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Sunday, January 8, 2017

कबीर (कविर्देव) जी स्वयं अपने मूल स्थान सतलोक से आए ( विक्रमी संवत् 1455 ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (सन्_1398) सुबह सुबह ब्रह्ममुहुर्त में)

#कबीर_साहेब (#कविर्देव#का_कलियुग_में_प्राकाट्य :-


#विक्रमी_संवत्_1455_ज्येष्ठ_मास_की_पूर्णिमा (#सन्_1398) सुबह-सुबह #ब्रह्ममुहुर्त में वह पूर्ण परमेश्वर कबीर (कविर्देव) जी स्वयं अपने #मूल_स्थान_सतलोक से आए। #काशी_में_लहरतारा_तालाब_के_अंदर_कमल_के_फूल_पर_एक_बालक_का_रूप_धारण_किया


पहले मैं आपको नीरू-नीमा के बारे में बताना चाहूँगा कि ये कौन थे?
💠 #नीरू_नीमा_कौन_थे ?? :-

                                     #द्वापर_युग_में_नीरू_नीमा_सुपच_सुदर्शन_के_माता_पिता_थे। इन्होंने कबीर साहेब की बात को उस समय स्वीकार नहीं किया था। अंत में सुदर्शन ने #करूणामय_रूप_में_आए_कबीर_साहेब से प्रार्थना की थी ।
कि प्रभु आपने मुझे उपदेश दे दिया तो सब कुछ दे दिया। आपसे आज तक कुछ माँगने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ी। क्योंकि आपने सर्व मनोकामना पूर्ण कर दी तथा जो वास्तविक भक्ति धन है उससे भी परिपूर्ण कर दिया। एक प्रार्थना है दास की यदि उचित समझो तो स्वीकार कर लेना। मेरे माता पिता यदि किसी जन्म में कभी मनुष्य शरीर प्राप्त करें तो इनको संभालना प्रभु। ये बहुत पुण्यात्मा हैं, लेकिन आज इनकी बुद्धि विपरीत हो गई है। ये परमात्मा की वाणी को मान नहीं रहे। कबीर साहेब ने कहा चिंता न कर, अब तू अपने माता पिता के चक्कर में यहाँ उलझ जायेगा। आने दे समय इनको भी संभालूंगा। काल जाल से पार करूँगा। तू निश्चिंत होकर सतलोक जा। सुदर्शन जी सतलोक चले गये।

 सुदर्शन के माता-पिता के कलयुग में नीरू-नीमा के जन्म से पहले भी ब्राह्मण घर में इनके दो जन्म हुए, उस समय भी निःसंतान ही रहे। फिर तीसरा मनुष्य जन्म काशी में हुआ। उस समय भी वे #ब्राह्मण_और_ब्राह्मणी (#गौरी_शंकर_और_सरस्वती के नाम से) थे, संतान फिर भी नहीं थी।

नीरू तथा नीमा दोनों गौरी शंकर और सरस्वती नाम के ब्राह्मण जाति से थे। ये #भगवान_शिव के उपासक थे। भगवान शिव की महिमा शिव पुराण से निःस्वार्थ भाव से भक्तात्माओं को सुनाया करते थे। किसी से पैसा नहीं लेते थे। इतने नेक आत्मा थे कि यदि कोई उनको अपने आप दक्षिणा दे जाता था, उसमें से अपने भोजन योग्य रख लेते थे और जो बच जाता था उसका भण्डारा कर देते थे।

अन्य स्वार्थी ब्राह्मण गौरी शंकर तथा सरस्वती से इष्र्या रखते थे क्योंकि गौरी शंकर निस्वार्थ कथा किया करते थे। पैसे के लालच में भक्तों को गुमराह नहीं करते थे, जिस कारण से प्रशंसा के पात्रा बने हुए थे। उधर से मुस्लमानों को ज्ञान हो गया कि इनके साथ कोई हिन्दू, ब्राह्मण नहीं है। उन्होंने इसका लाभ उठाया और बलपूर्वक उनको मुस्लमान बना दिया। मुस्लमानों ने अपना पानी उनके सारे घर में छिड़क दिया तथा उनके मुँह में भी डाल दिया, सारे कपड़ों पर छिड़क दिया। उससे हिन्दू ब्राह्मणों ने कहा कि अब ये मुस्लमान बन गए हैं। आज के बाद इनका हमारे से कोई भाई-चारा नहीं रहेगा।

🙏बेचारे गौरी शंकर तथा सरस्वती विवश हो गए। मुसलमानों ने पुरुष का नाम नीरू तथा स्त्राी का नाम नीमा रखा। पहले उनके पास जो पूजा आती थी उससे उनकी रोजी-रोटी चल रही थी और जो कोई रूपया-पैसा बच जाता था वे उसका दुरूपयोग नहीं करते थे। उस बचे धन से धर्म-भण्डारा कर देते थे। पूजा आनी भी बंद हो गई। उन्होंने सोचा अब क्या काम करें? उन्होंने एक कपड़ा बुनने की खड्डी लगा ली और जुलाहे का कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। कपड़ा बुन कर निर्वाह करने लगे कपड़े की बुनाई से घर के खर्च के पश्चात् जो पैसा बच जाता था उसको भण्डारों में लगा देते थे। हिन्दू ब्राह्मणों ने नीरू-नीमा का गंगा घाट पर गंगा दरिया में स्नान करना बंद कर दिया था। कहते थे कि अब तुम मुसलमान हो गए हो।

गंगा दरिया का ही पानी लहरों के द्वारा उछल कर काशी में एक लहरतारा नामक बहुत बड़े सरोवर को भरकर रखता था। बहुत निर्मल जल भरा रहता था। उसमें कमल के फूल उगे हुए थे। सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में अपने सत्यलोक (ऋतधाम) से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर (कविर्देव) बालक रूप बनाकर लहर तारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए। उसी लहर तारा तालाब पर नीरू-नीमा सुबह-सुबह ब्रह्ममुहुर्त में स्नान करने के लिए प्रतिदिन जाया करते थे। (ब्रह्ममुहुर्त कहते हैं सूर्योदय होने से डेढ घण्टा पूर्व) एक बहुत तेजपुंज का चमकीला गोला (बालक रूप में परमेश्वर कबीर साहेब जी तेजोमय शरीर युक्त आए थे, दूरी के कारण प्रकाश पुंज ही नजर आता है) ऊपर से (सत्यलोक से) आया और कमल के फूल पर सिमट गया। जिससे सारा लहर तारा तालाब जगमग-जगमग हो गया था और फिर एक कोने में जाकर वह अदृश्य हो गया। इस दृश्य को स्वामी रामानन्द जी के एक शिष्य #ऋषि_अष्टानन्द_जी आँखों देख रहे थे। अष्टानंद जी भी स्नान करने के लिए एकांत स्थान पर उसी लहर तारा तालाब पर प्रतिदिन जाया करते थे। वहाँ बैठकर अपनी साधना गुरुदेव ने जो मंत्रा दिए थे उसका जाप करते थे और प्रकृति का आनन्द लिया करते थे। स्वामी अष्टानंद जी ने जब देखा कि इतना तेज प्रकाश जिससे आँखे भी चैंधिया गई। ऋषि जी ने सोचा कि ये कोई मेरी भक्ति की उपलब्धि है या मेरा धोखा है। यह सोचकर कारण पूछने के लिए अपने गुरुदेव के पास गए।

