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Monday, December 28, 2015

*** पूर्णमोक्ष VS अघुरा मोक्ष ***



*** पूर्णमोक्ष VS अघुरा मोक्ष ***

Supreme God VS God साहेब कबीर VS ब्रह्मा,विष्णु, शिव,दुर्गा,ब्रह्म

सतगुरू संत VS साधु,योगी,ऋषि,ब्रह्माणं विहंगम

(पक्षी)मार्ग VS पपील(चीटी) मार्ग
==========================

==== योगी साघुओ ऋषियो ब्रह्माण ====
योगी साधु अपने घरो को छोड देते हैा ये
ब्रह्मचारी रहने मे विश्वास रखते हैा.. ये ब्रह्मा
विष्णु शिव के पुजारी होते हैा कुछ एक ब्रह्म
निरंजन काल के पुजारी होते हैा..
ये मान बडाई के भूखे होते हैा इनमे बहुत ज्यादा
अंहकार होता हैा.. ये तरह तरह के आडम्बरो से
जानता का मुर्ख बनाते हैा कुछ नंगे घूमते हैा
जबकी शिव भगवान भी कपडे पहने हुए होते हैा नंगे
रहने से भगवान मिले तो सबसे पहले कुत्ते गधो को
मिल जाना चाहिये.. ये तप करते हैा इनका उदेश्य
सिद्धी पाना राज पाना या कोई संसारिक शक्ति
पाना होता हैा.. जैसे गोरखनाथ सिद्धी पाकर
प्रभु बन गया.. जैसे शिव ने रावण को वरदान दे
दिया.. ब्रह्मा ने हिरणाकश्यप को वर दे दिया..
जैसे विष्णु जी ने ध्रुव पहलाद को धरती और स्वर्ग
का राज दे दिया.. अधिकतर बहुत अंहकारी होते हैा
जैसे कपील ऋषि ने सगड के 60 हजार बेटो को जला
कर राखकर दिया.. दुर्वासा ऋषि ने 56 करोड यादवो
को सराप देकर यादव कुल का नाश कर दिया.. चुणक
ऋषि ने मानधाता राजा की 72 करोड सेना का
कत्लेआम कर दिया.. ये सभी ब्रह्मा विष्णु शिव
और काल ब्रह्म तक के ही पुजारी होते हैा..इनमे
कुछ ऋषि पंडीत होते है कुछ योगी साधु .. ये अपनी
भक्ति तप की कमाई को दुवा बदूवा देकर नष्ट कर
देते हैा ये मान बडाई के भूखे होते हैा योगी
साधुओ मे अपने सन्यासी होने का अहंकार होता
हैा तो ब्रह्माण ऋषियो मे जाति का अहंकार
होता हैा.. ये केवल 10 द्वार तक ही जा सकते हैा
ग्यारहवे और बारहवे द्वार का इनको ज्ञान नही
होता..
ये केवल 7 कमलो(चक्रो) तक ही ज्ञान रखते है
जबकी नौ कमल(चक्र) होते हैा
============= संत सतगुरू ==========
संत परम्परा कबीर साहेब से चली उनसे पहले कोई संत
नही था उनसे पहले ऋषि ब्रह्मांण योगी साधु हुआ
करते थे
संत ब्रह्मा विष्णु शिव ब्रह्म की पूजा नही करते
बल्कि इनका आदर करते है वह सीधे कबीर साहेब
पूर्णब्रह्म सतपुरूष की पूजा करते है और करवाते
हैा.. इनमे जाति अंहकार नही होता.. संत दास की
तरह रहते हैा ये सन्यासी नही होते गृहस्थी होते
हैा (क्योकि ब्रह्मचारी रहने से भगवान मिलता तो
सबसे पहले हिजडो को मिल जाता) ये लाल कपडे नही
पहनते.. सफेद कपडे पहनते हैा ये दाढी मुछ रखने मे
विश्वास नही रखते क्योकि भगवान दाढी मुछ देकर
दर्शन नही देता वह तो भक्ति के आधार से मिलता
हैा दाढी रखो या मत रखो जरूरी नही होती संतो के
लिए.. संत बाहरी आडम्बर नही करते दिखावे के
लिए.. संतो मे कोध नही होता ये सरप नही देते...
जैसे अंहकारी ऋषि महाऋषि दिया करते थे..
संतो मे सतगुरू मे सबसे पहला नाम कबीर साहेब का
आता हैा उन्होने गृहस्थी मे रहकर दिखाया..
उन्होने अपने मुहबोले माता पिता की सेवा की
उन्होने शादी नही की थी दो बच्चो को जीवित
किया था कमाल और कमाली उनको बच्चो के रूप मे
रखकर परवरिश कि..हमे उदारण दिया गृहस्थी मे भी
पार हो सकते है नानक जी रविदास धर्मदास गरीबदास
घीसादास सभी संत गृहस्थी थे. संत मान बडाई के
भूखे नही होते.. संत चमत्कार नही दिखाते संतो से
खुद चमत्कार होते हैा.. पूर्णसंत को बारहा द्वार
और नौ कमलो का ज्ञान होता हैा
