Wednesday, September 6, 2017
Friday, September 1, 2017
Wednesday, March 22, 2017
Sunday, January 8, 2017
कबीर (कविर्देव) जी स्वयं अपने मूल स्थान सतलोक से आए ( विक्रमी संवत् 1455 ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (सन्_1398) सुबह सुबह ब्रह्ममुहुर्त में)
#विक्रमी_संवत्_1455_ज्येष्ठ_मास_की_पूर्णिमा (#सन्_1398) सुबह-सुबह #ब्रह्ममुहुर्त में वह पूर्ण परमेश्वर कबीर (कविर्देव) जी स्वयं अपने #मूल_स्थान_सतलोक से आए। #काशी_में_लहरतारा_तालाब_के_अंदर_कमल_के_फूल_पर_एक_बालक_का_रूप_धारण_किया।
पहले मैं आपको नीरू-नीमा के बारे में बताना चाहूँगा कि ये कौन थे?
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय। सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।377।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि। बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।378।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक। पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।379।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि। जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।380।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार। मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।381।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान। परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।382।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत। जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।383।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर। कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।384।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहीं, कोई किंनर कहलाय। कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।388।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश। सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।385।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप। मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।386।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहीं पलने झूलंत। अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।387।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद। एैसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।389।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत। जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।390।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश। ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।391।।
आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी में लिखा है जो कबीर जी ने स्वयं बताया है:--
ब्रह्मा ज्ञान सुनाईया, धर पिंडा अस्थूल।।
श्वेत भूमिका हम गए, जहां विश्वम्भरनाथ।
हरियम् हीरा नाम दे, अष्ट कमल दल स्वांति।।
हम बैरागी ब्रह्म पद, सन्यासी महादेव।
सोहं मंत्रा दिया शंकर कूं, करत हमारी सेव।।
हम सुल्तानी नानक तारे , दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।
Saturday, December 24, 2016
भगवान, इशवर को जानीऐ
कबीर :-
हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गौस और पीर
गरीबदास खालिक धणी, हमरा नाम कबीर
गरीब :-
अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, ये कुल के सृजनहार
दादू:-
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार
दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार
कबीर :-
ना हमरे कोई मात-पिता, ना हमरे घर दासी
जुलाहा सुत आन कहाया, जगत करै मेरी हाँसी
कबीर :-
पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर
कबीर :-
सतयुग में सत्यसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा,
द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया
कबीर :-
अरबों तो ब्रह्मा गये, उन्नचास कोटि कन्हैया,