#आदरणीय_रामानन्द_जी से अष्टानन्द जी ने पूछा कि हे गुरुदेव! मैंने आज ऐसी रोशनी देखी है जो कि जिन्दगी में कभी नहीं देखी। सर्व वृतांत बताया कि आकाश से एक प्रकाश समूह आ रहा था। मैंने देखा तो मेरी आँखें उस रोशनी को सहन नहीं कर सकी। इस लिए बन्द हो गई। (जैसे सूर्य की तरफ देखने के पश्चात सूर्य का एक गोला-सा ही दिखाई देता है)। क्या यह मेरी भक्ति की कोई उपलब्धि है या मेरा दृष्टिदोष था? स्वामी रामानन्द जी ने कहा कि पुत्रा ऐसे लक्षण तब होते हैं जब ऊपर के लोकों से कोई अवतारगण आते हैं। वे किसी के यहाँ प्रकट होंगे, किसी माँ के जन्म लेंगे और फिर लीला करेंगे। (क्योंकि इन ऋषियों को इतना ही ज्ञान है कि माँ से ही जन्म होता है) जितना ऋषि को ज्ञान था अपने शिष्य का शंका समाधान कर दिया।

नीरू व नीमा प्रतिदिन की तरह उस दिन भी स्नान करने जा रहे थे। निमा  ने प्रभु से प्रार्थना कर्ति थी  की कि हे भगवान शिव (क्योंकि वे भले ही मुस्लमान बन गए थे लेकिन अपनी वह साधना हृदय से नहीं भूल पा रहे थे जो इतने वर्षों से कर रहे थे।) क्या आपके घर में हमारे लिए एक बच्चे की कमी पड़ गई? हमे भी एक लाल दे देते, हमारा जीवन भी सफल हो जाता। ऐसा कहकर फूट-फूट कर रोने लगती थी । उसके पति नीरू ने कहा कि नीमा प्रभु की इच्छा पर प्रसन्न रहने में ही हित होता है। यदि ऐसे रोती रहेगी तो तेरा शरीर कमजोर हो जायेगा, आँखों से दिखना बंद हो जायेगा। हमारे भाग्य में संतान नहीं है। ऐसे कहते-कहते लहर तारा तालाब पर पहुँच गए। 

थोड़ा-थोड़ा अंधेरा था। नीमा स्नान करके बाहर आई। अपने कपड़े बदले। नीरू स्नान करने के लिए तालाब में प्रवेश करके गोते मार-मार कर नहाने लगा। नीमा जब स्नान करते समय पहना हुआ कपड़ा धोने के लिए दोबारा तालाब के किनारे पर गई, तब तक अंधेरा हट गया था। सूर्य उदय होने वाला ही था। नीमा ने तालाब में देखा कि सामने कमल के फूल पर कोई वस्तु हिल रही है। कबीर साहेब ने बच्चे के रूप में एक पैर का अँगूठा मुख में दे रखा था और एक पैर को हिला रहे थे। पहले तो नीमा ने सोचा कि शायद कोई सर्प न हो और मेरे पति की तरफ आ रहा हो। फिर ध्यान से देखा तो समझते देर न लगी कि ये तो कोई बच्चा है। बच्चा और कमल के फूल पर। एकदम अपने पति को आवाज लगाई कि देखना जी बच्चा डूबेगा, बच्चा डूबेगा। नीरू बोला कि नादान तू बच्चों के चक्कर में पागल हो गई है। पानी में भी तुझे बच्चा नजर आने लगा। नीमा ने कहा हाँ, वह सामने कमल के फूल पर देखो। नीमा की जोरदार आवाज से प्रभावित होकर जिस तरफ हाथ से संकेत कर रही थी नीरू ने उधर देखा, एक कमल के फूल पर नवजात शिशु लेटा हुआ था। नीरू उस बच्चे को फूल समेत उठा लाए और नीमा को दे दिया। स्वयं स्नान करने लगा। नीरू स्नान करके बाहर आया नीमा बच्चे के रूप में आए परमेश्वर को बहुत प्यार कर रही थी तथा शिव प्रभु की प्रसंशा तथा स्तुति कर रही थी कि हे प्रभु आपने मेरी वर्षों की मनोकामना पूर्ण कर दी। (क्योंकि वह शिव की पुजारिन थी।) कह रही थी हे शिव प्रभु आज ही हृदय से पुकार की थी, आज ही सुन ली।


उस कबीर परमेश्वर को जिसका नाम लेने से हमारे हृदय में एक विशेष हलचल-सी होती है, उसके प्रेम में रोम-रोम खड़ा हो जाता है, आत्मा भर कर आती है और जिस माता-बहन ने सीने से लगाकर पुत्रावत प्यार किया जो आनन्द उस माई को हुआ होगा। वह अवर्णनीय है। जैसे व्यक्ति गुड़ खा कर अन्य को उस के आनन्द को नहीं बता सकता खाने वाला ही जान सकता है। जैसे माँ प्यार करती है ऐसे शिशु रूपधारी परमेश्वर के कभी मुख को चूमा, कभी सीने से लगा रही थी और फिर बार-बार उसके मुख को देख रही थी। इतने में नीरू स्नान करके बाहर आया। (क्योंकि मनुष्य समाज की तरफ ज्यादा देखता है) उसने विचार लगाया कि न तो अभी मुस्लमानों से हमारा कोई विशेष प्यार बना है और हिन्दू ब्राह्मण हमारे से द्वेष करते हैं। पहले इसी अवसर का लाभ मुस्लमानों ने उठाया कि हमें मुस्लमान बना दिया। हमारा कोई साथी नहीं है। यदि हम इस बच्चे को ले जायेंगे तो लोग पूछेगें कि बताओ इस बच्चे के माता-पिता कौन हैं? तुम किसी का बच्चा उठा कर लाए हो। इसकी माँ रो रही होगी। हम क्या जवाब देंगे, कैसे बतायेंगे? कमल के फूल पर बतायेंगे तो कोई मानेगा नहीं। यह सर्व विचार करके नीरू ने कहा कि नीमा इस बच्चे को यहीं छोड़ दे। नीमा ने कहा कि जी मैं इस बच्चे को नहीं छोड़ सकती। मेरे प्राण जा सकते हैं, मैं तड़फ कर मर जाऊँगी। न जाने मेरे ऊपर इस बालक ने क्या जादू कर दिया? मैं इसको नहीं छोड़ सकती। नीरू ने नीमा को सारी बात समझाई कि हमारे साथ ऐसा बन सकता है। नीमा ने कहा कि इस बच्चे के लिए मैं देश निकाला भी ले सकती हूँ परन्तु इसको नहीं छोडूंगी। नीरू ने उसकी नादानी को देख कर सोचा कि यह तो पागल हो गई, समाज को भी नहीं देख रही है। नीरू ने नीमा से कहा कि मैंने आज तक तेरी बात की अवहेलना नहीं की थी क्योंकि हमारे बच्चे नहीं थे। जो तू कहती रही मैं स्वीकार करता रहा। परन्तु आज मैं तेरी यह बात नहीं मानूंगा। या तो
इस बालक को यहीं पर रख दे, नहीं तो तुझे अभी दो थप्पड़ लगाता हूँ। उस महापुरुष ने पहली बार अपनी पत्नी की तरफ हाथ किया था। उसी समय शिशु रूप में कबीर परमेश्वर   कविर्देव  ने कहा कि नीरू मुझे घर ले चलो। तुम्हें कोई आपत्ति नहीं आयेगी। शिशु रूप में परमेश्वर के वचन सुनकर नीरू घबरा गया कहीं यह बालक कोई फरिश्ता हो अथवा कोई सिद्ध पुरुष हो और तेरे ऊपर कोई आपत्ति न आ जाए। चुप करके चल पड़ा।

