कियु भूली घर आपणा , ये नी देश तुम्हार |
फिर पीछे पछताओगी , करलो सोच विचार ||
बिन सतगुरु पावें नही , घर अपने की राह |
सतगुरु शरणा ले के , सुरति शब्द समा ||
कई असंख्यों कोश हे , तेरे पीया का देश |
एक पलक में पाइयो , ले सतगुरु उपदेश ||
सुन्न सलौनी गैल है , गगन मंडल के मांहि |
बिना प्रेम पावे नही , चाहे कोटि समाधी लाह ||
नित्यानंद लोह लाइके , चढ़ो महल मंझार |
फिर न भवजल आईयो , ये सपना संसार |
फिर पीछे पछताओगी , करलो सोच विचार ||
बिन सतगुरु पावें नही , घर अपने की राह |
सतगुरु शरणा ले के , सुरति शब्द समा ||
कई असंख्यों कोश हे , तेरे पीया का देश |
एक पलक में पाइयो , ले सतगुरु उपदेश ||
सुन्न सलौनी गैल है , गगन मंडल के मांहि |
बिना प्रेम पावे नही , चाहे कोटि समाधी लाह ||
नित्यानंद लोह लाइके , चढ़ो महल मंझार |
फिर न भवजल आईयो , ये सपना संसार |
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