सात कोटि शम्भू गये, मोर एक पल नहीं पलैया
कबीर :-
नहीं बूढा नहीं बालक, नहीं कोई भाट भिखारी
कहै कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी
कबीर :-
पाँच तत्व का धड नहीं मेरा, जानू ज्ञान अपारा
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा
कबीर :-
हाड- चाम लहू नहीं मेरे, जाने सत्यनाम उपासी
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी
कबीर :-
अधर द्वीप (सतलोक) भँवर गुफा, जहाँ निज वस्तु सारा
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन भी, धरता ध्यान हमारा
कबीर :-
जो बूझे सोई बावरा, पूछे उम्र हमारी
असंख्य युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी
कबीर :-
अवधू अविगत से चल आया, मेरा कोई मर्म भेद ना पाया
"" कबीर"" शब्द का अर्थ
सर्वश्रेष्ठ, महान, सबसे बडा, सर्वोत्तम
Tuesday, October 25, 2016
कबिर साहेब
जो सत्य का दर्शन कराये,
और झूठ को न कभी सराहे ।...वह कबीर है ।
जो फकीर सा जीवन बिताये,
और ताज को सर न झुकाये ।...वह कबीर है ।
जो आडम्बर को आग लगाये,
और भटकों को राह दिखाये ।...वह कबीर है ।
जो तलवार से भी भय न खाये,
और सब को खरी-खरी सुनाये।...वह कबीर है ।
जो शीश अपना कर में उठाये,
और मृत्यु को भी देख मुस्कराये।...वह कबीर है ।
जो मानुष-मानुष का भेद मिटाये,
और हर मानुष को एक बताये।...वह कबीर है ।
जो धर्मों की दीवार गिराये,
और राम रहीम को एक बताये ।...वह कबीर है ।
जो ज्ञान की गंगा बहाये,
और पाठ उल्टा न पढ़ाये ।...वह कबीर है ।
जो प्रेम का रस सर्वत्र बहाये,
और कमियाँ खुद में बताये ।...वह कबीर है ।
जो परमात्मा से परिचय कराये,
और जीव को मुक्ति दिलाये ।...वह कबीर है ।
जो जीवन का पारखी कहाये,
और इन्सान में भगवान दिखाये ।...वह कबीर है ।
जो हर मानुष की खुशियों खातिर,
खुद चिंता में कभी सो न पाये ।...वह कबीर है ।
जो जगत के सारे भरम मिटाये,
और माया-मोह से हमें बचाये ।...वह कबीर है ।
जो खुद शिक्षा तो कबहुँ न पाये,
पर दुनिया भर को पाठ पढ़ाये ।...वह कबीर है ।
जो अपने को अनपढ़ बतलाये,
पर परम तत्व का ज्ञानी कहलाये ।...वह कबीर है ।
जो धन दौलत न पास धराये,
और अपने को छोटा बतलाये ।...वह कबीर है ।
जो पहले सब को शीश झुकाये,
पर दुनिया का साहेब कहलाये ।...वह कबीर है ।
जो ध्यान में ही आनन्द पाये,
और संत शिरोमणि कहलाये ।...वह कबीर है ।
Tuesday, June 28, 2016
गोरख नाथ (सिद्ध महात्मा), कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा)
रखा था। जैसा श्री रामानन्द जी ने बाणा (वेष) बना रखा था। मस्तिक में चन्दन का टीका, टोपी व झोली सिक्का एक फावड़ी (जो भजन करने के लिए लकड़ी की अंग्रेजी के अक्षर ‘‘T‘‘ के आकार की होती है) तथा एक डण्डा (लकड़ी का लट्ठा) साथ लिए हुए थे। ऊपर के शब्द में कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जब कोई सृष्टि (काल सृष्टि) नहीं थी तथा न सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर) अनामी लोक में था और कोई नहीं था। चूंकि साहेब कबीर ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा फिर काल (ज्योति निरंजन-ब्रह्म) की सृष्टि भी सतपुरुष ने रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती (पृथ्वी) भी नहीं थी तब से मेरी टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ आदि सर्व प्राणियों के शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा है अर्थात् मैं (कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ। सतयुग-त्रोतायुग-द्वापर तथा कलियुग ये चार युग तो मेरे सामने असंख्यों जा लिए। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हमने सतगुरु वचन में रह कर अजर-अमर घर
(सतलोक) पाया। इसलिए सर्व प्राणियों को तत्व (वास्तविक ज्ञान) बताया है कि पूर्ण गुरु से उपदेश ले कर आजीवन गुरु वचन में चलते हुए पूर्ण परमात्मा का ध्यान सुमरण करके उसी अजर-अमर सतलोक में जा कर जन्म-मरण रूपी अति दुःखमयी संकट से बच सकते हो।
लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट लम्बा धागा लिप्टा (सिम्टा) हुआ था, को निकाला और धागे का एक सिरा (आखिरी छौर) पकड़ा और आकाश में फैंक दिया। वह सारा धागा उस बंडल (कुकड़ी) से उधड़ कर सीधा खड़ा हो गया। साहेब कबीर जमीन से आकाश में उड़े तथा लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट सीधे खड़े धागे के ऊपर वाले सिरे पर बैठ कर कहा कि आओ नाथ जी! बराबर में बैठकर चर्चा करें। गोरखनाथ जी ने ऊपर उड़ने की कोशिश की लेकिन उल्टा जमीन पर टिक गए। पूर्ण परमात्मा (पूर्णब्रह्म) के सामने सिद्धियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। जब गोरख नाथ जी की कोई कोशिश सफल नहीं हुई, तब जान गए कि यह कोई मामूली भक्त या संत नहीं है। जरूर कोई अवतार (ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से) है। तब साहेब कबीर से कहा कि हे परम पुरुष! कृप्या
नीचे आएँ और अपने दास पर दया करके अपना परिचय दें। आप कौन शक्ति हो? किस लोक से आना हुआ है? तब
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
भी मेरा ही जाप करता है। मैं सतनाम का जाप करने वाले साधक को प्राप्त होता हूँ अर्थात् वहीं मेरे विषय में सही जानता है। हाड-चाम तथा लहु रक्त से बना मेरा शरीर नहीं है। कबीर साहेब सतनाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि मेरे मूल स्थान (सतलोक) में सतनाम के आधार से जाया जाता है। अन्य साधकों को संकेत करते हुए प्रभु
कबीर (कविर्देव) जी कह रहे हैं कि मैं उसी का जाप करता रहता हूँ। इसी मन्त्रा (सतनाम) से सतलोक जाने योग्य होकर फिर सारनाम प्राप्ति करके जन्म-मरण से पूर्ण छुटकारा मिलता है। यह तारन तरन पद (पूजा विधि) मैंने (कबीर साहेब अविनाशी भगवान ने) आपको बताई है। इसे कोई नहीं जानता। गोरख नाथ जी को बताया कि हे पुण्य आत्मा! आप काल क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) के जाल में ही हो। न जाने कितनी बार आपके जन्म हो चुके हैं। कभी चैरासी लाख जूनियों में कष्ट पाया। आपकी चारांे युगों की भक्ति को काल अब (कलियुग में) नष्ट कर देता यदि आप मेरी शरण मंे नहीं आते। यह काल इक्कीस ब्रह्मण्डों का मालिक है। इसको शाप लगा है कि एक लाख मानव शरीर धारी (देव व ऋषि भी) जीव प्रतिदिन खायेगा तथा सवा लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को नित्य
उत्पन्न करेगा। इस प्रकार प्रतिदिन पच्चीस हजार बढ़ रहे हैं। उनको ठिकाने लगाए रखने के लिए तथा कर्म भुगताने के लिए अपना कानून बना कर चैरासी लाख योनियाँ बना रखी हैं। इन्हीं 25 हजार अधिक उत्पन्न जीवों के अन्य प्राणियों के शरीर में प्रवेश करता है। जैसे खून में जीवाणु, वायु में जीवाणु आदि-2। इसकी पत्नी आदि माया (प्रकृति देवी) है। इसी से काल (ब्रह्म/अलख निरंजन) ने (पत्नी-पति के संयोग से) तीन पुत्रा ब्रह्मा-विष्णु-शिव उत्पन्न किए। इन तीनों को अपने सहयोगी बना कर ब्रह्मा को शरीर बनाने का, विष्णु को पालन-पोषण का और शिव को संहार करने का कार्य दे रखा है। इनसे प्रथम तप करवाता है फिर सिद्धियाँ भर देता है जिसके आधार पर इनसे अपना उल्लु सीधा करता है और अंत में इन्हें (जब ये शक्ति रहित हो जाते हैं) भी मार कर तप्त शिला पर भून कर खाता है तथा अन्य पुत्रा पूर्व ही उत्पन्न करके अचेत रखता है उनको सचेत करके अपना उत्पति, स्थिति तथा संहार का कार्य करता है। ऐसे अपने काल लोक को चला रहा है। इन सब से ऊपर पूर्ण परमात्मा है। उसका ही अवतार मुझ(कबीर परमेश्वर) को जान।
.
अवधू अविगत से चलि आया, मेरा कोई भेद मर्म ना पाया।
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।
मात-पिता मेरे कछु नाहीं, ना मेरे घर दासी(पत्नी)।
जुलहे को सूत आन कहाया, जगत करे मेरीहासी।
हाड चाम लहू ना मोरे, जाने सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद(मोक्ष) दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी। .
जो बूझे सोए बावरा, क्या है उमर हमारी।
असंखो युग प्रलय गई, मैं तब का ब्रहमचारी।
कोटी निरंजन हो गए परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रहमचारी।
अरबो तो ब्रह्मा गए, 49 कोटी कन्हैया।
7 कोटी शंभू गए, मोर एक नहीं पलैया।
.
