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Saturday, September 24, 2016

पूजा क्या होती है??

१.ध्यान -- जैसे हम मूर्ति या फोटो को देखते है भगवान की याद आती है .. भगवान को जितनी बार याद करते है उससेे ध्यान यज्ञ का फल मिलता है.. चाहे कही बैठ कर कर लो..

२..ज्ञान.... सुबह शाम आरती करना धार्मिक बुक गीता या कबीर नानक वाणी को पढना ये होती है ज्ञान यज्ञ.. इससे ज्ञान यज्ञ का फल मिलता है.. 

३.हवन.... जैसे हम ज्योति लगाते है देशी घी की उससे हमे हवन यज्ञ का फल मिलता है... 

४. धर्म... जैसे हम भंडारा आदि भूखे को भोजन कराते है उससे धर्म यज्ञ का फल मिलता है.. 

५.. प्रणाम.. जो हम लम्बे लेट कर भगवान को प्रणाम करते है प्रणाम यज्ञ का फल मिलता है.. 

ये पांच यज्ञ करनी होती है साथ मे जो गुरू नाम (मंत्र )भी जाप करना होता है.. 


नाम(मंत्र) क्या होता है??? 

जिस इष्टदेव की आप पूजा करते हो उसका एक गुप्त आदि नाम होता है उसको मंत्र(नाम) बोलते है.. उदाहरण - जैसे नाग बिन के वश होता है बिन बजते ही सावधान हो जाता है.. ऐसे ही ये देवता भगवान अपने अपने मंत्र के वश होते है ... नारद ने ध्रुव को ऐसा मंत्र दिया था ध्रुव ने ऐसी कसक के साथ जाप किया था 6 महीने मे बिषणु भगवान को बुला दिया था.. 
ये 5 यज्ञ करना और साथ मे गुरूमंत्र का जाप करना ही पूजा करलाती है.. … 

उदाहरण के लिए - आपका शरीर समझो खेत है .. पूजा मे ये गुरूमंत्र समझो बीज है ये पांच यज्ञ समझो खाद पानी निराई गुडाई है... अगर आप गुरूमंत्र जापकर रहे हो पांचो यज्ञ नही कर रहे हो तो आप ऐसे हो -- जैसे आप खेत मे बीज डाल रहे है खाद पानी नही दोगे तो बीज नही होगा.. आपका बीज डालना व्यर्थ है... और अगर आपने गुरूमंत्र नही लिया है केवल पांच यज्ञ ही कर रहे हो तो ऐसा है... जैसे खेत मे खाद पानी डाल रहे हो बीज आपने डाला ही नही तो खाद पानी डालना व्यर्थ है.. उससे घास फूस झाडिया ही उगेगी...फसल नही जैसे खेत मे बीज और खाद पानी डालना जरूरी है, वैसे ही भगवान की पूजा भगती मे गुरूमंत्र(बीज) और पांचो यज्ञ (खाद पानी) करने जरूरी है...

 रामपाल जी महाराज कबीर साहेब ने ऐसे पूजा करने को कहा है.. ये गीता वेद शास्त्रो मे ऐसे ही लिखी है...

लेकिन हिन्दू धर्म के लोग इसके विपरीत कर रहे है ना तो वो गुरू बनाते है। राम कृष्ण मीरा घ्रुव पहलाद सबने गुरू बनाया क्या वो पागल थे.. ?

जिस इष्टदेव की पूजा करते है उनका मंत्र इनके पास नही है.. मंदिर की घंटी बजा कर फुल चढा कर पाच रूपये का प्रसाद बाटकर पूजा समझते है.. ओस के चाटने से प्यास नही बुझती.... 

रामपाल जी महाराज हमे सभी देवी देवताओ का आदर सत्कार करने को बोलते है... 

हम हिन्दू धर्म, वेद गीता , देवी देवताओ सबको मानते है सबका सत्कार करते हैा 

जैसे पतिवर्ता औरत पूजा अपने पति की करती है बाकी देवर जेठ जेठानी देवरानी सास ससुर सबका आदर करती है.. ऐसे ही हम पूजा कबीर साहेब पूर्णब्रह्म की करते है और सभी देवी देवता ब्रह्मा विषणु शिव दुर्गा ब्रह्म परब्रह्म सबका आदर सत्कार करते है.... 

ये संसार एक पेड की तरह है ये संसार के लोग संसार रूपी पेड के पत्ते है ३३ करोड देवी देवता छोटी छोटी टहनिया है..      आगे ब्रह्मा बिषणु शिव तीन मोटी शाखा है आगे ब्रह्म( काल) निरंजन डार है।  ------->आगे परब्रह्म तना है अागे--------> पूर्णब्रह्म (कविर्देव) कबीर साहेब संसार रूपी पेड की जड है.... 

