जरा सोचिये समुंद्र ने राम की पूरी सेना मे केवल नल नील का ही नाम क्यो लिया.. नल नील मे ऐसा क्या था जो उनमे सामने हनुमान राम लक्ष्मण सभी फेल हो गये थे????
आपने अधुरी कथा सुनी है कृप्या अब पूरी सुनियेकृपया विस्तार से पढे.
.<< त्रेता युग में कविर्देव (कबीर साहेब) का मुनिन्द्र नाम से प्राकाट्य >>
त्रेता युग में स्वयंभु (स्वयं प्रकट होने वाला) कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम सेआए हुए थे। अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील दोनों आपस में मौसी के पुत्र थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नीलदोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ीतथे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारणकी प्रार्थना कर चुके थे। सर्व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्मका दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु का इंतजार कर रहे थे । एक दिन दोनों को मुनिन्द्र नाम से प्रकट पूर्णपरमात्मा का सतसंग सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सत्संगके उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीरसाहेब) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्तरहो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए । इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिरकर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिलगया जिसकी तलाश थी तथा उससे प्रभावित होकरउनसे नाम (दीक्षा) ले लिया तथा मुनिन्द्र साहेबजी के साथ ही सेवा में रहने लगे। पहले संतों का समागमपानी की व्यवस्था देख कर नदी के किनारे परहोता था। नल और नील दोनों बहुत प्रभुप्रेमी तथा भोली आत्माएँ थी। परमात्मा में श्रद्धा बहुत थी। सेवा बहुत किया करते थे। समागमों मेंरोगी व वद्ध व विकलांग भक्तजन आते तो उनके कपड़े धोते तथा बर्तन साफ करते। उनके लोटे और गिलास मांजदेते थे। परंतु थे भोले से दिमाग के। कपड़े धोने लग जातेतो सत्संग में जो प्रभुकी कथा सुनी होती उसकी चर्चा करने लग जाते। वेदोनों प्रभु चर्चा में बहुत मस्त हो जाते और वस्तुएँदरिया के जल में डूब जाती। उनको पता भी नहीं चलता । किसी की चार वस्तु लेकर जाते तो दो वस्तु वापिस ला कर देते थे। भक्तजनकहते कि भाई आप सेवा तो बहुत करते हो, परंतु हमारा तो बहुत काम बिगाड़ देते हो । ये खोई हुई वस्तुएँहम कहाँ स ले कर आयें ? आप हमारी सेवा ही करनी छोड़दो । हम अपनी सेवा आप ही कर लेंगे। फिर नलतथा नील रोने लग जाते थे कि हमारी सेवा न छीनों ।अब की बार नहीं खोएँगे। परन्तु फिर वही काम करते।फिर प्रभु की चर्चा में लग जाते और वस्तुएँ दरिया जल मेंडूब जाती । भक्तजनों ने ऋषि मुनिन्द्र जी सेप्रार्थना की कि कृपया नल तथा नील को समझाओ।ये न तो मानते है और मना करते हैं तो रोने लग जाते हैं।हमारी तो आधी भी वस्तुएँ वापिस नहीं लाते। येनदी किनारे सत्संग में सुनी भगवान की चर्चा में मस्तहो जाते हैं और वस्तुएँ डूब जाती हैं।मुनिन्द्र साहेब ने एक दो बार तो उन्हें समझाया। वेरोने लग जाते थे कि साहेब हमारी ये सेवा न छीनों।सतगुरु मुनिन्द्र साहेब ने कहा बेटा नल तथा नील खूबसेवा करो, आज के बाद आपके हाथ से कोई भी वस्तुचाहे पत्थर या लोहा भी क्यों न हो जल मेंनहीं डुबेगी। मुनिन्द्र साहेब ने उनको यह आशीर्वाद देदिया।आपने रामायण सुनी है। एक समय की बात हैकि सीता जी को रावण उठा कर ले गया। भगवानराम को पता भी नहीं कि सीता जी को कौनउठा ले गया? श्री रामचन्द्र जी इधर उधर खोज करते हैं।हनुमान जी ने खोज करकेबताया कि सीता माता लंकापति रावण (राक्षस)की कैद में है। पता लगने के बाद भगवान राम ने रावण केपास शान्ति दूत भेजेतथा प्रार्थना की कि सीता लौटा दे। परन्तु रावणनहीं माना। युद्ध की तैयारी हुई। तब समस्या यह आईकि समुद्र से सेना कैसे पार करें?