*********** मार्ग ******************
मार्ग दो प्रकार के होते है 1.पापील(चीटी) मार्ग
2.विहंगम(पक्षी)मार्ग
1.पपील मार्ग-
इस मार्ग से गये हुए साधक स्वर्ग महास्वर्ग को
भोगकर पूण्य समाप्त होने पर लौटकर संसार मे
वापिस आते है. गीता अध्याय 9/20,21 देखे
साधु योगियो ऋषि ब्रह्मणो का मार्ग पपील मार्ग
मतलब चीटी मार्ग होता हैा जैसे चीटी पेड पर सरक
सरक नीचे जड तना डार से होती हुई पेड की चोटी पर
पहुचती हैा.. इस पपील मार्ग से ब्रह्मांड को पार
नही किया जा सकता . ये मार्ग चीटी मार्ग है ये
ब्रह्मांड एक सागर की तरह है चीटी समुंदर पार नही
कर सकती.. इसलिए पीर पैगम्बर ईसा मुसा देवी देवता
साधु योगी ऋषि ब्रह्मांण ब्रह्मा विष्णु शिव
दुर्गा ये सब एक ब्रह्मांड मे ही है ये सभी काल
जाल मे ही है इन सबका मार्ग पपील चीटी मार्ग है.
ये एक ब्रह्मांड को पार नही कर सकते.. ये केवल
त्रिकुटी तक ही जा सकते है ये त्रिकुटी से आगे
नही जा सकते .. इनको केवल दस द्वार का ज्ञान
होता है त्रिकुटी दसवे द्वार पर ही बनी हुई है
त्रिकुटी से आगे विहंगम पक्षी मार्ग लेकर जाता
है जो बारहा द्वारो को पार करवाता है..
विहंगम मार्ग हमे त्रिकुटी से आगे पक्षी की तरह
उडाकर सारे ब्रह्मांडो को पार करता हुआ दसवे
द्वार से निकाल कर बारहवे द्वार को पारकरा कर
पूर्ण मोक्ष दिलाता है विहंगम मार्ग वेद गीता
पुराण कुरान बाइबल गुरूग्रंथ किसी भी सदग्रंथ मे
नही है.. इसके लिए गीता 4/34 मे लिखा है
तत्वदर्शी संतो के पास जाओ.. कुरान शरीफ सु० फु
25 आयत 59 मे लिखा है किसी बाखबर इल्मवाले से
पूछो ...
आइए अब बताते है तत्वदर्शी संत बाखबर का विहंगम
मार्ग...
आगे पढिये विहंगम पक्षी वाला मार्ग..
2.विहंगम मार्ग-
इस मार्ग से साधक स्वर्ग महास्वर्ग को पार करके
सतलोक सचखंड चले जाते है जहा से लौटकर फिर कभी
संसार मे नही आते.. गीता 8/8,9,10 और 15/4 श्लोक
देखे
सतगुरू जो मार्ग बताते वह संतो का मार्ग होता है
वह विहंगम मार्ग होता हैा जैसे पक्षी नीचे से
उडकर सीधा पेड की चोटी पर जाकर बैठ जाता हैा.
ये ब्रह्मांड एक सागर की तरह है पक्षी सागर को
भी पार कर सकता है. संत इस काल के भवसागर को पार
कर जाते है. जैसे पक्षी समुंदर को पार कर जाता
है. कबीर परमात्मा की शरण मे आकर ये जीव तीनो
नाम गायत्री सतनाम और सारशब्द से काल के सभी
ब्रह्मांडो को पार जाता हैा कबीर परमात्मा का
प्रथम नाम जिसमे 5 प्रधान शक्तियो के 5 मंत्र
होते है वह त्रिकुटी दसवे द्वार तक पहुचाते है.
दूसरा सतनाम का मंत्र जिसमे दो अक्षर होते है
त्रिकुटी से आगे सतनाम का मंत्र आत्मा को
पक्षी की तरह उडाकर लेकर जाता है यह मंत्र काल
ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडो को और परब्रह्म के 7संख
ब्रह्मांडो को पार करवाता है यह सतनाम का मंत्र
आत्मा को दसवे द्वार से निकालता हुआ काल
ब्रह्म के सर पर पैर रखकर ग्यारवे द्वार से होता
हुआ बारहवे द्वार के पास भव्वर गुफा पर छोड देता
है वहा से सचखंड सतलोक दिखाई देता हैा उससे आगे
तिसरा नाम सारनाम जो पूर्णब्रह्म कबीर साहेब
सतपुरूष का मंत्र है यह मंत्र आत्मा को बारहवे
द्वार से पार करवाकर सतलोक सचखंड मे ले जाकर
छोड देता है उसके बाद आत्मा इस संसार मे लौटकर
भी नही आती
गीता 8/8,910 और 15/4 शलोक मे लिखा है वहा गए हुए
साधक संसार मे लोटकर कभी नही आते..
आत्मा का पूर्ण मोक्ष हो जाता है.. सतलोक मे
आत्मा का नूरी अजर अमर शरीर होता है सदा वहा
आन्नद उठाती है.
कबीर - सिद्ध तारे पिंड अपना, साधु तारे खंड..
सतगुरू सोई जानिये, जो तार देवे ब्रह्मांड...