संत रामपाल जी महाराज ये नही कहते कि इन टहनी पत्तो डार शाखा को काट दो मतलब इन देवी देवताओ को छोड दो.. 

संत रामपाल जी ये कहते है आप केवल जड मे पानी डालो मतलब पूर्णब्रह्म कबीर साहेब की पूजा करो..

गीता अ०-15 श्लोक 4 मे गीता ज्ञान दाता कह रहा है मै भी उसी आदि नारायण परमेश्वर की शरण मे हुँ. उसी की पूजा करनी चाहिये.. . जड पूरे पेड का मूल  है जड के सामने सारे टहनी पत्ते शाखा डार तना सब भिखारी है.. जड मे पानी डालने से पूरे पेड को आहार मिलेगा पूरे पेड का विकास होगा.. 

एक पूर्णब्रह्म के सामने सब भिखारी है एक पूर्णब्रह्म की पूजा मे सब की पूजा हो जाती है जैसे जड मे पानी डालने से पूरे पेड का विकास हो जाता है... 

ये साधना शास्त्रानुकूल साधना है.. 

कबीर - एक साधे सब सधे, सब साधे सब जावे... 
माली सिंचे मूल को फले फूले अंगाहे... 

लेकिन दुनिया वाले क्या कर रहे है देवी देवताओ को पूजते है ये तो ऐसे है टहनी और शाखाओ मे पानी देना... जड मूल(पूर्णब्रह्म) का लोगो को मालूम नही है.. जड को छोड टहनियो शाखाओ मे पानी दोगे तो पेड सूखेगा ही... ये शास्त्रविरूद्ध साधना है.. ये तो ओस चाटना है ओस चाटने से प्यास नही बुझती...

अवोर 
 आप को शास्त्रविरूद्ध साधना करने  से आपको कोइ फल नही मिलता हे/ 
पिछ्ले पुण्य कर्मो के हि फल इस जन्म मे मिलता हे जी आपको ।

अधिक जानकारी के लिए जगत गुरु रामपाल जी महाराजका सात संग जरुर देखे आवोर सुने 

   


Wednesday, June 1, 2016

अवश्य जाने

आचुका जगततारनहार" " आ चुका जगततारनहार"

कबीर सागर( बोध सागर -स्वसमवेद)पृष्ठ 171 से ।

दोहा-पाँच सह्रस अरु पाँचसो, जब कलियुग बित जाय ।
महापुरुष फरमान तब , जग तारन को आय ।।
हिन्दु तुर्क आदिक सबै , जेते जीव जहान ।
सतनाम की साख गहि , पावैँ पद निर्बान ।।
यथा सरितगण आप ही , मिलैँ सिँन्धु मेँ धाय ।
सत सुकृत के मध्ये तिमि, सबही पंथ समाय ।।
जबलगि पूरण होय नहिँ , ठीके को तिथि वार ।
कपट चातुरी तबहिलोँ , स्वसमवेद निरधार ।।
सबहिँ नारि नर शुध्द्र तब , जब ठीक का दिन अंत ।
कपट चातुरी छोड़ि के , शरण कबीर गंहत ।।
एक अनेक से हो गये , पुनि अनेक हो एक ।
हंस (जीव आत्मा) चलै सतलोक सब , सत्यनाम की की टेक ।।
घर घर बोध विचार हो , दुर्मति दुर बहाय ।
कलियुगमेँ एक हो सोई(सब), बरते सहज सुभाय ।।
कहा उग्र छुद्र हो , हर सबकी भवभीर ।
सो समान समदृष्टि हो, समरथ सत कबीर ।।


विषेश विचार -सन 2000 मेँ ईसा जी के जन्म को 2000 वर्ष बीत गए ।इससे 508 वर्ष पुर्व आध शंकराचार्य जी का जन्म हुआ । इन्की पुस्तक "हिमालय तीर्थ" के अनुसार कलयुग 3000 वर्ष बीत जाने पर आध शँकराचार्य जी का जन्म हुआ ।इस प्रकार सन 2000 को कलयुग (3000+2000+508)5508 वर्ष कलयुग बीत चुका है।

सन 2000 कलयुग 5508 वर्ष बीत चुका है और
सन1997 मेँ कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका है ।

जब कलयुग का समय 5500 वर्ष बीत जाऐगा उस
समय महापुरुष विश्व उध्दार के लिऐ प्रकट होगा । वो सतनाम(दो अक्षर का मँत्र) को प्रदान करेगा उसके ज्ञान से
परेरित होकर सभी धर्मो के अनुयायी एक होगे । सतनाम का जाप कर मोक्ष प्राप्त करेँगे

अबस्य बुझ्नुहोस्

1) भगवान ब्रह्मा, बिष्णु र शंकर का माता पिता को हुन ?