🔷जब बच्चे को लेकर घर आ गए तो सभी यह पूछना तो भूल गये कि कहाँ से लाए हो? काशी के स्त्राी तथा पुरुष लड़के को देखने आए तथा कहने लगे कि यह तो कोई  देवता नजर आता है। इतना सुन्दर शरीर, ऐसा तेजोमय बच्चा पहले कभी हमने नहीं देखा। कोई कहे यह तो #ब्रह्मा_विष्णु_महेश में से कोई प्रभु है। ब्रह्मा-विष्णु-महेश कहते हैं कि यह तो कोई ऊपर के लोकों से आई हुई शक्ति है। ऐसे सब अपनी-अपनी टिप्पणी कर रहे थे।
गरीब, चैरासी बंधन काटन, कीनी कलप कबीर। भवन चतुरदश लोक सब, टूटैं जम जंजीर।।376।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय। सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।377।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि। बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।378।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक। पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।379।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि। जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।380।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार। मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।381।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान। परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।382।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत। जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।383।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर। कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।384।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहीं, कोई किंनर कहलाय। कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।388।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश। सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।385।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप। मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।386।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहीं पलने झूलंत। अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।387।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद। एैसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।389।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत। जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।390।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश। ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।।391।।
परमेश्वर कबीर जी ही अनादि परम गुरु हैं। वे ही रूपान्तर करके सन्त व ऋषि वेश में समय-समय पर स्वयंभू स्वयं प्रकट होते हैं। काल के दूतों (सन्तो) द्वारा बिगाड़े तत्वज्ञान को स्वस्थ करते हैं। कबीर साहेब ने ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवताओं, ऋषि मुनी व संतों को समय-2 पर अपने सतलोक से आकर नाम उपदेश दिया।

आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने अपनी वाणी में लिखा है जो कबीर जी ने स्वयं बताया है:--
आदि अंत हमरा नहीं, मध्य मिलावा मूल।
ब्रह्मा ज्ञान सुनाईया, धर पिंडा अस्थूल।।

श्वेत भूमिका हम गए, जहां विश्वम्भरनाथ।
हरियम् हीरा नाम दे, अष्ट कमल दल स्वांति।।

हम बैरागी ब्रह्म पद, सन्यासी महादेव।
सोहं मंत्रा दिया शंकर कूं, करत हमारी सेव।।

हम सुल्तानी नानक तारे , दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रोता नाम मुनिन्द्र मेरा।
द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।
चारों युगों में हम पुकारैं, कूक कहैं हम हेल रे।
हीरे मानिक मोती बरसें, ये जग चुगता ढेल रे।
🎾🙏 उपरोक्त वाणी से सिद्ध है कि कबीर परमेश्वर ही अविनाशी परमात्मा है। यही अजरो-अमर है। यही परमात्मा चारों युगों में स्वयं अतिथि रूप में कुछ समय के लिए इस संसार में आकर अपना सतभक्ति मार्ग देते हैं।


..🌕👏 सत साहेब जी 👏🙏🙏

Saturday, December 24, 2016

भगवान, इशवर को जानीऐ







कबीर :-
हम ही अलख अल्लाह है, कुतुब गौस और पीर
गरीबदास खालिक धणी, हमरा नाम कबीर

गरीब :-
अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, ये कुल के सृजनहार

दादू:-
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार
दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार

कबीर :-
ना हमरे कोई मात-पिता, ना हमरे घर दासी
जुलाहा सुत आन कहाया, जगत करै मेरी हाँसी

कबीर :-
पानी से पैदा नहीं, श्वासा नहीं शरीर
अन्न आहार करता नहीं, ताका नाम कबीर

कबीर :-
सतयुग में सत्यसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा,
द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया

कबीर :-
अरबों तो ब्रह्मा गये, उन्नचास कोटि कन्हैया,
सात कोटि शम्भू गये, मोर एक पल नहीं पलैया

कबीर :-
नहीं बूढा नहीं बालक, नहीं कोई भाट भिखारी
कहै कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी

कबीर :-
पाँच तत्व का धड नहीं मेरा, जानू ज्ञान अपारा
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा

कबीर :-
हाड- चाम लहू नहीं मेरे, जाने सत्यनाम उपासी
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी

कबीर :-
अधर द्वीप (सतलोक) भँवर गुफा, जहाँ निज वस्तु सारा
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन भी, धरता ध्यान हमारा

कबीर :-
जो बूझे सोई बावरा, पूछे उम्र हमारी
असंख्य युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी

कबीर :-
अवधू अविगत से चल आया, मेरा कोई मर्म भेद ना पाया

"" कबीर"" शब्द का अर्थ


सर्वश्रेष्ठ, महान, सबसे बडा, सर्वोत्तम

Tuesday, October 25, 2016

कबिर साहेब

सत गुरुदेव जी कि जय हो।

जो सत्य का दर्शन कराये,
और झूठ को न कभी सराहे ।...वह कबीर है ।
जो फकीर सा जीवन बिताये,
और ताज को सर न झुकाये ।...वह कबीर है ।
जो आडम्बर को आग लगाये,
और भटकों को राह दिखाये ।...वह कबीर है ।
जो तलवार से भी भय न खाये,
और सब को खरी-खरी सुनाये।...वह कबीर है ।
जो शीश अपना कर में उठाये,
और मृत्यु को भी देख मुस्कराये।...वह कबीर है ।

जो मानुष-मानुष का भेद मिटाये,
और हर मानुष को एक बताये।...वह कबीर है ।
जो धर्मों की दीवार गिराये,
और राम रहीम को एक बताये ।...वह कबीर है ।
जो ज्ञान की गंगा बहाये,
और पाठ उल्टा न पढ़ाये ।...वह कबीर है ।
जो प्रेम का रस सर्वत्र बहाये,
और कमियाँ खुद में बताये ।...वह कबीर है ।
जो परमात्मा से परिचय कराये,
और जीव को मुक्ति दिलाये ।...वह कबीर है ।
जो जीवन का पारखी कहाये,
और इन्सान में भगवान दिखाये ।...वह कबीर है ।
जो हर मानुष की खुशियों खातिर,
खुद चिंता में कभी सो न पाये ।...वह कबीर है ।
जो जगत के सारे भरम मिटाये,
और माया-मोह से हमें बचाये ।...वह कबीर है ।
जो खुद शिक्षा तो कबहुँ न पाये,
पर दुनिया भर को पाठ पढ़ाये ।...वह कबीर है ।
जो अपने को अनपढ़ बतलाये,
पर परम तत्व का ज्ञानी कहलाये ।...वह कबीर है ।
जो धन दौलत न पास धराये,
और अपने को छोटा बतलाये ।...वह कबीर है ।
जो पहले सब को शीश झुकाये,
पर दुनिया का साहेब कहलाये ।...वह कबीर है ।
जो ध्यान में ही आनन्द पाये,
और संत शिरोमणि कहलाये ।...वह कबीर है ।

Tuesday, June 28, 2016

गोरख नाथ (सिद्ध महात्मा), कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा)

