ःःःःःःःःःस्वर्ग की परिभाषाःःःःःःःःः
स्वर्ग को एक होटल जानों। जैसे कोई धनी व्यक्ति गर्मियों के मौसम में शिमला या कुल्लु मनाली जैसे शहरो में ठंडे स्थान पर जाता है। वहां किसी होटल में ठहरता है। जिसमें कमरे का किराया व खाने का खर्चा अदा करना होता है। महीने में 30-40 हजार रूपए खर्च करके वापिस अपने कर्म क्षेत्र में आना होता है। फिर 11 महीने मजदूरी करो। फिर एक महीना घूम आओ। यदि किसी वर्ष कमाई अच्छी नहीं हुई तो उस एक महीने के सुख को भी तरसो।
ठीक इसी प्रकार स्वर्ग जाने--
मनुष्य इस पृथ्वी लोक पर साधना करके कुछ समय स्वर्ग रूपी होटल में चला जाता है। अपनी पुण्य कमाई खर्च करके कुछ समय वहां रहकर वापिस नरक तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीर में कष्ट पाप कर्मों के आधार पर भोगना पडता है।
जब तक तत्वदर्शी संत नहीं मिलेगा तब तक जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नरक व 84 लाख योनियों का कष्ट बना ही रहेगा।क्योंकि केवल पूर्ण परमात्मा का सतनाम व सारनाम ही पापों का नाश करता है। अन्य प्रभुओं की पूजा से पाप नष्ट नहीं होते। सर्व कर्मों का ज्यों का त्यों फल ही मिलता है।
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