गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है। माना जाता है की ये मंत्र # तैत्तिरीय # आरण्यक नामक ग्रन्थ से लिया गया है, और यही वो ग्रन्थ है जिसमें इस मंत्र का गलत वर्णन किया गया है।
जबकि वास्तविक सही मंत्र यजुर्वेद में वर्णित है, और इसके सामने #ॐ नहीं है। इस मंत्र में "ॐ" का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। वास्तव में "ॐ" लगाने से ये मंत्र उनुपयोगी हो जाता है।
वास्तविक मंत्र - "# यजुर्वेद अध्याय 36 मंत्र 3"
# भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि, धीयो यो न: प्रचोदयात्॥
अर्थ - वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है की (स्व:) अपने निज सुखमय (भुव:) अंतरिक्ष अर्थात सतलोक में (भू:) स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है। वही (सवितु:) सर्व सुख दायक सर्व का उत्पन्न करने वाला # परमात्मा है। (तत्) उस परोक्ष अर्थात अव्यक्त साकार (वरेण्यम) सर्वश्रेष्ठ (भर्ग:) तेजोमय शरीर युक्त सर्व सृष्टि रचनहार (देवस्य) परमेश्वर की (धीमही) प्रार्थना, उपासना, #शास्त्रानुकूल विधि से करें, (य:) जो परमात्मा सर्व का पालन करता है, वह (न:) हम को भ्रम रहित (धीय:) शास्त्रानुकूल सत्य भक्ति, बुद्धिमता अर्थात सदभाव से करने की (प्रचोदयात) प्रेरणा करे।
अर्थ - वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है की (स्व:) अपने निज सुखमय (भुव:) अंतरिक्ष अर्थात सतलोक में (भू:) स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है। वही (सवितु:) सर्व सुख दायक सर्व का उत्पन्न करने वाला # परमात्मा है। (तत्) उस परोक्ष अर्थात अव्यक्त साकार (वरेण्यम) सर्वश्रेष्ठ (भर्ग:) तेजोमय शरीर युक्त सर्व सृष्टि रचनहार (देवस्य) परमेश्वर की (धीमही) प्रार्थना, उपासना, #शास्त्रानुकूल विधि से करें, (य:) जो परमात्मा सर्व का पालन करता है, वह (न:) हम को भ्रम रहित (धीय:) शास्त्रानुकूल सत्य भक्ति, बुद्धिमता अर्थात सदभाव से करने की (प्रचोदयात) प्रेरणा करे।
पवित्र #गीता के अध्याय 8 श्लोक 13 के अनुसार "#ॐ" मंत्र केवल "ब्रह्म" की प्राप्ति का मंत्र है, और हम जानते हैं की वेदों में "परम अक्षर ब्रह्म" अर्थात "पूर्ण परमात्मा" की महिमा का वर्णन किया गया है । यजुर्वेद के इस मंत्र में भी सर्व शक्तिमान, पूर्ण ब्रह्म # कबीर परमेश्वर की प्रशंसा की गयी है, इसलिए इसके आगे ब्रह्म का मंत्र(ॐ) लगाना ऐसा है, जैसे "प्रधान मंत्री" को "मुख्य मंत्री" कह कर उनका अपमान करना।