एक समय गोरख नाथ (सिद्ध महात्मा) काशी (बनारस) में स्वामी रामानन्द जी (जो साहेब कबीर के गुरु जी थे) से शास्त्रार्थ करने के लिए (ज्ञान गोष्टी के लिए) आए। जब ज्ञान गोष्टी के लिए एकत्रित हुए तब कबीर साहेब भी अपने पूज्य गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के साथ पहुँचे थे। एक उच्च आसन पर रामानन्द जी बैठे उनके चरणों में बालक रूप में कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) बैठे थे। गोरख नाथ जी भी एक उच्च आसन पर बैठे थे तथा अपना त्रिशूल अपने आसन के पास ही जमीन में गाड़ रखा था। गोरख नाथ जी ने कहा कि रामानन्द मेरे से चर्चा करो। 
उसी समय बालक रूप (पूर्ण ब्रह्म) कबीर जी ने कहा - नाथ जी पहले मेरे से चर्चा करें। पीछे मेरे गुरुदेव जी से बात करना। 
साहेब कबीर जी ने गोरख नाथ जी को बताया हैं कि मैं कब से वैरागी बना।साहेब कबीर ने उस समय वैष्णों संतों जैसा वेष बना
रखा था। जैसा श्री रामानन्द जी ने बाणा (वेष) बना रखा था। मस्तिक में चन्दन का टीका, टोपी व झोली सिक्का एक फावड़ी (जो भजन करने के लिए लकड़ी की अंग्रेजी के अक्षर ‘‘T‘‘ के आकार की होती है) तथा एक डण्डा (लकड़ी का लट्ठा) साथ लिए हुए थे। ऊपर के शब्द में कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जब कोई सृष्टि (काल सृष्टि) नहीं थी तथा न सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर) अनामी लोक में था और कोई नहीं था। चूंकि  साहेब कबीर ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा फिर काल (ज्योति निरंजन-ब्रह्म) की सृष्टि भी सतपुरुष ने रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती (पृथ्वी) भी नहीं थी तब से मेरी टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ आदि सर्व प्राणियों के शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा है अर्थात् मैं (कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ। सतयुग-त्रोतायुग-द्वापर तथा कलियुग ये चार युग तो मेरे सामने असंख्यों जा लिए। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हमने सतगुरु वचन में रह कर अजर-अमर घर
(सतलोक) पाया। इसलिए सर्व प्राणियों को तत्व (वास्तविक ज्ञान) बताया है कि पूर्ण गुरु से उपदेश ले कर आजीवन गुरु वचन में चलते हुए पूर्ण परमात्मा का ध्यान सुमरण करके उसी अजर-अमर सतलोक में जा कर जन्म-मरण रूपी अति दुःखमयी संकट से बच सकते हो। 

इस बात को सुन कर गोरखनाथ जी ने पूछा हैं कि आपकी आयु तो बहुत छोटी है अर्थात् आप लगते तो हो बालक से।यह सुन कर श्री गोरखनाथ जी जमीन में गड़े लगभग 7 फूटऊँचें त्रिशूल के ऊपर के भाग पर अपनी सिद्धि शक्ति से उड़ कर बैठ गए और कहा कि यदि आप इतने महान् हो तो मेरे बराबर में (जमीन से लगभग सात फूट) ऊँचा उठ कर बातें करो। 

यह सुन कर कबीर साहेब बोले नाथ जी! ज्ञान गोष्टी के लिए आए हैं न कि नाटक बाजी करने के लिए। आप नीचे आएं तथा सर्व भक्त समाज के सामने यथार्थ भक्ति संदेश दें। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि आपके पास कोई शक्ति नहीं है। आप तथा आपके गुरुजी दुनियाँ को गुमराह कर रहे हो। आज तुम्हारी पोल खुलेगी। ऐसे हो तो आओ बराबर। 

तब कबीर साहेब के बार-2 प्रार्थना करने पर भी नाथ जी बाज नहीं आए तो साहेब कबीर ने अपनी पराशक्ति (पूर्ण सिद्धि) का प्रदर्शन किया। साहेब कबीर की जेब में एक कच्चे धागे की रील (कुकड़ी) थी जिसमें
लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट लम्बा धागा लिप्टा (सिम्टा) हुआ था, को निकाला और धागे का एक सिरा (आखिरी छौर) पकड़ा और आकाश में फैंक दिया। वह सारा धागा उस बंडल (कुकड़ी) से उधड़ कर सीधा खड़ा हो गया। साहेब कबीर जमीन से आकाश में उड़े तथा लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट सीधे खड़े धागे के ऊपर वाले सिरे पर बैठ कर कहा कि आओ नाथ जी! बराबर में बैठकर चर्चा करें। गोरखनाथ जी ने ऊपर उड़ने की कोशिश की लेकिन उल्टा जमीन पर टिक गए। पूर्ण परमात्मा (पूर्णब्रह्म) के सामने सिद्धियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। जब गोरख नाथ जी की कोई कोशिश सफल नहीं हुई, तब जान गए कि यह कोई मामूली भक्त या संत नहीं है। जरूर कोई अवतार (ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से) है। तब साहेब कबीर से कहा कि हे परम पुरुष! कृप्या
नीचे आएँ और अपने दास पर दया करके अपना परिचय दें। आप कौन शक्ति हो? किस लोक से आना हुआ है? तब 

कबीर साहेब नीचे आए और कहा कि -
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
 

साहेब कबीर ने कहा कि हे अवधूत गोरखनाथ जी मैं तो अविगत स्थान (जिसकी गति/भेद कोई नहीं जानता उस सतलोक) से आया हूँ। मैं तो स्वयं शक्ति से बालक रूप बना कर काशी (बनारस) मंे एक लहर तारा तालाब में कमल के फूल पर प्रकट हुआ हूँ। वहाँ पर नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति को मिला जो मुझे अपने घर ले आया। मेरे कोई मात-पिता नहीं हैं। न ही कोई घर दासी (पत्नी) है और जो उस परमात्मा का वास्तविक नाम है, वही कबीर नाम मेरा है। आपका ज्योति स्वरूप जिसे आप अलख निरंजन (निराकार भगवान) कहते हो वह ब्रह्म
भी मेरा ही जाप करता है। मैं सतनाम का जाप करने वाले साधक को प्राप्त होता हूँ अर्थात् वहीं मेरे विषय में सही जानता है। हाड-चाम तथा लहु रक्त से बना मेरा शरीर नहीं है। कबीर साहेब सतनाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि मेरे मूल स्थान (सतलोक) में सतनाम के आधार से जाया जाता है। अन्य साधकों को संकेत करते हुए प्रभु
कबीर (कविर्देव) जी कह रहे हैं कि मैं उसी का जाप करता रहता हूँ। इसी मन्त्रा (सतनाम) से सतलोक जाने योग्य होकर फिर सारनाम प्राप्ति करके जन्म-मरण से पूर्ण छुटकारा मिलता है। यह तारन तरन पद (पूजा विधि) मैंने (कबीर साहेब अविनाशी भगवान ने) आपको बताई है। इसे कोई नहीं जानता। गोरख नाथ जी को बताया कि हे पुण्य आत्मा! आप काल क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) के जाल में ही हो। न जाने कितनी बार आपके जन्म हो चुके हैं। कभी चैरासी लाख जूनियों में कष्ट पाया। आपकी चारांे युगों की भक्ति को काल अब (कलियुग में) नष्ट कर देता यदि आप मेरी शरण मंे नहीं आते। यह काल इक्कीस ब्रह्मण्डों का मालिक है। इसको शाप लगा है कि एक लाख मानव शरीर धारी (देव व ऋषि भी) जीव प्रतिदिन खायेगा तथा सवा लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को नित्य
उत्पन्न करेगा। इस प्रकार प्रतिदिन पच्चीस हजार बढ़ रहे हैं। उनको ठिकाने लगाए रखने के लिए तथा कर्म भुगताने के लिए अपना कानून बना कर चैरासी लाख योनियाँ बना रखी हैं। इन्हीं 25 हजार अधिक उत्पन्न जीवों के अन्य प्राणियों के शरीर में प्रवेश करता है। जैसे खून में जीवाणु, वायु में जीवाणु आदि-2। इसकी पत्नी आदि माया (प्रकृति देवी) है। इसी से काल (ब्रह्म/अलख निरंजन) ने (पत्नी-पति के संयोग से) तीन पुत्रा ब्रह्मा-विष्णु-शिव उत्पन्न किए। इन तीनों को अपने सहयोगी बना कर ब्रह्मा को शरीर बनाने का, विष्णु को पालन-पोषण का और शिव को संहार करने का कार्य दे रखा है। इनसे प्रथम तप करवाता है फिर सिद्धियाँ भर देता है जिसके आधार पर इनसे अपना उल्लु सीधा करता है और अंत में इन्हें (जब ये शक्ति रहित हो जाते हैं) भी मार कर तप्त शिला पर भून कर खाता है तथा अन्य पुत्रा पूर्व ही उत्पन्न करके अचेत रखता है उनको सचेत करके अपना उत्पति, स्थिति तथा संहार का कार्य करता है। ऐसे अपने काल लोक को चला रहा है। इन सब से ऊपर पूर्ण परमात्मा है। उसका ही अवतार मुझ(कबीर परमेश्वर) को जान।
 