इस पूरी पृथ्वी पर संत रामपाल जी महाराज है जो
ये तीनो नाम तीन बार मे देते है वरना सभी एक बार
मे ही नाम देते हैा.. इस विहंगम मार्ग से कबीर
साहेब ने बहुत आत्माओ को पार किया.. सतयुग मे
कबीर साहेब सत सुकृत नाम से आये थे.. त्रेता मे
मुनिंद्र नाम से आये थे तब मंदोदरी हनुमान
चंद्रविजय भाट को पार किया था.. द्वापरयुग मे
कबीर साहेब करूणामय नाम से आये थे तब रानी
इंद्रमति और सुदर्शन भंगी को पार किया था.. और
सुपच का रूप बनाकर पांडोव की यज्ञ सफल किया
था. कलियुग मे अपने original नाम कबीर नाम से आये
थे. नानक धर्मदास दादू घीसा मलूक और गरीब दास
को पार किया सचखंड पहुचाया.. रविदास अब्रहिम
सुलतान को पार किया.. ये कुछ उदारण दिये है ना
जाने कितनी आत्माओ को पार किया..
**** पपील मार्ग विस्तार से *****
योगी साधु ब्रह्मांण ऋषि इस मार्ग से ब्रह्मा
विष्णु शिव दुर्गा काल(ब्रह्म) के साधक जाते हैा
===============================
ये तप करते हैा तप से राज मिलता है और साथ मे जो
जिसे इष्ट मानकर पूजता हैा वह साधक उसी के लोक
मे चला जाता हैा
कबीर - तपेशवरी सो राजेशवरी,राजेवरी सो
नरकेशवरी.
कबीर- तप से राज,राध मध मानम.
जन्म तीसरे शुकर स्वानम्
अर्थ - जिसका जितना तप होता है उसको उसी हिसाब
से राज मिलता हैा किसी को पूरी पृथ्वी का राज,
तो किसी को स्वर्ग का राज मिलता है तो राजा मे
अंहकार होता है निर्दोष लोगो को सजा देता हैा
मदिरा पीता हैा फिर राज भोग कर नरक और कुत्ते
शूअर के शरीर प्राप्त करता हैा जैसे राजा
प्रियवर्त ने 11 अरब वर्ष तप किया फिर 11 अरब वर्ष
राज किया फिर नरक मे चला गया.. तप से सिद्धियां
मिलती है तप से स्वर्ग या पृथ्वी का राज मिलता
हैा फिर नरक चौरासी मिलती हैा..
ये साधक जिसे अपना इष्टदेव मानकर मंत्र जाप करते
है वह उसके लोक मे चला जाता है जैसे विष्णु का
साधक विष्णुलोक मे, शिव का साधक शिव लोक मे,
ब्रह्मा का साधक ब्रह्मालोक मे, काल ब्रह्म का
साधक ब्रह्मलोक मे चला जाता हैा गीता 9/25,26
और 8/8,9,10 श्लोक मे लिखा है जो जिसकी भक्ति
करता है उसी के पास चला जाता हैा गीता 9/20,21
मे लिखा है वह दिव्य स्वर्ग को भोगकर फिर
मुत्युलोक मे आते हैा..
मानव शरीर को पाने के लिए देवता भी तरसते है
क्योकि मानव शरीर मे ही आत्मा मोक्ष को
प्राप्त कर सकती हैा..
मानव शरीर मे कमल बने हुए है योगी जिनको चक्र
बोलते हैा इनको केवल सात कमलो का ज्ञान होता
हैा..
1.मूल कमल(चक्र) - इसमे गणेश जी का वास होता हैा
यह चार पखुडिया का होता हैा फोटो मे देख सकते
हो यह रीढ की हडडी के अन्त मे अन्दर की तरफ गुदा
के पास होता हैा..
2. स्वाद कमल- इसमे ब्रह्मा सवित्री का वास होता
हैा इसमे छह पखुडिया होती हैा यह रिढ की हडडी
मे अन्दर की तरफ गुप्तइंद्री के पास होता हैा
3.नाभिकमल- इसमे विष्णु लक्ष्मी जी का वास
होता हैा.. इसमे आठ पंखुडिया होती हैा यह नाभि
के पास पीछे रीढ की हडडी मे अन्दर की तरफ होता
हैा..
4. हदयकमल- इसमे शिव पार्वती का वास होता हैा
इसमे बारहा पखुडिया होती हैा यह हदय मे पीछे रीढ
की हडडी मे अन्दर की तरफ होता हैा..
5. कंठकमल - इसमे दुर्गा देवी का वास होता हैा
इसमे सोलहा पंखुडिया होती हैा यह कंठ मे पीछे
रीढ की हडडी मे अन्दर की तरफ होता हैा
6.त्रिकुटी कमल- यह दो पखुडियो का कमल होता है
काला और सफेद सुरत निरत से जाप .. यह सर के पीछे
जैसा फोटो मे दिखाई दे रहा हैा..
7. संहास्रार कमल- यह हजार पखुडियो का होता हैा
इसमे ब्रह्मा विष्णु शिव के पिता काल निरजन
