने दिया जो अ.17.3-5 में दुर्गा जी को अपनी पत्नी बता रहा है। अ. 8.13 में अपने को ब्रम्ह बता रहा जबकि अ. 11.32 में अपने की काल कहा है। 

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जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचानो और नाम उपदेश लेकर अपना मानव जीवन सफल कर लो
..
             सत साहेब
: इस पोस्ट को आगे  आगे  शेयर   किजिये.  
     न जाने कौन  इंतज़ार  कर रहा  है!!!!!!....

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा..

कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो ने लूठा अर्जुन को भी पीटा.. दुनिया के लोग कृष्ण की फोटो के सामने अपनी अपने बच्चो की जान की भीख मांगते है जब कृष्ण जी शरीर मे थे जब वह यादवो और अभिमन्यु को नही बचा पाये तुम लोग तो फोटो को भगवान माने बैठे हो तुम्हे कैसे बचायेगे.. 

लोग शिव को भगवान मानते है एक बार भष्मासूर ने तप किया शिव से भष्म कडा लेकर शिव के पीछे भाग लिया.. शिव भगवान डर कर आगे आगे भाग रहे थे और उनका पुजारी उनको मारने के लिए उनके पीछे भाग रहा था. बताओ शिव खुदकी रक्षा नही कर सकते अगर शिव को भी मरने से डर लगता हैा पार्वती हवन कुंड मे कूदकर मर गई थी शिव तो अन्तर्यामी भगवान थे उनको क्यो मालूम नही हुआ.. क्यो पार्वती को नही बचा पाये.. जो अपनी पत्नी की रक्षा नही कर सकते वह दूसरो की क्या करेगे.. केदारनाथ मे सैकडो लोग मारे गए शिव क्यो नही बचा पाये.. हरिद्वार 1991 मे नीलकंठ पर हजारो लोग मारे गए थे एक बार हरिद्वार मे 2500 साधु कुम्भ के मेले मे आपस मे कट कर कर मर गये शिव क्यो नही बचा पाये?? भगवान थे तो क्यो नही बचाया ????

--> राम को भगवान मानते हो राम को ये नही पता मेरी सीता को कौन उठा ले गया ?? 
सीता का पता लगाने के लिए भी सेना का सहारा लिया काहे का भगवान??? 
सीता को रावण उठा ले गया..राम एक सीता की रक्षा नही कर पाया तुम्हारी क्या करेगा.. 14 वर्ष जंगल मे भटकने की क्या जरूरत थी.. अगर जंगल मे राक्षसो को मारना था तो वैसे जाकर भी मार सकते थे.. ये वनवासी का ढोंग करने  की क्या जरूरत थी.. राम जी तो भगवान थे पहुच जाते सीधे लंका मे मार देते रावण को... क्या जरूरत थी सीता को 12 साल तक रावण की कैद मे डालने की... 

हिन्दू धर्म के मुर्खो जैसे राम ने रावण को मारने के लिए अपनी प्रिय सीता को उसकी कैद मे डाला था और करोडो सैनिको का बलिदान दिया ... 

ठीक इसी तरह रामपाल जी महाराज ने इस संसार से काल के अज्ञान को हराकर पूर्ण परमात्मा के ज्ञान को जीताने के लिए अपने अतिप्रिय शिष्यो को कुछ समय के लिए पुलिस की जेल मे डाला और खुद भी चले गये.. जैसे सीता माता के लिए करोडो सैनिको ने बलिदान दिया.. ठीक इसी तरह इस विश्व कल्याण के लिए सतलोक आश्रम मे कुछ भगत बहनो ने बलिदान दिया.. आने वाले समय मे दुनिया उनको याद करेगी.. किसान को ज्यादा से ज्यादा लोगो का पेट भरने के लिए बीज को मिटटी मे मिलाना पडता हैा इसी तरह रामपाल जी महाराज ने विश्व कल्याण के लिए अपने शिष्यो और खुद को जेल मे ले जाकर मिटटी मे मिला दिया है लेकिन भविष्य मे इस विश्व के लोग रामपाल जी को पलखो पर बैठायेगे जब उनको सच्चाई का पता चलेगा..
कबीर - जब कलयुग 5500 वर्ष बीत जाये, 
तब एक महापुरूष फरमान जग तारन को आये..

तो कलयुग 5500 वर्ष बीत चुका है रामपाल
जी महाराज आ चुके हैं । —

Monday, April 25, 2016

काल भगवान

काल भगवान
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जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने शरीर में व्यक्त (मानव सदृष्य अपने वास्तविक) रूप में सबके सामने नहीं आऊँगा। उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा। विष्णु पुराण में प्रकरण है की काल भगवान महविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय दूसरा श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश अध्याय तीसरा श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।