गोरख नाथ के मन में विश्वास हो गया कि कोई शक्ति है जो कुल का मालिक है। गोरख नाथ ने कहा कि मेरी एक शक्ति और देखो। यह कह कर गंगा की ओर चल पड़ा। सर्व दर्शकों की भीड़ भी साथ ही चली। लगभग 500 फुट पर गंगा नदी थी। उसमंे जा कर छलांग लगाते हुए कहा कि मुझे ढूंढ दो। फिर मैं (गोरखनाथ) आप का शिष्य बन जाऊँगा। गोरखनाथ मछली बन गए। साहेब कबीर ने उसी मछली को पानी से बाहर निकाल कर सबके सामने गोरखनाथ बना दिया। तब गोरखनाथ जी ने कबिर साहेबजीकि भकती कि
.
अवधू अविगत से चलि आया, मेरा कोई भेद मर्म ना पाया।
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।
मात-पिता मेरे कछु नाहीं, ना मेरे घर दासी(पत्नी)।
जुलहे को सूत आन कहाया, जगत करे मेरीहासी।
हाड चाम लहू ना मोरे, जाने सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद(मोक्ष) दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी। .
जो बूझे सोए बावरा, क्या है उमर हमारी।
असंखो युग प्रलय गई, मैं तब का ब्रहमचारी।
कोटी निरंजन हो गए परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रहमचारी।
अरबो तो ब्रह्मा गए, 49 कोटी कन्हैया।
7 कोटी शंभू गए, मोर एक नहीं पलैया।
.
जय बन्दीछोड की।
बन्दीछोड सतगुरू रामपाल जी महाराज
जी की जय।

Wednesday, June 1, 2016

Kabir Is God-

सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान। झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
-गरीबदास जी
और संत सब कूप हैं, केते झरिता नीर। दादू अगम अपार है, दरिया सत्य कबीर।।
-दादु दयाल जी
वाणी अरबो खरवो, ग्रन्थ कोटी हजार। करता पुरुष कबीर, रहै नाभे विचार।।
-नाभादास जी
साहेब कबीर समर्थ है, आदी अन्त सर्व काल। ज्ञान गम्या से देदीया, कहै रैदास दयाल॥
-रैदास जी
नौ नाथ चौरसी सिद्धा, इनका अन्धा ज्ञान। अवीचल ज्ञान कबीर का, यो गति विरला जान॥
-गोरखनाथ जी
खालक आदम सिरजिआ आलम बडा कबीर॥ काइम दिइम कुदरती सिर पीरा दे पीर॥ सयदे (सजदे) करे खुदाई नू आलम बडा कबीर॥
-नानक जी
बाजा बाजा रहितका, परा नगरमे शोर। सतगुरू खसम कबीर है, नजर न आवै और॥
-धर्मदास जी
सन्त अनेक सन्सार मे, सतगुरू सत्य कबीर। जगजीवन आप कहत है, सुरती निरती के तीर॥
-जगजीवन जी
तुम स्वामी मै बाल बुद्धि, भर्म कर्म किये नाश। कहै रामानन्द निज ब्रह्म तुम, हमरा दुढ विश्वास।।
-रामानन्द जी
कबीर इस संसार को, समझांऊ के बार । पूंछ जो पकङे भेड़ की, उतरया चाहे पार ॥
-कबीर साहेब**
सत् साहेब..

अवश्य जाने

आचुका जगततारनहार" " आ चुका जगततारनहार"

कबीर सागर( बोध सागर -स्वसमवेद)पृष्ठ 171 से ।

दोहा-पाँच सह्रस अरु पाँचसो, जब कलियुग बित जाय ।
महापुरुष फरमान तब , जग तारन को आय ।।
हिन्दु तुर्क आदिक सबै , जेते जीव जहान ।
सतनाम की साख गहि , पावैँ पद निर्बान ।।
यथा सरितगण आप ही , मिलैँ सिँन्धु मेँ धाय ।
सत सुकृत के मध्ये तिमि, सबही पंथ समाय ।।
जबलगि पूरण होय नहिँ , ठीके को तिथि वार ।
कपट चातुरी तबहिलोँ , स्वसमवेद निरधार ।।
सबहिँ नारि नर शुध्द्र तब , जब ठीक का दिन अंत ।
कपट चातुरी छोड़ि के , शरण कबीर गंहत ।।
एक अनेक से हो गये , पुनि अनेक हो एक ।
हंस (जीव आत्मा) चलै सतलोक सब , सत्यनाम की की टेक ।।
घर घर बोध विचार हो , दुर्मति दुर बहाय ।
कलियुगमेँ एक हो सोई(सब), बरते सहज सुभाय ।।
कहा उग्र छुद्र हो , हर सबकी भवभीर ।
सो समान समदृष्टि हो, समरथ सत कबीर ।।


विषेश विचार -सन 2000 मेँ ईसा जी के जन्म को 2000 वर्ष बीत गए ।इससे 508 वर्ष पुर्व आध शंकराचार्य जी का जन्म हुआ । इन्की पुस्तक "हिमालय तीर्थ" के अनुसार कलयुग 3000 वर्ष बीत जाने पर आध शँकराचार्य जी का जन्म हुआ ।इस प्रकार सन 2000 को कलयुग (3000+2000+508)5508 वर्ष कलयुग बीत चुका है।

सन 2000 कलयुग 5508 वर्ष बीत चुका है और
सन1997 मेँ कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका है ।

जब कलयुग का समय 5500 वर्ष बीत जाऐगा उस
समय महापुरुष विश्व उध्दार के लिऐ प्रकट होगा । वो सतनाम(दो अक्षर का मँत्र) को प्रदान करेगा उसके ज्ञान से
परेरित होकर सभी धर्मो के अनुयायी एक होगे । सतनाम का जाप कर मोक्ष प्राप्त करेँगे