ब्रह्म का वास होता हैा.. जहा ब्रह्मांण चोटी
रखते है वहा होता हैा....
आगे आठवा और नौवा कमल ओर होता है वह इस शरीर मे
मौजूद नही है क्योकि इस शरीर मे एक ब्रह्मांड का
ही नक्शा बना हुआ हैा आठवा और नौवा कमल काल
के 21 ब्रह्मांडो को पार करके आता हैा
इनको केवल सात कमल और दस द्वारो का ज्ञान होता
हैा.. दसवा द्वार को सुष्मना द्वार भी बोलते हैा
शरीर के नौ द्वार प्रत्यक्ष दिखाई देते हैा दसवा
द्वार नाक के दोनो छिदो के बीच मे उपर की तरफ
खुलता हैा जो सुई की नोक जितना होता हैा वह
मंत्रो के जाप से खुलता हैा दसवे द्वार मे आगे
चलकर त्रिकुटी आती हैा इनकी समाधी केवल
त्रिकुटी तक ही जा सकती हैा.. जब इनका शरीर
छुटता है तो ये त्रिकुटी पर जाते हैा त्रिकुटी पर
तीन रास्ते हो जाते हैा मोक्ष का रास्ता सामने
वाला होता है जिसको ब्रह्मरंद्र बोलते हैैा इन
योगी साधु पंडित ऋषियो के पास वह सतनाम का
मंत्र नही होता जो उस ब्रह्मरंद्र को खोलकर
ग्यारवे द्वार मे प्रवेश करवाता हैा.. इसलिए ये
सामने वाले ब्रह्मरंद्र को न खोल पाने के कारण
दाए और बाये अपनी अपनी भक्ति के कारण जिसने
जिस इष्ट की साधना की है ये उसी के लोक मे चले
जाते हैा अपने पूण्यो को खर्च करके फिर अपने
पापो को भोगने को के लिए नरक और लाख चौरासी
मे जाते हैा फिर कभी मानव जीवन मिलता है भक्ति
की तो स्वर्ग वरना नरक. देवी पुराण मे लिखा है
ब्रह्मा विष्णु शिव की जन्म मुत्यु होती हैा
गीता 2/12 और 4/5,9 श्लोक मे ब्रह्म कहता हैा
अर्जुन तेरे मेरे बहुत से जन्म हो चुके हैा उनको
तु नही जानता मै जानता हैा मेरे जन्म और कर्म
दिव्य अलौकिक हैा..
नोट- इससे स्पष्ट होता है जब ब्रह्मा विष्णु शिव
और काल ब्रह्म भी नाशवान हैा तो इनके पुजारी
साधक कैसे जन्म मरण से मुक्त हो सकते हैा..
अर्थात ये सभी जन्ममरण मे हैा इसलिए गीता
4/34,32 शलोक मे गीता ज्ञान देने वाला भगवान कह
रहा है अर्जुन तू तत्वदर्शी संतो के पास जा वो
तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेगे जिसको जानकर
तू कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हो जायेगा.. गीता
8/8,9,10 और 15/3,4 श्लोक मे गीता ज्ञान देने
वाला भगवान कहता है तू उस परमेशवर की शरण मे चला
जायेगा जहा गये हुए साधक इस संसार मे लौटकर कभी
नही आते मै गीता का ज्ञान देने वाला भगवान भी
उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुं..... मतलब
वह मेरा भी पूज्यदेव हैा. आओ आपको संतो का वह
विंहगम मार्ग बताते है जहा गये हुए साधक लौटकर
इस संसार मे नही आते...
*** विहंगम मार्ग विस्तार से (संतो का मार्ग)****
इस मार्ग से पूर्णब्रह्म Supreme God कबीर साहेब
के साधक जाते हैा नानक जी रविदास जी गरीब दास
सभी इसी मार्ग से गये हैा
==============================
जैसे हम पहले बता चुके है शरीर मे सात कमल और दस
द्वारो के बारे मे...
सातवा संहसार कमल- इसमे ब्रह्म(क्षरपुरूष) काल
का वास होता है ये एक हजार पंखुडी का बना होता
हैा..
आठवा कमल- इसमे परब्रह्म (अक्षरपुरूष) का वास
होता है यह दस हजार पंखुडी का बना होता हैा..
नौवा कमल- इसमे पूर्णब्रह्म(परमअक्षरपुरूष) कबीर
साहेब का वास होता हैा..इसकी असख्य पंखुडिया
होती हैा.
अब बताते है नौ कमल और.बारहा द्वारो के बारे मे
शुरू से....
संत रामपाल जी महाराज हमे जो पहला गायत्री
मंत्र देते है वह कमल के पांच प्रधानो का होता
हैा जिसके जाप से हमारा मूल कमल से त्रिकुटी तक
का रास्ता साफ हो जाता हैा मूलकमल से त्रिकुटी
तक सीधी सडक जाती हैा जैसे हमे विदेश जाना हो