जय बन्दीछोड की।
बन्दीछोड सतगुरू रामपाल जी महाराज
जी की जय।
Wednesday, June 1, 2016
Kabir Is God-
-दादु दयाल जी
-नाभादास जी
-रैदास जी
-गोरखनाथ जी
-नानक जी
-धर्मदास जी
-जगजीवन जी
-रामानन्द जी
-कबीर साहेब**
अवश्य जाने
कबीर सागर( बोध सागर -स्वसमवेद)पृष्ठ 171 से ।
दोहा-पाँच सह्रस अरु पाँचसो, जब कलियुग बित जाय ।
महापुरुष फरमान तब , जग तारन को आय ।।
हिन्दु तुर्क आदिक सबै , जेते जीव जहान ।
सतनाम की साख गहि , पावैँ पद निर्बान ।।
यथा सरितगण आप ही , मिलैँ सिँन्धु मेँ धाय ।
सत सुकृत के मध्ये तिमि, सबही पंथ समाय ।।
जबलगि पूरण होय नहिँ , ठीके को तिथि वार ।
कपट चातुरी तबहिलोँ , स्वसमवेद निरधार ।।
सबहिँ नारि नर शुध्द्र तब , जब ठीक का दिन अंत ।
कपट चातुरी छोड़ि के , शरण कबीर गंहत ।।
एक अनेक से हो गये , पुनि अनेक हो एक ।
हंस (जीव आत्मा) चलै सतलोक सब , सत्यनाम की की टेक ।।
घर घर बोध विचार हो , दुर्मति दुर बहाय ।
कलियुगमेँ एक हो सोई(सब), बरते सहज सुभाय ।।
कहा उग्र छुद्र हो , हर सबकी भवभीर ।
सो समान समदृष्टि हो, समरथ सत कबीर ।।
विषेश विचार -सन 2000 मेँ ईसा जी के जन्म को 2000 वर्ष बीत गए ।इससे 508 वर्ष पुर्व आध शंकराचार्य जी का जन्म हुआ । इन्की पुस्तक "हिमालय तीर्थ" के अनुसार कलयुग 3000 वर्ष बीत जाने पर आध शँकराचार्य जी का जन्म हुआ ।इस प्रकार सन 2000 को कलयुग (3000+2000+508)5508 वर्ष कलयुग बीत चुका है।
सन 2000 कलयुग 5508 वर्ष बीत चुका है और
सन1997 मेँ कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका है ।
जब कलयुग का समय 5500 वर्ष बीत जाऐगा उस
समय महापुरुष विश्व उध्दार के लिऐ प्रकट होगा । वो सतनाम(दो अक्षर का मँत्र) को प्रदान करेगा उसके ज्ञान से
परेरित होकर सभी धर्मो के अनुयायी एक होगे । सतनाम का जाप कर मोक्ष प्राप्त करेँगे
जीवा तथा दत्ता (तत्वा) को परमात्मा कबीर द्वारा शरण में लेना।
Saturday, May 28, 2016
कालले कवीर परमात्मासंग गरेको प्रार्थनाः-
जो जिव सकल लोक तुव आवे । कैसे क्षुधा सो मोरि मिटावे ।।
पुनि पुरष मो पर दाया कीन्हा । भौसागर कहं राज मुहिं दीन्हा ।।
तुमहूं कृपा मोपर करहूं । मागौं सो वर मुहि उच्चरहू ।।
सतयुग त्रेता द्बापर माहीं । तीनहु युग जिव थोरे जाहीं ।।
चौथा युग जब कलियुग आवे । तव तुव शरण जीव बहु जावे ।।
ऐसा वचन हार मुहिं दीजे । तब संसार गवन तुम कीजे ।।
पंथ एक तुम आप चलाऊ । जीवन लै सतलोक पठाऊ ।।
द्बादश पंथ करौं मैं साजा । नाम तुम्हार ले करौं अवाजा ।।
द्बादश यम संसार पठैहों । नाम तुम्हारे पंथ चलैहों ।।
मृतु अन्धा इक दूत हमारा । सुकृत गृह लैहैं अवतारा ।।
प्रथम दूत मम प्रगटै जायी । पीछे अंश तुम्हारा आयी ।।
यहि विधि जीवन को भरमाऊं । पुरुष नाम जीवन समझाऊं ।।
द्बादश पंथ जीव जो ऐहैं । सो हमरे मुख आन समैहैं ।।
एतिक विनती करो बनाई । कीजे कृपा देउ बकसाई ।।