जीवा तथा दत्ता (तत्वा) को परमात्मा कबीर द्वारा शरण में लेना।


एक समय की बात है। गुजरात के अंदर एक भरुच शहर है। भरुच शहर में मंगलेश्वर नामक गाँव है। उस गाँव के साथ में नर्मदा नदी एक स्थान को दो हिस्से करके टापू बनाती है। आज से लगभग 550 (साढ़े पांच सौ) वर्ष पहले वहां एक शुक्ल तीर्थ नाम का गाँव बसा हुआ था। उसमें तीस-चालीस घर थे। उस गाँव में जीवा और तत्वा नाम के दो ब्राह्मण भाई रहा करते थे। उन्होंने संतों के सत्संग सुने। जो वास्तव में संत होते हैं, वे यही कहा करते हैं कि पूरे संत के बिना जीव उद्धार नहीं होगा। इन अधूरे गुरुओं के चक्कर में मनुष्य शरीर बर्बाद हो जाएगा। फिर न जाने कब और कौन से युग में मानव शरीर प्राप्त होगा? तब तक यह प्राणी चौरासी में चक्कर काटता रहेगा। मनुष्य शरीर का मिलना कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसको ऐसे ही गवां देना, यह कोई समझदारी नहीं है।अब उन दोनों भाइयों ने फैसला किया कि बात तो ज्यों की त्यों है कि यह मनुष्य शरीर का मिलना कोई बार-बार नहीं होता। यदि इससे सत भक्ति न हुयी तो इसकी कोई कीमत नहीं है। यदि इससे मालिक की भक्ति हो गयी, सत मार्ग मिल गया तो इसकी कीमत है, नहीं तो मिटटी का मिटटी है। उन्होंने पहले किसी संत से उपदेश ले रखा था। परन्तु जब सुना की पूरे संत के बिना जीव उद्धार नहीं है तो उन्होंने सोचा कि हम पूरे संत से उपदेश लेंगे।अब पूरे संत की क्या पहचान हो? जहाँ भी जाते हैं, सभी संत अच्छी बातेंबताते हैं। परमात्मा की महिमा गाते हैं। हमें तो बहुत प्रिय लगते हैं।हमें पता ही नहीं लगता कि इनमें अधूरा कौन है और पूरा कौन है? {क्योंकि वे स्वयं विनम्र आत्मा होती हैं। वे प्रभु को चाहने वाली आत्मा होती हैं। उनके अंदर विशेष कसक होती है, परन्तु उनमें विशेष विवेक नहीं होता ।} उन्होंने सोचा क्या फैसला करें? अपने आप ही मन में फैसला लेते हैं। एक सूखे वृक्ष की टहनी जो बिलकुल सूख कर जलाने योग्य हो चुकी थी, उसको अपने आँगन में जैसे पौधा लगाते हैं ऐसे लगा दिया और फैसला किया कि इसमें सभी महापुरुषों के चरण धोकर उनका चरणामृतडालेंगे। जिसके चरणामृत से ये टहनी हरी हो जाएगी, हम उसे पूर्ण संत मानकर उपदेश ले लेंगे और समर्पण कर देंगे, अन्यथा नाम नहीं लेंगे। जिन महापुरुषों के बड़े-बड़े आश्रम बने हुए थे उनके पास गए। उनको घर पर पधारने की प्रार्थना की। कुछेक महापुरुष उनके घर पर आए। उनकी सेवा की, भोजन करवाया, और चरण धोकर चरणामृत को उस सूखी टहनी में डाल दिया। जो गरीब के घर पर नहीं जा सकते थे, उनके चरण धोकर चरणामृत घर पर ले आए और सूखी हुई टहनी में डाल दिया। परन्तु वह टहनी हरी न हो कर गलनि शुरू होगई। उन्होंने लगभग एक वर्ष तक यह तरीका अपनाया। परन्तु कोई भी संत ऐसानहीं मिला जिसके चरणामृत से वह टहनी हरी हो जाए।फिर दोनों भाई बैठ कर कहते हैं की हे प्रभु, हम प्राणियों को मनुष्य शरीर भी मिला, परन्तु ऐसे समय में मिला की कोई पूर्ण संत नहीं है। हे दाता, इससे अच्छा तो हमारे इस शरीर का अंत कर दो। बाकी का जो हमारा मनुष्य शरीर का समय है, कभी ऐसे समय में देना जब कोई पूर्ण संत पृथ्वी पर आया हो। नहीं तो इस मिटटी का कुछ नहीं बनेगा। प्रार्थना करते थे औररोते थे, विलाप करते रहते थे। कई महीने ऐसे बीत गए। अब वह दीनदयाल अन्तर्यामी सतगुरु कबीर परमेश्वर भक्त आत्माओं की तड़फ को देखकर वहां शुक्ल तीर्थ पर पहुँच गए। जीवा और तत्वा के मकान के सामने से निकले। जीवा बाहर खड़ा था। जीवा ने देखा कि इतनी प्यारी सूरत और देखते ही आनंदहो रहा है।गरीब, जिन मिलते सुख उपजे, मिटे कोटि अपाध।भवन चतुर्दश ढूंढियो, परम स्नेही साध।।जब परमेश्वर उनके सामने से निकले तो जीवा के रोम-रोम में आनंद हुआ। इतने में कबीर साहिब आगे चले गए। जीवा अपने भाई से बोला कि दत्ता, एक महात्मा आया हुआ है । क्या कारण है यह पता नहीं, किसी के घर जा रहा होगा? मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है। आपकी आज्ञा हो तो उसको अपने घर पर बुला लूँ ? दत्ता बोला कि जीवा वैसे तो आपकी इच्छा है लेकिन मेरी इच्छा नहीं बन रही। क्योंकि अब पृथ्वी पर संत नहीं रहे। इनसे भी यह टहनी हरी नहीं होगी और फिर हमें रोना पड़ेगा। इस भूली हुई वास्तु को दोबारा याद न दिला। जीवा बोला कि देख लो जी जैसी आपकी इच्छा। परन्तु मेरी तो बहुत प्रबल इच्छा बन रही है कि एक बार अपने घर बुला लाऊँ। यदिआपका हुकुम हो तो बुला लाऊँ ?दत्ता ने कहा की मैं आपकी आत्मा को क्यों दुःख दूँ? जब आपकी श्रद्धा बनी है तो संत आ जाए तो अच्छी ही बात है। इतनी देर में कबीर साहिब फिरवापिस आ जाते हैं। जैसे किसी का घर ढूंढ रहे हों। जिसकी सच्ची श्रद्धापरमेश्वर में लग जाती है उनको शरण में लेने के लिए परमात्मा न जाने क्या कारण बना दे ? स्वयं प्रकट हो जाएं या फिर अपना संत भेज दें। जब जीवा के मकान के पास आए तो जीवा दण्डवत प्रणाम करके बहुत मृदु भाषा में बोला की हे परवरदिगार, दास की झोंपड़ी साथ में ही है। एक बार पग फेरा कीजिए, चरण रखिए, दाता।कबीर साहिब तो उसी उद्देश्य से आए थे। अपना उद्देश्य पूरा करना था, अंदर प्रवेश कर गए। साहिब के लिए बैठना दे दिया। कबीर साहिब बैठ गए। तत्वा बोला कि जीवा संतों का चरणामृत बनाएंगे, चरण धोएंगे। कबीर परमेश्वर के चरण धोए। तत्वा बोला कि जीवा संतों के चरणामृत को या तो पान कर लेना चाहिए या फिर किसी पौधे में डाल देना चाहिए। ऐसे वैसे गलीमें मत फैंकना। जीवा ने वह पात्र उठाया और चरणामृत को सूखी टहनी में डाल दिया। वह सूखी टहनी चरणामृत डालते-डालते हरी हो गई, उस पर कोपल फूट आई। बोलो सतगुरु देव की जय। बन्दी छोड़ कबीर साहिब की जय।अब जीवा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। अपने भाई तत्वा को कहा की भईआ, जल्दी दौड़ कर आओ। जिसकी तलाश थी वे आज स्वयं आ गए हैं। अब दोनों भाई देख कर बहुत प्रसन्न हुए। विनय की कि हे परमेश्वर, आज तक कहाँ छुपे थे? दोनों एक-एक पैर पकड़कर खूब फूट-फूट कर रोने लगे। कहने लगे कि हे दाता! आप पहले क्यों नहीं आये? कबीर साहिब बोले कि मैं पहले भी आ जाता। परन्तु तुम्हारा भर्म नहीं मिटता। तुम सोचते कि एक महात्मा और है। शायद वह इनसे भी बड़ा होगा। कबीर साहिब से शक्तिशाली होगा। मेरे आते ही ये कार्य तो तुम्हारा हो जाना था। परन्तु फिर तुम्हारे मन में शंका रह जाती कि एक महात्मा और है जो बहुत बड़े मंडलेश्वर हैं और तू वहां भी जाता। फिर क्या होता है कि : –गुरु को तजे भजे जो आना, ता पशुआ को फ़ोकट ज्ञाना।जब पूर्ण संत मिल जाए तो फिर आन संत में आपकी श्रद्धा गुरु के तुल्य नहीं रहनी चाहिए। आदर अवश्य करें।आये का आदर करे, चलते निवावे शीश।तुलसी ऐसे मीत को, मिलियो बीसवे बीस।।संतों का आदर करें, लेकिन गुरु से अधिक नहीं।ज्यों पतिव्रता पति से राति, आन पुरुष नहीं भावै।बसे पीहर में, ध्यान प्रीतम में, ऐसे सूरत लगावै।।जब आपको पूर्ण संत मिल जाएँगे तो आपको पूर्ण ज्ञान हो जायेगा, सही नाम मिल जायेगा और आपके सभी दुखों का निवारण हो जायेगा ।संतों का आदर बहुतज़रूरी है, अनादर करने से हमारे अंदर नफरत पैदा होगी। नफरत से भगवान दूरहो जाता है। जैसे पतिव्रता अपने पति से विशेष प्यार करती है अर्थात वास्तविक पूजा करती है। परन्तु फिर भी अपने जेठ का, जेठानी का, देवर औरदेवरानी का, रिश्तेदारों का, आये हुए अतिथि का बहुत आदर करती है। ऐसे हमने सब संतों व भक्तों का आदर करना है। लेकिन जो आदर अपने गुरु का करते हैं ऐसे नहीं करना, स्वाभाविक नहीं हो सकता। पतिव्रता अपने पति कोजो प्यार दे सकती है और किसी को नहीं दे सकती। ऐसे कबीर साहिब जीवा तथा तत्वा को समझा रहे हैं।फिर जीवा तथा तत्वा बोले कि प्रभु, दासों का कल्याण करो। कबीर साहिब नेकहा की उपदेश लो। बन्दी छोड़ ने उनको पहला मंत्र दिया और कहा कि कुछ समय के लिए इसका जाप करो। मैं फिर आऊँगा और फिर तुम्हें सतनाम दूंगा। सतनाम सतनाम यह कोई जाप नहीं है। वह सच्चा नाम, सतनाम, सतशब्द अन्य है।यदि कोई संत ऐसा सतनाम सतनाम जाप करने को देता है तो वो संत ज्ञानी नहीं है।सच्चानाम (सच्चाशब्द, सतशब्द) है वह न्यारा है 