तो international airport तक हम बस या कार से जाते
हैा त्रिकुट समझो international airport होता हैा
airport के बाद उडकर जाना होता हैा तो दूसरा
सतनाम का दो अक्षर का मंत्र हमे त्रिकुटी से
उडाकर लेकर जाता हैा... जैसे विदेश से अपने देश
मे आना हो तो विदेश मे ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
लेना पडता हैा जब विदेश से स्वदेश आने की
अनुमति मिलती हैा हमे अपने स्वदेश सतलोक जाना
है फिर कभी काल के लोक मे नही आना हैा इसलिए
हमे सभी कमल प्रधानो से ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
लेना पडेगा तब ही हम अपने स्वदेश सतलोक आ सकते
हैा
नोट- योगी,साधु,ब्रह्मांण,ऋषियो को तत्वदर्शी
संत ना मिलने के कारण इनके पास वह मोक्ष मंत्र
नही होता जो ऋण मुक्त करके इनके सतलोक भेज दे..
इनकी भक्ति काल ब्रह्म तक ही होती हैा इसलिए ये
अपनी साधना के अनुसार स्वर्ग महास्वर्ग मे घूमकर
फिर पृथ्वी लोक पर चले जाते हैा)
कबीर -पीर पैगम्बर कुतब ओलिया,सुरनर मुनिजन
ज्ञानी..
ऐता को तो राह नही पाया, ये काल के बंधे प्राणी
अर्थ- पीर पैगम्बर कुतब ओलिया मे मुसलमानो के ह०
मुहोम्मद आदम मुसा ईसा ये सब आ जाते है.. सुरनर
मुनिजन ज्ञानी मे हिन्दूओ के देवता ब्रह्मा
विष्णु शिव और ऋषि योगी साघु ब्रह्मांण सब आ
जाते हैा कबीर साहेब कहते है इनको भी वो मार्ग
नही मिला ये सब काल की भगती करके काल की कैद
मे ही रह गये हैा ये काल की जन्म मरण की डोरी मे
बंधे हैा
आओ जो मार्ग इन सब को नही मिला.. जो मार्ग काल
की कैद से आपको निकाल ले जायेगा वह मार्ग
विहंगम मार्ग आपको बताते हैा...
संत रामपाल जी महाराज का पहला मंत्र हमे हमारे
कमलो के पांच प्रधानो से ऋण मुक्त सर्टीफिकेट
दिलवायेगा..
मूल कमल से त्रिकुटी तक सीधा रास्ता जाता हैा..
1.हम मूल कमल मे जाकर गणेश जी के मंत्र जाप की
कमाई गणेश जी को दे देगे तो गणेश जी हमे अपने ऋण
से मुक्त कर देगे..
2. उसके बाद हम स्वाद कमल मे ब्रह्मा सावित्री के
लोक से होकर गुजरेगे तो ब्रह्मा सवित्री के मंत्र
की कमाई हम उनको दे देगे तो ब्रह्मा जी हमे अपने
ऋण से मुक्त कर देगे क्योकी ब्रह्मा जी सभी
जीवो की उत्पति करते हैा
3. उसके बाद हम नाभिकमल मे विष्णु लक्ष्मी के
लोक से होकर गुजरेगे तो उनके मंत्र की कमाई
विष्णु लक्ष्मी जी को दे देगे तो विष्णु जी हमे
अपने ऋण से मुक्त कर देगे.. क्योकि विष्णु जी
पालन पोषन करते है हमारा...
4. उसके बाद हम हदय कमल मे शिव पार्वती के लोक से
होकर गुजरेगे तो शिव पार्वती के मंत्र की कमाई
उनको दे देगे.. तो वे हमे अपने ऋण से मुक्त कर
देगे.. क्योकि शिव संहार करते है सभी जीवो का...
5. उसके बाद हम कंठ कमल मे दुर्गा माता जी के
लोक से गुजरेगे तो दुर्गा जी के मंत्र की कमाई
दुर्गा माता जी को दे देगे तो दुर्गा माता जी
हमे अपने ऋण से मुक्त कर देगी.. भक्ति की कमाई
कम नही बल्कि ज्यादा होनी चाहिए...
आगे चलकर दसवे द्वार पर हम international airport
त्रिकुट पर पहुच जाते हैा त्रिकुटी पर आगे चलकर
तीन रास्ते हो जाते है वैसे तो परमात्मा शब्द रूप
मे हमारे साथ चलते है हर जगह लेकिन त्रिकुटी पर
कबीर परमात्मा गुरू रूप मे आते हैा आगे चलकर तीन
रास्ते हो जाते हैा दसवे द्वार के सामने वाले गेट
को ब्रह्मरंद्र बोलते है उस पर ताला लगा होता हैा
..आगे वो ही साधक जाता है जिसके पास सतनाम का
मंत्र होता हैा ये योगी ऋषि साधु ब्रह्मांण
ब्रह्मा विष्णु शिव ये आगे नही जा सकते ये
त्रिकुट से वापिस दाय बाय मुड जाते हैा कहते है
शिव ने 97 बार कौशिस की थी ब्रह्मरंद्र को