भगवान श्री रामचन्द्र ने तीन दिन तक घुटनों पानी मेंखड़ा होकर हाथ जोड़कर समुद्र सेप्रार्थना की कि रास्ता दे दे। परन्तु समुद्र टस से मस नहुआ। जब समुद्र नहीं माना तब श्री राम ने उसेअग्नि बाण से जलाना चाहा। भयभीत समुद्र एकब्राह्मण का रूप बनाकर सामने आया औरकहा कि भगवन सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। मुझेजलाओ मत। मेरे अंदर न जाने कितने जीव-जंतु बसे हैं। अगरआप मुझे जला भी दोगे तो भी आप मुझे पार नहीं करसकते, क्योंकि यहाँ पर बहुत गहरा गड्डा बन जायेगा,जिसको आप कभी भी पार नहीं कर सकते। समुद्र नेकहा भगवन ऐसा काम करो कि सर्प भी मर जाए औरलाठी भी न टूटे। मेरी मर्यादा भी रह जाए औरआपका पुल भी बन जाए। तब भगवान श्री राम ने समुद्रसे पूछा कि वह क्या विधि है ? ब्राह्मण रूप में खडेसमुद्र ने कहा कि आपकी सेना में नल और नील नाम के दो सैनिक हैं। उनके पास उनके गुरुदेव से प्राप्त एकऐसी शक्ति है कि उनके हाथ से पत्थर भी जल पर तैरजाते हैं। हर वस्तु चाहे वह लोहे की हो, तैर जाती है।श्री रामचन्द्र ने नल तथा नील को बुलाया और उनसेपूछा कि क्या आपके पास कोई ऐसी शक्ति है? नलतथा नील ने कहा कि हाँ जी, हमारे हाथ से पत्थरभी जल नहीं डूबेंगे । श्रीराम ने कहा कि परीक्षणकरवाओ। उन नादानों (नल-नील) ने सोचा कि आजसब के सामने तुम्हारी बहुत महिमा होगी। उस दिनउन्होंने अपने गुरुदेव भगवान मुनिन्द्र(कबीर साहेब)को यह सोचकर याद नहीं किया कि अगर हमउनको याद करेंगे तो कहीं श्रीराम ये न सोच लेंकि इनके पास शक्ति नहीं है, यह तो कहीं और से मांगतेहैं। उन्होंने पत्थर उठाकर पानी में डाला तो वह पत्थरपानी में डूब गया। नल तथा नील ने बहुत कोशिश की,परन्तु उनसे पत्थर नहीं तैरे। तब भगवान राम ने समुद्रकी ओर देखा मानो कहना चाह रहे हों कि आपतो झूठ बोल रहे हो। इनमें तो कोई शक्ति नहीं है। समुद्रने कहा कि नल-नील आज तुमने अपने गुरुदेव को यादनहीं किया। नादानों अपने गुरुदेव को याद करो। वेदोनों समझ गए कि आज तो हमने गलती कर दी। उन्होंनेसतगुरु मुनिन्द्र साहेब जी को याद किया। सतगुरुमुनिन्द्र (कबीर साहेब) वहाँ पर पहुँच गए। भगवानरामचन्द्र जी ने कहा कि हे ऋषिवर! मेरा दुर्भाग्य हैकि आपके सेवकों के हाथों से पत्थर नहीं तैर रहे हैं।मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि अब इनके हाथ से तैरेंगेभी नहीं, क्योंकि इनको अभिमान हो गया है। सतगुरुकी वाणी प्रमाण करती है किः-गरीब, जैसे माता गर्भ को, राखे जतन बनाय।ठेस लगे तो क्षीण होवे, तेरी ऐसे भक्ति जाय।।उस दिन के पश्चात् नल तथा नील की वहशक्ति समाप्त हो गई। श्री रामचन्द्र जी ने परमेश्वरमुनिन्द्र साहेब जी से कहा कि हे ऋषिवर! मुझ पर बहुतआपत्ति आयी हुई है। दया करो किसी प्रकारसेना परले पार हो जाए। जब आप अपनेसेवकों को शक्ति दे सकते हो तो प्रभु कुछ रजा करो।मुनिन्द्र साहेब ने कहा कि यह जो सामने वाला पहाड़है, मैंने उसके चारों तरफ एक रेखा खींच दी है। इसकेबीच-बीच के पत्थर उठा लाओ, वे नहीं डूबेंगे। श्री रामने परीक्षण के लिए पत्थर मंगवाया। उसको पानी पररखा तो वह तैरने लग गया। नल तथा नील कारीगर(शिल्पकार) भी थे। हनुमान जी प्रतिदिन भगवान यादकिया करते थे। उसने अपनी दैनिक क्रिया भी साथरखीराम राम भी लिखता रहा और पहाड़ के पहाड़ उठा करले आता था। नल नील उनको जोड़-तोड़ कर पुल मेंलगा लेते थे। इस प्रकार पुल बना था। धर्मदास जी कहतेहैं:-रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरू से करी पुकार।जा सत रेखा लिखी अपार, सिन्धु पर शिला तिरानेवाले।धन-धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।कबीर साहेब जी ने इस प्रसंग के बारे में अपनी वाणी मेंखुद प्रमाण देते हुए कहा है ::-त्रेता में नल नील चेताया,लंका में चन्द्र विजयसमझाया।सीख मन्दोदरी रानी मानी, समझा नहीं रावणअभिमानी।।विभिषण किन्ही सेव हमारी, तातें हुआलंका छत्तरधारी।हार गए थे जब त्रिभुवन राया, समुद्र पर सेतु मैंही बनवाया।।तीन दिवश राम अर्ज लगाई, समुद्रप्रकट्या युक्ति बताई।नल नील की शक्ति बताई, नल नील में मस्ती छाई।।उन नहीं किन्हा याद गुरूदेव, तातें हम शक्ति छीन लेव।नल नील को लगी अंघाई, तातें पत्थर तिरे नहीं भाई।।मैं किन्हें हल्के वे पत्थर भारी, सेतु बांध रघुवरसेना तारी।