जो कबीर साहिब ने धर्मदास जी को दिया, गरीबदास जी को दिया, नानक जी को दिया, नामदेव जी को दिया, घीसा संत को दिया। वह सतनाम है। पहले केवल पान प्रवाना अर्थात तीन लोक से ऋण मुक्ति का मंत्र रूप में प्रथम मंत्र (नाम) दिया जाता है। फिर दूसरी बार सत्यनाम तथा फिर योग्यता तथा निष्ठा के आधार पर सारनाम दिया जाता है। सारनाम तीन मंत्र (नाम) का होता है। ऐसे तीन स्थिति में नाम दिया जाता है।तब साहिब के चरणों में लगकर जीवा और दत्ता दोनों भाइयों की मुक्ति हुई।
साभार:संत रामपाल जी महराज जी

Saturday, May 28, 2016

कालले कवीर परमात्मासंग गरेको प्रार्थनाः-

कालले कवीर परमात्मासंग गरेको प्रार्थनाः-
पुरुष शाप मोकहं अस दीन्हा । लच्छ जीव नित ग्रासन कीन्हा ।।
जो जिव सकल लोक तुव आवे । कैसे क्षुधा सो मोरि मिटावे ।।
पुनि पुरष मो पर दाया कीन्हा । भौसागर कहं राज मुहिं दीन्हा ।।
तुमहूं कृपा मोपर करहूं । मागौं सो वर मुहि उच्चरहू ।।
सतयुग त्रेता द्बापर माहीं । तीनहु युग जिव थोरे जाहीं ।।
चौथा युग जब कलियुग आवे । तव तुव शरण जीव बहु जावे ।।
ऐसा वचन हार मुहिं दीजे । तब संसार गवन तुम कीजे ।।
पंथ एक तुम आप चलाऊ । जीवन लै सतलोक पठाऊ ।।
द्बादश पंथ करौं मैं साजा । नाम तुम्हार ले करौं अवाजा ।।
द्बादश यम संसार पठैहों । नाम तुम्हारे पंथ चलैहों ।।
मृतु अन्धा इक दूत हमारा । सुकृत गृह लैहैं अवतारा ।।
प्रथम दूत मम प्रगटै जायी । पीछे अंश तुम्हारा आयी ।।
यहि विधि जीवन को भरमाऊं । पुरुष नाम जीवन समझाऊं ।।
द्बादश पंथ जीव जो ऐहैं । सो हमरे मुख आन समैहैं ।।
एतिक विनती करो बनाई । कीजे कृपा देउ बकसाई ।।

(क) कालले, कवीर परमेश्वर संग धेरै पूण्य आत्माहरु केवल कलियुगमा मात्र सतलोकमा लैजाने वचन पाए पछि, भनेको थियो कि मैले कलियुगमा तपाई आउने वेलामा मानिसहरुलाई आफ्ना दुतहरु पठाएर सबैलाई यसरी भ्रमित गरिदिने छु कि स्वयं तपाईनै आएर संसारलाई सत्य ज्ञान दिए पनि संसारले तपाईको विश्वास गर्ने छैन । 

जसअनुसारः-
१ नाटकी तथा फल्मि तथा सांगितिक माहोल बनाएर ।
२ नशालु पदार्थ तथा काम वासनामा मानिसलाई लुप्त बनाएर ।
३ धन-मान को अहंकारमा मानिसहरुलाई भ्रमित गरेर ।
४ मनलाई आकर्षित र मोहित हुने भव्य स्थानहरुको निमार्ण गरेर
५ सहि भक्ति मार्गबाट बिमुख गराउन धेरै नक्कलि धर्म गुरुहरु पठाएर अनेक समुदायमा मानिसलाई भ्रमित गराई नक्कलि नाम (दीक्षा) दिएर
६ कवीरदेवकै नामबाट बाह्र पंथ कालको चलाएर ।

(ख) पूर्ण ब्रह्म कवीर परमेश्वरले आज भन्दा करिब ६०० वर्ष पहिला आएर विभिन्न लीला गर्ने क्रममा जब कलियुग जव ५५०५ वर्ष वित्छ तव म पुनः अंश अवतारको रुपमा प्रकट हुने छु भन्नु भएको थियो । त्यसैले कवीर देवको मिशनलाई कालले फेल गराउन कोशिस गरिरहेको छः

(१) त्यसैले जति पनि विकास भएको छ सन् १९५० पछिको समयमा तिब्र विकास भएको छ । किनकि भक्तहरुमा ज्ञान पुर्याउनको लागी भगवानले संचार जगत तथा विद्युतिय समानहरुको विस्तार गर्नु भयो, जस्लाई कालले आफ्नो अनुकूल दुरुपयोग गरिरहेको छ ।

(२) जति पनि मानिस शिक्षित भएका छन् सन् १९५० पछि व्यापक रुपमा भएका छन् । किनकि भगवानले सबैलाई शिक्षित बनाएर हाम्रो पवित्र ग्रन्थहरुमा भएको तत्वज्ञान सबैलाई बुझाउन चाहनुहुन्छ ।

(३) सबै धर्म गुरुहरु व्यापक रुपमा यहि समयको सेरो फेरोमा यही भारतमा नै आएका छन् । किनकि यहि समयमा नै कवीरदेव आफ्नो अंश रुपमा प्रकट भएर भक्त आत्माहरुलाई यथार्थ भक्ति मार्ग र नाम (दीक्षा) दिएर मोक्ष गराउन लागिरहनु भएकोछ ।