खोलने की लेकिन खोल नही पाये क्याकि उनके
पास भी वह सतनाम का मंत्र नही हैा..
गरीब- ब्रह्मरान्द्र को खोलत है कोई एक,उल्टे फिर
जाते है ऐसे अनेक...
गीता 17/23 मे लिखा है ओम तत सत ऐसे यह उस पूर्ण
परमात्मा का नाम कहा हैा.. तत सत इसमे सांकेतिक
हैा उनको गीता 4/34 श्लोक मे तत्वदर्शी संत
बतायेगा..
गरीब- भक्ति मुक्ती ले उतरे , मेटन तीनो ताप..
जुलाये का घर डेरा लिया कह कबीरा बाप...
अर्थ- गरीबदास जी महाराज बता रहे है वह परमात्मा
कबीर साहेब इस धरती पर सही भक्ति और मुक्ती
मार्ग को लेकर आते हैा 600 साल पहले उन्होने एक
जुलाये
के घर वास किया और उसको अपना बाप बनाया...
रामपाल जी महाराज सतनाम का मंत्र देते हैैा जो
कबीर साहेब ने नानक जी को दिया था.. उस मंत्र से
त्रिकुटी के सामने का रास्ता ब्रह्मरांद्र खुल
जाता हैा गुरू रूप मे परमात्मा हमारे साथ होते
हैा... सतनाम का मंत्र international Airport त्रिकुटी
से हमे उडाकर लेकर जाता हैा रास्ते मे डाकनी
साकनी बहुत भयानक आकृति के यम के दूत मिलते
हैा.. सतनाम के जाप से वो सब भाग जाते हैा आगे
जब हम सातवे संहासार कमल से होकर गुजरते हैा तो
21 वे ब्रह्मांड मे दसवे द्वार के End मे ब्रह्मा
विष्णु शिव के पिता काल निरंजन ब्रह्म बैठे हैा
काल का बहुत भयानक और बहुत विशाल शरीर है अपने
सर से ग्यारवे द्वार को काल ने बंद कर रखा हैा..
गीता 18/66 शलोक मे काल ब्रह्म कहता हैा अर्जुन
सभी धार्मिक अनुष्ठानो की कमाई तू मुझे देकर
एक सर्व शक्तिमान परमेशवर की शरण मे चला जा मै
तुझे सब पापो से मुक्त कर दूंगा..(नोट-व्रज का
अर्थ जाना होता है नकली गुरूओ ने आना किया
हैा)
सतनाम मे दो मंत्र गुरू जी देते है एक ब्रह्म
(क्षरपुरूष) का दूसरा परब्रह्म(अक्षरपुरूष) का
मंत्र होता हैैा तो हम ब्रह्म क्षरपुरूष काल को
उसके एक मंत्र के जाप की कमाई और सारे पूण्य दे
देगे जिसके कारण काल भगवान हमे अपने ऋण से
मुक्त कर देगा और हमे हमारे स्वदेश सतलोक जाने
देगा..
जब हम वहा सतनाम और सारनाम का जाप करेगे तो
काल भगवान सर झुका देगा उसके सर पर पैर रखकर हम
परब्रह्म के लोक मे आठवे कमल मे ग्यारहवे द्वार मे
प्रवेश कर जायेगे.. हमारा सूक्ष्म शरीर भी छूट
जाता हैा आगे परब्रह्म के 7 संख ब्रह्मांडो को
हमे पार करना पडता हैा सतनाम का दूसरा मंत्र
परब्रह्म(अक्षरपुरूष) का होता हैा दूसरे मंत्र की
कमाई परब्रह्म को देगे तो वह अपने सात संख
ब्रह्मांडो को पार करने लंघाने की अनुमति दे
देगा..
नानक- सोई गुरू पूरा कहावे दो अक्षर का भेद
बतावे..
एक छुडावे एक लघांवे , तो प्राणी निज घर को
पावे.
अर्थ- नानक जी कहते है वह गुरू पूरा होगा जो
सतनाम के दो अक्षरो का भेद बतायेगा.. एक अक्षर
काल से छुडवायेगा दूसरा अक्षर परब्रह्म के 7 संख
ब्रह्मांडो को लंघायेगा...
जब हम परब्रह्म के सात संख ब्रह्मांडो को पार
करेगे तो हमारा कारण और महाकारण शरीर छुट जाता
हैा केवल कैवल्य शरीर बचता हैा जब परब्रह्म के
सात संख ब्रह्मांडो को पार कर लेते है भव्वर
गुफा के पास मान सरोवर आता हैा कबीर परमात्मा
वहा आत्मा से पूछते है तेरी कोई संसार की इच्छा
तो मन मे नही रही अगर संसार मे इच्छा रह गई होगी
तो अात्मा को मालिक दुबारा काल के लोक मे भेज
देते हैा लेकिन वहा आत्मा काल की मोह माया से
बाहर हो जाती हैा आत्मा कहती है कोई इच्छा नही
रही मालिक सतलोक ले चलो.. फिर कबीर परमात्मा
आत्मा को मानसरोवर मे स्नान करवा देते हैा तो
आत्मा का कैवल्य शरीर छुट जाता हैा आत्मा का
Original नूरी शरीर हो जाता हैा जिसकी 16 सुरज 16