लीन्हें चरण राम जब मोरे, लक्ष्मण ने दोहों कर जोरे।।दोनों बोले एक बिचार, ऋषिवर तुम्हरी शक्ति अपार।हनुमान नत मस्तक होया, अंगद सुग्रीव ने माना लोहा।।सेतु बन्ध का भेद न जाने भाई, सुकी दीन्हीं राम बड़ाई।रामचन्द्र कह कोई शक्ति न्यारी, जिन्ह यहरचि सृष्टी सारी।।अज्ञानी कहें रामचन्द्र रचनेहारा, जिने दशरथ घरलीन्हा अवतारा।ऐसी भूल पड़ी धर्मदासा, यथार्थ ज्ञान न किसही पासा।।कोई कहता था कि हनुमान जी ने पत्थर पर रामका नाम लिख दिया था इसलिए पत्थर तैर गये। कोईकहता था कि नल-नील ने पुल बनाया था। कोईकहता था कि श्रीराम ने पुल बनाया था। परन्तु यह सतकथा ऐसे है, जैसे आपको ऊपर बताई गई है।======****==========****============
(सत कबीर की साखी - पेज 179 से 182 तक)-:पीव पिछान को अंग:-
कबीर- तीन देव को सब कोई ध्यावै, चैथे देव का मरम नपावै।
चैथा छाड़ पंचम को ध्यावै, कहै कबीर सो हम पर आवै।।3।।
कबीर- ओंकार निश्चय भया, यह कर्ता मत जान।
साचा शब्द कबीर का, परदे मांही पहचान।।5।।
कबीर- राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नांही संसार।
जिन साहेब संसार किया, सो किन्हूं न जन्म्या नार।।17।।
कबीर - चार भुजा के भजन में, भूलि परे सब संत।
कबिरा सुमिरो तासु को, जाके भुजा अनंत।।23।।
कबीर - समुद्र पाट लंका गये, सीता को भरतार।
ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।26।।
कबीर - गोवर्धनगिरि धारयो कृष्ण जी,द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टि सहारी, इनमें को भगवंत।।27।
Arun Dass
August 30, 2015 •
August 30, 2015 •
रामायण के आनुसार तो नल नील विश्वकर्मा के पुत्र थे
ReplyDeleteYahan, Guru ki Baat Bataigyi hai, Na ki Pita ki
DeleteBhaiya kyo pakhand failo rhe ho....esi mangadhant bate kyo bnate ho....jiska kahi ullekh hi nhi he...aur bechare kabir ko kyo jabardasti bhagwan bnane pr tule ho....aap kahte ho ye bate chhupai he to aapko kahan se mili
ReplyDeleteसच क्या है बताओ भैया तुम्हारे हिसाबसे
Delete
Deleteनल और नील का जीवन परिचय हिंदी में | Nal and Neil Biography in HindiHindihttps://biographyinhindi.com/view_post.php?%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%87+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80+%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+-+Face+ke+bare+mein+jankari+hindi+mein
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Ye log kabirpanthi h jo koi mauka nhi chodte h apne guru gungan karne ke liye,ye log Tulsidas ko apne guru batane se bhi nhi chukenge
Deleteनल और निल का जन्म कहा हुआ था
ReplyDeleteऔर कहाँ से हुआता
ReplyDeleteअरे ढोंगियों कम से कम कबीर जी को छोड़ दो,नल ओर निल विष्वकर्माके पुत्र थे।
ReplyDeleteSahi hai bhi
Deleteलेकिन विश्वकर्मा के पुत्र नल नील कैसे हो सकते हैं नल और नील तो वानर थे
Deleteसही कहा जी ऐसा ही रामायण में भी उल्लेख आता है u r right
ReplyDeleteलेकिन मुनींद्र ऋषि का उल्लेख तो आता है ओ कोन थे
ReplyDeleteकहां उल्लेख आता है ? मुनिंद्र ऋषि का ? कृपया बताएं
DeleteRamayana Ka ullekh such batane walon se main puchhta Hun ki nal Neel ko shrap dene dene wale rishi Ka kya naam tha agar pata hai to uski khoj karo wo kaun tha aur kanha se aaya tha
ReplyDeleteTum logo ko sharm naam ki cheej hai bhi ki nahi? Thumhara balatkari baba jel me saja kaat raha hai aur tum akal ke andhe galat katha sunakar uska gungan kar rahe ho? Doob ke mar jao chullu bhar pani me.
ReplyDeleteChutiya sala mangadant gyan baat raha hai... Sun be chutiya.... Nal and Nil Vishvakarma ji ke putra the.... Tere jaise logo ke karan Hindu Badnam hua hai
ReplyDeleteमादर जात मनगढ़ंत कथाएं सुना रहा bc
ReplyDeleteरामपाल के एल के top भसडक साले चूतिये ,,
ReplyDeleteRampal ek pagel hai sala
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