(क) कालले, कवीर परमेश्वर संग धेरै पूण्य आत्माहरु केवल कलियुगमा मात्र सतलोकमा लैजाने वचन पाए पछि, भनेको थियो कि मैले कलियुगमा तपाई आउने वेलामा मानिसहरुलाई आफ्ना दुतहरु पठाएर सबैलाई यसरी भ्रमित गरिदिने छु कि स्वयं तपाईनै आएर संसारलाई सत्य ज्ञान दिए पनि संसारले तपाईको विश्वास गर्ने छैन ।
१ नाटकी तथा फल्मि तथा सांगितिक माहोल बनाएर ।
२ नशालु पदार्थ तथा काम वासनामा मानिसलाई लुप्त बनाएर ।
३ धन-मान को अहंकारमा मानिसहरुलाई भ्रमित गरेर ।
४ मनलाई आकर्षित र मोहित हुने भव्य स्थानहरुको निमार्ण गरेर
५ सहि भक्ति मार्गबाट बिमुख गराउन धेरै नक्कलि धर्म गुरुहरु पठाएर अनेक समुदायमा मानिसलाई भ्रमित गराई नक्कलि नाम (दीक्षा) दिएर
६ कवीरदेवकै नामबाट बाह्र पंथ कालको चलाएर ।
(ख) पूर्ण ब्रह्म कवीर परमेश्वरले आज भन्दा करिब ६०० वर्ष पहिला आएर विभिन्न लीला गर्ने क्रममा जब कलियुग जव ५५०५ वर्ष वित्छ तव म पुनः अंश अवतारको रुपमा प्रकट हुने छु भन्नु भएको थियो । त्यसैले कवीर देवको मिशनलाई कालले फेल गराउन कोशिस गरिरहेको छः
(१) त्यसैले जति पनि विकास भएको छ सन् १९५० पछिको समयमा तिब्र विकास भएको छ । किनकि भक्तहरुमा ज्ञान पुर्याउनको लागी भगवानले संचार जगत तथा विद्युतिय समानहरुको विस्तार गर्नु भयो, जस्लाई कालले आफ्नो अनुकूल दुरुपयोग गरिरहेको छ ।
(२) जति पनि मानिस शिक्षित भएका छन् सन् १९५० पछि व्यापक रुपमा भएका छन् । किनकि भगवानले सबैलाई शिक्षित बनाएर हाम्रो पवित्र ग्रन्थहरुमा भएको तत्वज्ञान सबैलाई बुझाउन चाहनुहुन्छ ।
(३) सबै धर्म गुरुहरु व्यापक रुपमा यहि समयको सेरो फेरोमा यही भारतमा नै आएका छन् । किनकि यहि समयमा नै कवीरदेव आफ्नो अंश रुपमा प्रकट भएर भक्त आत्माहरुलाई यथार्थ भक्ति मार्ग र नाम (दीक्षा) दिएर मोक्ष गराउन लागिरहनु भएकोछ ।
Thursday, May 12, 2016
गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान।
परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहींं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहींं पलने झूलंत।
अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद।
ऎसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत।
जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।
Sunday, May 8, 2016
कबीर, वेद मेरा भेद है, मै ना वेदन के माहि| जौन वेद से मै मिलु , वो वेद जानते नाही||
कबीर, वेद(सामवेद, यजुर्वेद, अथवर्वेद, ऋग्वेद)
कतेब ( कुर्आन शरीफ, जबूर,तौरात,इंजिल) झूठे नहीं भाई, झूठे है जो समझे नाहिं||
कबीर, वेद मेरा भेद है, मै ना वेदन के माहि|
जौन वेद से मै मिलु , वो वेद जानते नाही||
पुर्ण परमात्मा कबीर परमेश्र्वर जी है ,जो काशी बनारस मेँ जुलाहे की भूमिका करके गये थे। सभी सदग्रंन्थोँ मेँ यही प्रमाण हैँ की वो पुर्णपरमात्मा कबीर परमेश्वर है , सशरीर है मानव सदृश है सतलोक मेँ रहता है|
"सतयुग में सतसुकृत कह टेरा ,त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा|