चंद्रमा जितना प्रकाश हो जाता हैा वहा से
सतलोक दिखाई देता हैा फिर सारनाम की कमाई हमे
भव्वर गुफा पार करवा कर सतलोक हमारे निजलोक
हमारे स्वदेश ले जाती हैा उसके बाद हम नौवे कमल
पूर्णब्रह्म के लोक बारहरवे द्वार मे प्रवेश कर
जाते हैा वह हमारा सतलोक है वहा कभी जन्म मरन
नही हैा ऐसे ये आत्मा अपने घर पहुच जाती हैा..
फिर कभी काल के लोक मे वापिस नही आती ..
आत्मा सतलोक मे पूर्ण आन्नद उठाती हैा.. इसको
पूर्णमोक्ष कहते हैा
कबीर - जहा के बिछुडे तहा मिलाऊ करो साध सतसंग
रे..
कबीर- अमर करू सतलोक पठाऊ , ताते बंदिछोड कहाऊ
========== सतलोक महिमा=========
पूर्णब्रह्म कबीर साहेब ने सतलोक मतलब अमरलोक मे
सभी आत्माओ की उत्पति की.. सभी आत्माओ को
सुंदर नूरी शरीर दिया.उस शरीर की चमक इतनी थी
जितनी 16 सुरज और चांद की मिलकर रोशनी भी
फिकी रहे.. और परमातमा कबीर साहेब की एक रोम
कूप की शोभा इतनी है कि करोड सुरज और करोड
चांद की मिली जुली ऱोशनी भी फिकी रहे.. अमर
लोक हिरे की तरह खुद तेजोमेय है. वहा बाग बगीचे
फल फूल हर चीज का अपना परकाश है.. वहा नर नारी है
वहा जनम मरन नही है..कोई बीमारी या दुख नही
है..केवल सुख ही सुख था..
हम ऐसे सुनदर देश अमरलोक मे रहा करते थे..
(कबीर - हंसा देश सुदेश का, पडा कुदेशो आये
जिनका चारा मोतीया वो घोघो कयो पतियाये)
कबीर साहेब बता रहे है तू उस सुंदर देश का रहने
वाला हंस मतलब अच्छी आत्मा था वहा मोती खाता
था. आैर यहाँ काल के लोक मे तू बगुला काग बन गया
है मोती छोड घोघे कीडे खा रहा है..
=======सतलोक अमरलोक की महिमा=======
कबीर वानी कबीर सागर से..
तहँवा रोग सोग नहि होई, कीरडा विनोद सब कोई..
चंदर ना सूरज ना दिवस नही राती, वरण भेद ना जाती
अजाती..
satlok m koi rog nhi h koi sok nhi karta Sab koi mooj
masti karte h. waha na chand h na suraj na din na raat
h. waha na Jati h na koi varan h.
तहँवा जरा मरन नही होई, अमरत भोजन करत आहारा.
काया सुंदर ताहि परमाना,उदित भये जनु षोडस
भाना..
waha budapa maran nhi h sabi amrat bhozan karte h.
har ek ki body ka itna parkash h jitna 16 suraj ek sath
chamak jaye..
इतना एक हंस उजियारा,शोभित चिकुर तहा जनु तारा.
विमल बास तहँवा बिसगाई,योजन चार लो बास उडाई.
satlok m koi smell badbu Nhi h.. is dharti ki badbu 400
yojan matlab 1200 km uper tak jati h..
सदा मनोहर छत्र सिर छाजा, बूझ न परै रंक और राजा.
नहि तहां काल वचन की खानी,अमरत वचन बोल भल
वानी..
us manohar parmatma ke sar par chhatar h mukut.
waha kaal ka dar nhi h. sabi badi piyari boli bolte h..
आलस निंदा नही परकाशा, बहुत परेम सुख करै
विलासा.
.Saltok m koi alash nindra nhi h. sabi Bade prem se
rehte h.
साखी- अस सुख है हमरे घर, कह कबीर समुझाय
सतशबद को जान के, असथिर बैठे जाये..
kabir Parmatma kehte h ki hamare Ghar satlok m ehsa
sukh h.. Jo insan pure Guru se Satsabd le kar bagti
karega. wo hi satlok m ja sakta h..
SATLOK KI Mahima :- गरीबदास जी की वानी
शवेत सिंहासन शवेत ही अंगा, शवेत छत्र जाका शवेत
रंगा..
शवेत खवास शवेत ही चौरा, शवेत पोप शवेत ही
भौरा..
शवेत नाद शवेत ही तूरा, शवेत सिंहासन नाचे हुरा..
शवेत नदी जहा शवेत ही वृक्षा ,शवेत चंदर जहा
मसतक चरचा..
शवेत सरोवर शवेत ही हंसा, शवेत जाका सब कुल
वंशा..
शवेत मंदिर चंदर जयोती,शवेत माणक मुकता मोती.
शवेत गुबंद जहा शवेत ही शयाना, शवेत धवजा जहां
शवेत ही निशाना..
गरीबदास ये धाम हमार

वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।



“ऐसा राम कबीर ने जाना”
वेद पढ़े और भेद न जाने। नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
वेद पुराण यह करे पुकारा। सबही से इक पुरुष नियारा।
तत्वदृष्टा को खोजो भाई, पूर्ण मोक्ष ताहि तैं पाई।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।

मां अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।

पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।

अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।

कबीरा खड़ा बाज़ार मे,लिया लुकाठी हाथ ।
जो घर जारै आपना ,वे चले हमारे साथ ।।

भगत आत्माऐँ ध्यान देँ सदगुरु देँव जी बतातेँ है



भगत आत्माऐँ ध्यान देँ

सदगुरु देँव जी बतातेँ है

कि जब हम से गलती के कारण नाम खँण्ड हो जाता है फिर और भी गलतीयाँ कर बैठते है कि नाम तो खँण्ड हो गया है ।
मालिक बताते है गलती पर गलती करना ऐसा है जैसे कनैकसन कट (नामखँड)होने के बाद जो गलती करते है वो फिँटिग को यानी वायरिँग को उखाड़ने के समान है ।
मालिक कहते है भगति बीज को सिर धड़ की बाजी लगाकर सफल बनाना है
भगति चाहे अब कर लो या फिर असंख युगोँ बाद जब कभी मानुष जन्म और सत भगति मिले तब करना बात बनेगी अडिग होकर भक्ति करनेँ से ।


मालिक कहते है
कबीर जैसे माता गर्ब को
रखाखै यत्न बनायेँ ।
ठैस लगे छिन्न हो ,
तेरी ऐसे भग्ति जाये ।

मालिक कहते है गुरु शिष्य का नाता ऐसे होता है

कबीर ,ये धागा प्रेम का मत तोड़े चटकाये ।
टुटै सै ना जुड़े ,
जुड़े तो गाँठ पड़ जाये ।
बार बार नाम खँड़ होने से परमात्मा से लाभ मिलना बन्द हो जाता है ।
कबीर,हरि जै रुठ जा तो गुरु की शारण मेँ जाए , जै गुरु रुठ जा तो हरि ना होत सहाय ।
कबीर , द्वार धन्नी के पड़ा रहे , धक्केँ धन्नी के खाय ।
लाख बार काल झकझोँर ही,द्वार छोड़ कर ना जाय ।

जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय । नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७



जब लग नाता जगत का, तब लग भक्ति न होय ।
नाता तोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ॥७

दिव्य दृष्टि खुली हमारी, सार शब्द से टोया वो |
गरीबदास गायत्री लापी, शीश पीट जम रोया वो ||
खान पान कुछ करदा नाही, है महबूब अचारी वो |
कौम छत्तीस रीत सब दुनिया, सब से रहै विचारी वो |
... बेपरवाह शाहनपति शाहं, जिन ये धारना धारी वो |
अन्तोल्या अन्मोल्या देवै, करोड़ी लाख हजारी वो |
अरब ख़रब और नील पदम् लग, संखो संख भंडारी वो |
जो सेवै ताहि को खेवै, भवजल पार उतारी वो |
सुरति निरति गल बंधन डोरी, पावै बिरह अजारी वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश सरीखे, उसकी उठावैं झारी वो |
शेष सहंस्र मुख करे विनती, हरदम बारम्बारी वो |
शब्द अतीत अनाहद पद है, ना वो पुरुष ना नारी वो |
सूक्ष्म रूप स्वरुप समाना, खेलैं अधर अधारी वो |
जाकूं कहै कबीर जुलाहा, रची सकल संसारी वो |
गरीबदास शरणागति आये, साहिब लटक बिहारी वो ||
मंद-मंद मुस्कात मुसाफिर, है महबूब परेवा वो |
ब्रह्मा विष्णु महेश शेष से, सब देवनपति देवा वो |
अमृतकंद इन्द्री नहीं मोसर, अमी महारस मेवा वो |
कोटि सिद्ध परसिद्ध चरण में, जाकी कर ले सेवा वो |
तीरथ कोटि नदी सब चरणों, गंगा जमुना रेवा वो |
सबके घर दर आगे ठाढा, कोई ना जाने भेवा वो |
रिंचक सा प्रपंच भरया है, अवगत अलख अभेवा वो |
समर्थ दाता कबीर धनि है, और सकल है लेवा वो |
गरीबदास कूं सतगुरु मिलिया, भवसागर का खेवा वो


कबीरा।हरि।की।भगति करो।
तज विषयोँ रस चोज
बार।बार।न पाओगे
मानुष।जन्म।की।मौज
सत् साहेब