2) दुर्गा माता शेरावाली/अष्टाङ्गी) का पति को हुन ? 

3) प्राणीहरूको जन्म र मृत्यु कुन भगवान को स्वार्थपूर्तीका लागि हुन्छ ? 

मानव चोला के का लागिहो ? 

4) पूर्ण सन्त को पहिचान कसरी गर्ने ? 

5) ब्रह्मा, बिष्णु र महेश्वर कस्को भक्ति गर्नु हुन्छ ? 

6) देव देवीको भक्ति गर्दा गर्दै पनि मानव किन दु:खी नै रहेका छन् ? 

7) परमात्मा निरकार छन् की आकारमा छन ? 

8) परमात्मा को हो ? कहाँ रहन्छन ? कसरी पाउने ? के कसैले भेटेका छन् त परमात्मालाई ? 

9) जो कोहि पनि गुरुको शरणमा पर्दैमा मुक्ति पाईन्छ त ? सदगुरु को पहिचान के हो ?
10) मोक्ष प्राप्ती को पथ् कुन हो ? 

11) भगवान श्रीकृष्ण काल होइनन भने गीतामा भनिएका काल को हुन ? 

12) हरे राम, हरे कृष्ण, हरि ॐ, वाहे गुरु, तीन नाम, पञ्चनाम जप्दैमा वा समाधी अभ्यास गरेर सुख, शान्ति र मोक्ष सम्भव छ अथवा छैन ? 

13) तीर्थ, व्रत, तर्पण, श्राद इत्यादी कर्म गर्नाले कुनै लाभ छ वा छैन ? (गीतानुसार) 

14) नास्त्रेदमसजी को भबिस्यवाणी सत्य
प्रमाणित भयो ? ============ 
"ईश, ईश्वर र परमेश्वर" को तत्वज्ञान तथा सत भक्ति हाम्रा पवित्र (चारै वेद, श्रीमद्भगवत गीता, छ: शास्त्र, अठार पुराण, गुरुग्रंथ, बाइबल र क़ुरान ) बाटशास्त्र प्रमाणित ज्ञानको  लागि "ज्ञान गंगा" पुस्तक वा www.jagatgurura mpalji.org मा अबस्य
पढ्नु, हेर्नु, होला

Saturday, May 7, 2016

मुक्ति का मार्ग और है,

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके II टेक II
सत्संग किया था बजरंगी ने,
मुनीन्द्र जी के संग में |
कह मुनीन्द्र सुनो हनुमाना,
तुम उलझे झूठे रंग में |
ये तीस करोड़ राम हो जा लिए,
जीत-जीत के जंग ने |
देख्या सतलोक नजारा था,
विधि पूछी चरण पकड़ के,

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ...

योगजीत के सत्संग में,
एक दिन आ गए कागभुसंडा |
ऐसा सत्संग नहीं सुना,
मैं फिर लिया नोऊ खंडा |
उपदेश लिया फिर सुमिरन कीन्हा,
तब मिटा काल का दंडा |
वो करे आधीनी बंदगी,
सतगुरु चरणा के माह पड़के...

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके...

सत्संग किया था सतगुरु जी से,
पक्षी राज गरुड़ ने |
कह सतसुकृत के स्वाद बतावे,
गूंगा खाके गुड़ ने |
अकड़ घनी थी ज्ञान की,
फिर लागी गर्दन मुड़ने |
निर्गुण उपदेश लिया सतगुरु से,
तब सुरत अगम को सर के,

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ...

साहेब कबीर ने नानक जी से,
कही अगम की वाणी |
कह नानक मैं तो वाको मानु,
जाकि जोत स्वरुप निशानी |
देखी सतलोक की चांदनी,
वा ज्योति फिकी जानी |
वाहे गुरु सतनाम कहा,
उन्हें घनी उमंग में भर के,

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ...

साहेब कबीर के सत्संग में,
एक दिन आ गए गोरखनाथा |
वो सिद्धि बल से बोलता,
सतगुरु कहं ज्ञान की बाता |
जब पूर्ण सिद्धि दिखलाई,
तब नाथ जी रगड़ा माथा |
गोरख ने भेद शब्द का पाया,
सतगुरु चरणा बीच पसर के,

मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ...