द्वापर करूणामय कहाया,कलयुग नाम कबीर धराया||
मात पिता मेरे नहीं,बालक रूप प्रकटाया|
लहरतारा तालाब कमल पर तहाँ जुलाहे ने पाया ||
हाड़ चाम लोहू नही मोरे ,जाने सत्यनाम उपासी |
तारण तरन अभै पद दाता , मै हूँ कबीर अविनासी ||
पाँच तत्व का धड़ नही मेरा, जानूँ ज्ञान अपारा |
सत्य स्वरूपी नाम साहेब का, सो है नाम हमारा ||
आया जगत भवसागर तारण, साचि कहूँ जग लागै मारन |
जो कोई माने कहा हमारा, फिर नही होवे जन्म दुबारा||"
>> वेदोँ मेँ प्रमाण देखेँ
www.jagatgururampalji.org/hvedas.php
>> बाईबल मेँ प्रमाण देँखे
www.jagatgururampalji.org/hbible.php
>> पुराणोँ मेँ प्रमाण देँखे
www.jagatgururampalji.org/hpurans.php
>> गीता जी मेँ प्रमाण देखेँ
www.jagatgururampalji.org/hgita.php
>> कुरान शारिफ मेँ प्रमाण देखे
www.jagatgururampalji.org/hquran.php
>> श्री गुरु ग्रँथ साहिब मेँ प्रमाण देँखे
www.jagatgururampalji.org/hshrigurugranthsahib.php
>>कबीर सागर मेँ प्रमाण देखेँ
www.kabirsahib.jagatgururampalji.org/
Sunday, April 24, 2016
अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I
अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I
हम ही सतपुरुष दरवानी, मेट्टू उत्पति आवा जानी I
जो कोई कहा हमारा माने, सार शब्द कुं निश्चय आने I
हम ही शब्द शब्द की खानी, हम अविगत प्रवानी I
हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
हम ही गुप्त गुह्ज गम्भीरा, हम ही अविगत हमे कबीरा I
हम ही गरजे,हम ही बरषे, हम ही कुलफ जड़े हम निरखे I
हम ही सराफ जोहरी कहिया, हमरे हाथ लेखन सब बहिया I
यह सब खेल हमरे किये, हमसे मिले सो निश्चय जीये I
हम ही अदली जिन्दा जोगी , हम ही अमी महारस भोगी I
हमरा भेद न जाने कोई , हम ही सत्य शब्द निरमोहि I
ऐसा अदली दीप हमारा , कोटि बैकुण्ठ रूप की लारा I
संख पदम एक फुनि पर साजे , जहाँ अदली सत्य कबीर विराजे I
जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे I
जहाँ संखो ब्रह्म वेद उचारी , कोटि कन्हेया रास विचारी I
हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी I
दास गरीब हुक्म का हेला , हम अविगत अदली का चेल।।।।
_____सत
_________साहेब
राम नाम रटते रहो जब लग घट मेँ प्राण ,
सतगुरु पद विश्वास दृढ़ ,सहज परम पद पावै ।।
कबीर,साथी हमारे चले गऐ हम भी चालन हार ,
कोऐ कागज बाकी रह रही ताते लागरी वार ।।
जो सुख है सतसंग वो बेकूँठ(स्वर्ग) भी ना ।
सतपुरुष जग भेद ना जाने ।
नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।
सबही से इक पुरुष निरारा,
पूर्ण मोक्ष ताहि तैँ पाई ।।
वाही नाम है सबन का सारा,
आदि नाम वाही कबीर हमारा ।।
हँसा मौज ना पावता तेरी चूक चाकरी माही ।।
ये धारी मस्करे ना जाने कितने जा लिऐ ऊत ।।
मंरु तो तुम सुमिरत मरुं ,जीवत समरुँ नित्य ।।
गरीबदास मुझ दीन की , रखियो बहुत संभार|