Thursday, May 12, 2016

गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।

गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर।
भवन चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रांड में, बंदी छोड़ कहाय। 
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब माँहि।
बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
पूरणब्रह्म कबीर हैं, अविगत पुरूष अलेख।।
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पृथ्वी के माँहि।
जीव उधारन जगतगुरु, बार बार बलि जांहि।।
गरीब, काशीपुरी कस्त किया, उतरे अधर अधार।
मोमन कूं मुजरा हुवा, जंगल में दीदार।।
गरीब, कोटि किरण शशि भान सुधि, आसन अधर बिमान।
परसत पूरणब्रह्म कूं, शीतल पिंडरू प्राण।।
गरीब, गोद लिया मुख चूंबि करि, हेम रूप झलकंत।
जगर मगर काया करै, दमकैं पदम अनंत।।
गरीब, काशी उमटी गुल भया, मोमन का घर घेर।
कोई कहै ब्रह्मा विष्णु हैं, कोई कहै इन्द्र कुबेर।।
गरीब, कोई कहै छल ईश्वर नहींं, कोई किंनर कहलाय।
कोई कहै गण ईश का, ज्यूं ज्यूं मात रिसाय।।
गरीब, कोई कहै वरूण धर्मराय है, कोई कोई कहते ईश।
सोलह कला सुभांन गति, कोई कहै जगदीश।।
गरीब, भक्ति मुक्ति ले ऊतरे, मेटन तीनूं ताप।
मोमन के डेरा लिया, कहै कबीरा बाप।।
गरीब, दूध न पीवै न अन्न भखै, नहींं पलने झूलंत।
अधर अमान धियान में, कमल कला फूलंत।।
गरीब, काशी में अचरज भया, गई जगत की नींद।
ऎसे दुल्हे ऊतरे, ज्यूं कन्या वर बींद।।
गरीब, खलक मुलक देखन गया, राजा प्रजा रीत।
जंबूदीप जिहाँन में, उतरे शब्द अतीत।।
गरीब, दुनी कहै योह देव है, देव कहत हैं ईश।
ईश कहै पारब्रह्म है, पूरण बीसवे बीस।

Sunday, May 8, 2016

कबीर, वेद मेरा भेद है, मै ना वेदन के माहि| जौन वेद से मै मिलु , वो वेद जानते नाही||

कबीर, वेद(सामवेद, यजुर्वेद, अथवर्वेद, ऋग्वेद)
कतेब ( कुर्आन शरीफ, जबूर,तौरात,इंजिल) झूठे नहीं भाई, झूठे है जो समझे नाहिं||

कबीर, वेद मेरा भेद है, मै ना वेदन के माहि|
जौन वेद से मै मिलु , वो वेद जानते नाही||

पुर्ण परमात्मा कबीर परमेश्र्वर जी है ,जो काशी बनारस मेँ जुलाहे की भूमिका करके गये थे। सभी सदग्रंन्थोँ मेँ यही प्रमाण हैँ की वो पुर्णपरमात्मा कबीर परमेश्वर है , सशरीर है मानव सदृश है सतलोक मेँ रहता है|

"सतयुग में सतसुकृत कह टेरा ,त्रेता नाम मुनीन्द्र मेरा|
द्वापर करूणामय कहाया,कलयुग नाम कबीर धराया||

मात पिता मेरे नहीं,बालक रूप प्रकटाया|
लहरतारा तालाब कमल पर तहाँ जुलाहे ने पाया ||

हाड़ चाम लोहू नही मोरे ,जाने सत्यनाम उपासी |
तारण तरन अभै पद दाता , मै हूँ कबीर अविनासी ||

पाँच तत्व का धड़ नही मेरा, जानूँ ज्ञान अपारा |
सत्य स्वरूपी नाम साहेब का, सो है नाम हमारा ||

आया जगत भवसागर तारण, साचि कहूँ जग लागै मारन |
जो कोई माने कहा हमारा, फिर नही होवे जन्म दुबारा||"

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>> पुराणोँ मेँ प्रमाण देँखे
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>> श्री गुरु ग्रँथ साहिब मेँ प्रमाण देँखे
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Sunday, April 24, 2016

अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I


अमर करू सतलोक पाठाऊ, ताते बन्दी छोड़ कहाऊ I
हम ही सतपुरुष दरवानी, मेट्टू उत्पति आवा जानी I
जो कोई कहा हमारा माने, सार शब्द कुं निश्चय आने I
हम ही शब्द शब्द की खानी, हम अविगत प्रवानी I
हमरे अनहद बाजे बाजे, हमरे किये सभे कुछ साजे I
हम ही लहर तरंग उठावे , हम ही प्रगट हम छिप जावे I
हम ही गुप्त गुह्ज गम्भीरा, हम ही अविगत हमे कबीरा I
हम ही गरजे,हम ही बरषे, हम ही कुलफ जड़े हम निरखे I
हम ही सराफ जोहरी कहिया, हमरे हाथ लेखन सब बहिया I
यह सब खेल हमरे किये, हमसे मिले सो निश्चय जीये I
हम ही अदली जिन्दा जोगी , हम ही अमी महारस भोगी I
हमरा भेद न जाने कोई , हम ही सत्य शब्द निरमोहि I
ऐसा अदली दीप हमारा , कोटि बैकुण्ठ रूप की लारा I
संख पदम एक फुनि पर साजे , जहाँ अदली सत्य कबीर विराजे I
जहाँ कोटिक विष्णु खड़े कर जोरे, कोटिक शम्भु माया मोरे I
जहाँ संखो ब्रह्म वेद उचारी , कोटि कन्हेया रास विचारी I
हम है अमर अचल अनरागी, शब्द महल में तारी लागी I
दास गरीब हुक्म का हेला , हम अविगत अदली का चेल।।।।
_____सत
_________साहेब

राम नाम रटते रहो जब लग घट मेँ प्राण ,

कबीर, राम नाम रटते रहो जब लग घट मेँ प्राण , 
कबहू तो भनक पड़ेगी, दीन दयाल के कान ।।
कबीर , गहै नाम सेवा करै , सतनाम गुण गावै ।
सतगुरु पद विश्वास दृढ़ ,सहज परम पद पावै ।।

कबीर,साथी हमारे चले गऐ हम भी चालन हार ,
कोऐ कागज बाकी रह रही ताते लागरी वार ।।
कबीर, राम बुलावा भेजया दिया कबीरा रोये ।
जो सुख है सतसंग वो बेकूँठ(स्वर्ग) भी ना ।
कबीर,पढ़े पुराण और वेद बखाने ,
सतपुरुष जग भेद ना जाने ।
वेद पढ़े और भेद न जाने ,
नाहक यह जग झगड़ा ठाने।।

वेद पुराण यह करे पुकारा ।
सबही से इक पुरुष निरारा,
तत्वदृष्टा को खोजो भाई ,
पूर्ण मोक्ष ताहि तैँ पाई ।।
कःविः नाम जो बेदन मेँ गावा ,
कबीरन् कुरान कह समझावा ।
वाही नाम है सबन का सारा,
आदि नाम वाही कबीर हमारा ।।
कबीर , सतगुरु के द्वारबार मेँ कमी काहे की नाहीँ ।
हँसा मौज ना पावता तेरी चूक चाकरी माही ।।
कबीर,टोटे मेँ भगति करेँ सोये सही सपूत ,
ये धारी मस्करे ना जाने कितने जा लिऐ ऊत ।।
कबीर,साँई योँ मति जानियोँ, प्रीति घटै मम चित्त ।
मंरु तो तुम सुमिरत मरुं ,जीवत समरुँ नित्य ।।
गरीब, पूर्ण ब्रह्म कृपा निधान, सुन केशव करतार ।
गरीबदास मुझ दीन की , रखियो बहुत संभार|

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