ब्रह्मा विष्णु महेश ने,
किया सत्संग गरुड़ के साथा |
तीनों देवा नु कहन लगे,
हम सर्व लोक विधाता |
गरुड़ कह ये बालक मर गया,
इसे जीवा दो दाता |
नहीं जीया तब नु बोले,
ये तो हाथ परम ईश्वर के,
मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ...

सत्संग होया था सम्मन के घर,
ऐसी हुई सतगुरु मेहमानी |
अन्न नहीं था प्रसाद को,
फिर चोरी करन की ठानी |
सतगुरु सेवा कारने,
खुद ली लड़के की प्राणी |
भक्त वो पाला जीत गए,
जो होए आसरे सतगुरु के,
मुक्ति का मार्ग और है,
कोई देखो सत्संग करके ............

मान गुमान छोड़ मेरे मनवा,
तत्वभेद तब दरसे |
प्रेम भाव सतगुरु में हो जा,
तब सहज ही अमृत बरसे |
सार शब्द पाए बिना,
सतलोक जान ने तरसे |
रामपाल जी ने मुक्ति पाली,
हरदम सतगुरु नाम सुमर के.......
मुक्ति का मार्ग और है, .
कोई देखो सत्संग करके ..........

Wednesday, April 27, 2016

प्रश्न: गीता का ज्ञान किसने दिया। प्रमाण सहित ज्ञान दें।


प्रश्न: गीता का ज्ञान किसने दिया। प्रमाण सहित ज्ञान दें।

उत्तर:गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं, बल्कि उनके शरीर में सूक्ष्म रूप से प्रेतवत् प्रवेश करके उनके पिता "काल रूपी ब्रम्ह" ने दिया। काल भगवान, जो इक्कीस ब्रह्मण्ड का प्रभु है, उसने प्रतिज्ञा की है कि मैं अपने  व्यक्त रूप में (मानव सदृष्य अपने वास्तविक रूप में) सबके सामने कभी नहीं आऊँगा। (गीता 7.23) उसी ने सूक्ष्म शरीर बना कर प्रेत की तरह श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके पवित्र गीता जी का ज्ञान कहा।जिसे पूर्ण ब्रम्ह के पूर्ण संत के सिवा कोई नहीं जान सका। 

प्रमाण:

विष्णु पुराण में दो जगह प्रकरण है कि काल भगवान महाविष्णु रूप में कहता है कि मैं किसी और के शरीर में प्रवेश कर के कार्य करूंगा।

1. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित), चतुर्थ अंश, अध्याय दूसरा, श्लोक 26 में पृष्ठ 233 पर विष्णु जी (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) ने देव तथा राक्षसों के युद्ध के समय देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करके कहा है कि मैं राजऋषि शशाद के पुत्र पुरन्ज्य के शरीर में अंश मात्र अर्थात् कुछ समय के लिए प्रवेश करके राक्षसों का नाश कर दूंगा।

2. श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) चतुर्थ अंश, अध्याय तीसरा, श्लोक 6 में पृष्ठ 242 पर श्री विष्ण जी ने गंधर्वाे व नागों के युद्ध में नागों का पक्ष लेते हुए कहा है कि “मैं (महाविष्णु अर्थात् काल रूपी ब्रह्म) मानधाता के पुत्र पुरूकुत्स में प्रविष्ट होकर उन सम्पूर्ण दुष्ट गंधर्वो का नाश कर दूंगा”।

3. श्रीकृष्ण जी काल नहीं थे। वे विष्णु जी के अवतार थे।अगर वे गीता ज्ञान बोलते तो अ.11.32 में यह नहीं कहते कि "मैं काल हूँ" और सबका नाश करने के लिए प्रकट हुआ हूँ। वे तो अर्जुन के समक्ष प्रकट हीं थे।और विष्णु जी का अंश थे जो काल नहीं हैं।इसका सीधा मतलब हुआ कि गीता का ज्ञान "काल ब्रम्ह" ने दिया श्रीकृष्ण जी ने नहीं।

4. तीनों देव ब्रम्हाजी,विष्णुजी एवं शिवजी की माता भगवती दुर्गा जी है। इसीलिए इन्हें अष्टांगी, प्रकृति, त्रिदेव जननी आदि नामों से भी जाना जाता है। इसलिए वे विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण जी के भी माता हुए।अतः प्रकृति यानि दुर्गाजी श्रीकृष्णजी की पत्नी नहीं हो सकती।क्योंकि वे इनकी माता हैं। परंतु गीता 17.3-5 में गीता ज्ञान दाता ने प्रकृति यानी दुर्गा जी को अपनी पत्नी बताया हैं।जिससे पुनः स्पष्ट हो जाता है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण जी ने नहीं दिया।बल्कि उनके पिता काल ब्रम्ह ने दिया।

प्रमाण:
गीता 17.3-5 "इस लोक में जितने भी जीव हैं प्रकृति (दुर्गा) तो उनकी माता है और मैं (गीता ज्ञान वक्ता) उनकी योनि में वीर्य स्थापित करने वाला पिता हूँ"। इस श्लोक से प्रमाणित हो जाता है कि

a). श्रीकृष्णजी अर्थात् विष्णुजी जी की माता प्रकृति यानी दुर्गा जी है।

b) उनके पिता ब्रम्ह हैं। काल रूपी ब्रम्ह। जिन्हें महाविष्णु, महाब्रम्हा, महाशिव या सदाशिव के नाम से भी जाना जाता है।जो त्रिदेव यानी ब्रम्हा विष्णु, एवम् शिव के पिताजी हैं।

c). गीता का ज्ञान ब्रम्ह यानी कालरूपी ब्रम्ह ने दिया जो अ.17.3-5 में दुर्गा जी को अपनी पत्नी बता रहा है। अ. 8.13 में अपने को ब्रम्ह बता रहा जबकि अ. 11.32 में अपने की काल कहा है। 

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Gita Tera Gyan Amrit
http://www.jagatgururampalji.org/

जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचानो और नाम उपदेश लेकर अपना मानव जीवन सफल कर लो
..
             सत साहेब
: इस पोस्ट को आगे  आगे  शेयर   किजिये.  
     न जाने कौन  इंतज़ार  कर रहा  है!!!!!!....

Tuesday, April 26, 2016

court me vedio recording hona chahiye


जंतरमंतर 14.9.15


we want CBI Check


dekhore logo


we want CBI check


Ap singh जी आज माया नगरी मुम्बई मै भाषण देते हुए


sat saheb bandichood jagat guru rampal jee maharaj ki jay


HINDU MUSLIM MAI BHED NAHI HAI jo kaam hindu kartaa hai wahi...


wakil ki aawaj ki sunwai nahi kar rahi he modi sarkar


मोदीजी आप के राज़ मै यॆ दोगला पन क्यों जनता जवाब चाहती है एक हिन्दू संत कॊ जेल और मुस्लिम धर्म गुरु कॊ छुआ तक नही


Sunday, April 24, 2016

नाम लेने वाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक जानकारी

1. पूर्ण गुरु की पहचान
संत रामपाल जी महाराज
आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्रा जैसे – कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरआन, पवित्रा बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रो के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई अध्यापक सलेबस (पाठयक्रम) से बाहर की शिक्षा देता है तो वह उन विद्यार्थियों का दुश्मन है। गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15, यजुर्वेद अध्याय न. 40 श्लोक न. 10, गीता अध्याय नं. 4 का श्लोक नं. 34
2. नशीली वस्तुओं का सेवन निषेध
संत रामपाल जी महाराज
हुक्का, शराब, बीयर, तम्बाखु, बीड़ी, सिगरेट, हुलास सुंघना, गुटखा, मांस, अण्डा, सुल्फा, अफीम, गांजा और अन्य नशीली चीजों का सेवन तो दूर रहा किसी को नशीली वस्तु लाकर भी नहीं देनी है। बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज इन सभी नशीली वस्तुओं को बहुत बुरा बताते हुए अपनी वाणी में कहते हैं कि
3. तीर्थ स्थानों पर जाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी प्रकार का कोई व्रत नहीं रखना है। कोई तीर्थ यात्राा नहीं करनी, न कोई गंगा स्नान आदि करना, न किसी अन्य धार्मिक स्थल पर स्नानार्थ व दर्शनार्थ जाना है। किसी मन्दिर व ईष्ट धाम में पूजा व भक्ति के भाव से नहीं जाना कि इस मन्दिर में भगवान है। भगवान कोई पशु तो है नहीं कि उसको पुजारी जी ने मन्दिर में बांध रखा है। भगवान तो कण–कण में व्यापक है। ये सभी साधनाएँ शास्त्रो के विरुद्ध हैं।
ऐसे संतों की तलाश करो जो शास्त्रो के अनुसार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करते व बताते हों। फिर जैसे वे कहे केवल वही करना, अपनी मन मानी नहीं करना। सामवेद संख्या नं. 1400 उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5 , गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23, गीता अध्याय नं. 6 का श्लोक नं. 16, ग़रीब दास जी की वाणी
4. पितर पूजा निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी प्रकार की पितर पूजा, श्राद्ध निकालना आदि कुछ नहीं करना है। भगवान श्री कृष्ण जी ने भी इन पितरों की व भूतों की पूजा करने से साफ मना किया है। गीता जी के अध्याय नं. 9 के श्लोक नं. 25 में कहा है कि । बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज और कबीर साहिब जी महाराज भी कहते हैं ।
इसलिए उस(पूर्ण परमात्मा) परमेश्वर की भक्ति करो जिससे पूर्ण मुक्ति होवे। वह परमात्मा पूर्ण ब्र सतपुरुष(सत कबीर) है। इसी का प्रमाण गीता जी के अध्याय नं. 18 के श्लोक नं. 46 में है।, गीता अध्याय नं. 18 का श्लोक नं. 62 , and गीता अध्याय नं. 8 का श्लोक नं. 22
5. गुरु आज्ञा का पालन
संत रामपाल जी महाराज
जी की आज्ञा के बिना घर में किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान नहीं करवाना है। जैसे बन्दी छोड़ अपनी वाणी में कहते हैं कि
गुरु बिन यज्ञ हवन जो करहीं, मिथ्या जावे कबहु नहीं फलहीं।
6. माता मसानी पूजना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
आपने खेत में बनी मंढी या किसी खेड़े आदि की या किसी अन्य देवता की समाध नहीं पूजनी है। समाध चाहे किसी की भी हो बिल्कुल नहीं पूजनी है। अन्य कोई उपासना नहीं करनी है। यहाँ तक कि तीनों गुणों(ब्रा, विष्णु, शिव) की पूजा भी नहीं करनी है। केवल गुरु जी के बताए अनुसार ही करना है। गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15 कबीर साहिब भी अपनी वाणी में कहते हैं
7. संकट मोचन कबीर साहेब हैं
संत रामपाल जी महाराज
कर्म कष्ट (संकट) होने पर कोई अन्य ईष्ट देवता की या माता मसानी आदि की पूजा कभी नहीं करनी है। न किसी प्रकार की बुझा पड़वानी है। केवल बन्दी छोड़ कबीर साहिब को पूजना है जो सभी दु:खों को हरने वाले संकट मोचन हैं। सामवेद संख्या न. 822 उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8. कबीर साहिब भी अपनी वाणी में कहते हैं
8. अनावश्यक दान निषेध
संत रामपाल जी महाराज
कहीं पर और किसी को दान रूप में कुछ नहीं देना है। न पैसे, न बिना सिला हुआ कपड़ा आदि कुछ नहीं देना है। यदि कोई दान रूप में कुछ मांगने आए तो उसे खाना खिला दो, चाय, दूध, लस्सी, पानी आदि पिला दो परंतु देना कुछ भी नहीं है। न जाने वह भिक्षुक उस पैसे का दुरूपयोग करे। जैसे एक व्यक्ति ने किसी भिखारी को उसकी झूठी कहानी जिसमें वह बता रहा था कि मेरे बच्चे ईलाज बिना तड़फ रहे हैं। कुछ पैसे देने की कृपा करें को सुनकर भावनावस होकर 100 रु दे दिए। वह भिखारी पहले पाव शराब पीता था उस दिन उसने आधा बोतल शराब पीया और अपनी पत्नी को पीट डाला। उसकी पत्नी ने बच्चों सहित आत्म हत्या कर ली। आप द्वारा किया हुआ वह दान उस परिवार के नाश का कारण बना। यदि आप चाहते हो कि ऐसे दु:खी व्यक्ति की मदद करें तो उसके बच्चों को डॉक्टर से दवाई दिलवा दें, पैसा न दें। कबीर साहिब कहते हैं
9. झूठा खाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
ऐसे व्यक्ति का झूठा नहीं खाना है जो शराब, मांस, तम्बाखु, अण्डा, बीयर, अफीम, गांजा आदि का सेवन करता हो।
10. सत्यलोक गमन(देहान्त) के बाद क्रिया–कर्म निषेध
संत रामपाल जी महाराज
यदि परिवार में किसी की मौत हो जाती है, तो उसके फूल आदि कुछ नहीं उठाने हैं, न पिंड आदि भरवाने हैं, न तेराहमी, छ: माही, बरसोधी, पिंड भी नहीं भरवाने हैं तथा श्राद्ध आदि कुछ नहीं करना है। किसी भी अन्य व्यक्ति से हवन आदि नहीं करवाना है। यदि आपने उसके(मरने वाले के) नाम पर कुछ धर्म करना है तो अपने गुरुदेव जी की आज्ञा ले कर बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की अमृतमयी वाणी का अखण्ड पाठ करवाना चाहिए। प्रतिदिन की तरह ज्योति व आरती, नाम स्मरण करते रहना है, यह याद रखते हुए कि
11. बच्चे के जन्म पर शास्त्र विरूद्ध पूजा निषेध
संत रामपाल जी महाराज
बच्चे के जन्म पर कोई छटी आदि नहीं मनानी है। सुतक के कारण प्रतिदिन की तरह करने वाली पूजा, भक्ति, आरती, ज्योति जगाना आदि बंद नहीं करनी है। कबीर साहेब हमें बताते हैं कि
12. देई धाम पर बाल उतरवाने जाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
बच्चे के किसी देई धाम पर बाल उतरवाने नहीं जाना है। जब देखो बाल बड़े हो गए, कटवा कर फैंक दो। एक मन्दिर में देखा कि श्रद्धालु भक्त अपने लड़के या लड़कियों के बाल उतरवाने आए। वहाँ पर उपस्थित नाई ने बाहर के रेट से तीन गुना पैसे लीये और एक कैंची भर बाल काट कर मात–पिता को दे दिए। उन्होंने श्रद्धा से मन्दिर में चढ़ाए। पुजारी ने एक थैले में डाल लिए। रात्राी को उठा कर दूर एकांत स्थान पर फैंक दिए। यह केवल नाटक बाजी है। क्यों न पहले की तरह स्वाभाविक तरीके से बाल उतरवाते रहें तथा बाहर डाल दें। परमात्मा नाम से प्रसन्न होता है पाखण्ड से नहीं।
13. नाम जाप से सुख
संत रामपाल जी महाराज
नाम(उपदेश) को केवल दु:ख निवारण की दृष्टि कोण से नहीं लेना चाहिए बल्कि आत्म कल्याण के लिए लेना चाहिए। फिर सुमिरण से सर्व सुख अपने आप आ जाते हैं। कबीर जी की वाणी
14. व्यभिचार निषेध
संत रामपाल जी महाराज
पराई स्त्री को माँ–बेटी–बहन की दृष्टि से देखना चाहिए। व्याभीचार महापाप है। जैसे
15. निन्दा सुनना व करना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
अपने गुरु की निंदा भूल कर भी न करें और न ही सुनें। सुनने से अभिप्राय है यदि कोई आपके गुरु जी के बारे में मिथ्या बातें करें तो आपने लड़ना नहीं है बल्कि यह समझना चाहिए कि यह बिना विचारे बोल रहा है अर्थात् झूठ कह रहा है।
जैसे.... निन्दा तो किसी की भी नहीं करनी है और न ही सुननी है। चाहे वह आम व्यक्ति ही क्यों न हो। कबीर साहेब कहते हैं कि
16. गुरु दर्श की महिमा
संत रामपाल जी महाराज
सतसंग में समय मिलते ही आने की कोशिश करे तथा सतसंग में नखरे(मान–बड़ाई) करने नहीं आवे। अपितु अपने आपको एक बिमार समझ कर आवे। जैसे बिमार व्यक्ति चाहे कितने ही पैसे वाला हो, चाहे उच्च पदवी वाला हो जब हस्पताल में जाता है तो उस समय उसका उद्देश्य केवल रोग मुक्त होना होता है। जहाँ डॉक्टर लेटने को कहे लेट जाता है, बैठने को कहे बैठ जाता है, बाहर जाने का निर्देश मिले बाहर चला जाता है। फिर अन्दर आने के लिए आवाज आए चुपके से अन्दर आ जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि आप सतसंग में आते हो तो आपको सतसंग में आने का लाभ मिलेगा अन्यथा आपका आना निष्फल है। सतसंग में जहाँ बैठने को मिल जाए वहीं बैठ जाए, जो खाने को मिल जाए उसे परमात्मा कबीर साहिब की रजा से प्रसाद समझ कर खा कर प्रस चित्त रहे। जैसे
17. गुरु महिमा
संत रामपाल जी महाराज
यदि कहीं पर पाठ या सतसंग चल रहा हो या वैसे गुरु जी के दर्शनार्थ जाते हों तो सर्व प्रथम गुरु जी को दण्डवत्(लम्बा लेट कर) प्रणाम करना चाहिए बाद में सत ग्रन्थ साहिब व तसवीरें जैसे साहिब कबीर की मूर्ति – गरीबदास जी की व स्वामी राम देवानन्द जी व गुरु जी की मूर्ति को प्रणाम करें जिससे सिफर्ल भावना बनी रहेगी। मूर्ति पूजा नहीं करनी है। केवल प्रणाम करना पूजा में नहीं आता यह तो भक्त की श्रद्धा को बनाए रखने में सहयोग देता है। पूजा तो वक्त गुरु व नाम मन्त्रा की करनी है जो पार लगाएगा। कबीर साहेब कहते हैं
18. मांस भक्षण निषेध
संत रामपाल जी महाराज
मांस भक्षण व जीव हिंसा नहीं करनी है। यह महापाप होता है। अनजाने में हुई हिंसा का पाप नहीं लगता। बन्दी छोड़ कबीर साहिब कहते हैं :
‘‘इच्छा कर मारै नहीं, बिन इच्छा मर जाए। कहैं कबीर तास का, पाप नहीं लगाए।।‘‘
19. गुरु द्रोही का सम्पर्क निषेध
संत रामपाल जी महाराज
यदि कोई भक्त गुरु जी से द्रोह(गुरु जी से विमुख हो जाता है) करता है वह महापाप का भागी हो जाता है। यदि किसी को मार्ग अच्छा न लगे तो अपना गुरु बदल सकता है। यदि वह पूर्व गुरु के साथ बैर व निन्दा करता है तो वह गुरु द्रोही कहलाता है। ऐसे व्यक्ति से भक्ति चर्चा करने में उपदेशी को दोष लगता है। उसकी भक्ति समाप्त हो जाती है। जैसे.... अर्थात् गुरु द्रोही के पास जाने वाला भक्ति रहित होकर नरक व लख चौरासी जूनियों में चला जाएगा।
20. जुआ निषेध
संत रामपाल जी महाराज
जुआ–तास कभी नहीं खेलना चाहिए। कबीर साहेब कहते हैं...
21. नाच–गान निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी भी प्रकार के खुशी के अवसर पर नाचना व अश्लील गाने गाना भक्ति भाव के विरूद्ध है। जैसे एक समय एक विधवा बहन किसी खुशी के अवसर पर अपने रिश्तेदार के घर पर गई हुई थी। सभी खुशी के साथ नाच–गा रहे थे परंतु वह बहन एक तरफ बैठ कर प्रभु चिंतन में लगी हुई थी। फिर उनके रिश्तेदारों ने उससे पूछा कि आप ऐसे क्यों निराश बैठे हो? आप भी हमारे की तरह नाचों, गाओ और खुशी मनाओ। इस पर वह बहन कहती है कि किस की खुशी मनाऊँ? मुझ विावा का एक ही पुत्रा था वह भी भगवान को प्यारा हो चुका है। अब क्या खुशी है मेरे लिए? ठीक इसी प्रकार इस काल के लोक में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति है।
22. छूआछात निषेध
संत रामपाल जी महाराज
हम सब एक मलिक के बंदे हैं। भगवान ने किसी भी जाती या मज़हब के स्त्री पुरुषों में कोई अंतर नहीं किया तो हम क्यूँ करें?
23. दहेज लेना तथा देना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
दहेज लेना व देना कुरीति है तथा मानव मात्र की अशांति का कारण है। उपदेशी के लिए मना है। जिसने अपने कलेजे की कोर पुत्री को दे दिया फिर बाकी क्या रहा?
विशेष: स्त्री तथा पुरूष दोनों ही परमात्मा प्राप्ति के अधिकारी हैं। स्त्रिायों को मासिक धर्म (menses) के दिनों में भी अपनी दैनिक पूजा, ज्योति लगाना आदि बन्द नहीं करना चाहिए। किसी के देहान्त या जन्म पर भी दैनिक पूजा कर्म बन्द नहीं करना है।
नोट :–– जो भक्तजन इन इक्कीस सुत्रीय आदेशों का पालन नहीं करेगा उसका नाम समाप्त हो जाएगा। यदि अनजाने में कोई गलती हो भी जाती है तो वह माफ हो जाती है और यदि जान बुझकर कोई गलती की है तो वह भक्त नाम रहित हो जाता है। इसका समाधान यही है कि गुरुदेव जी से क्षमा याचना करके दोबारा नाम उपदेश लेना होगा।

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जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचानो और नाम उपदेश लेकर अपना मानव जीवन सफल कर लो
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