झूठे गुरू के आसरे, कदे ना उदरे जीव।
कहे कबीर ता दास को, काल कर्म की पीड।।
गुरुवा गाम बिगाड़े संतों, गुरुवा गाम बिगाड़े।
ऐसे कर्म जीव के ला दिये, इब झडे ना झाडे।।
औरो पन्थ बतावहि, स्वयं ना जानें राह ।
अन अधिकारी कथा पाठ करे व दिक्षा देवे, बहूत करे गुनाह ।।
कबीर- जिन राम कृषण व निरंजन कियो, सो तो कर्ता न्यार।
अंधा ज्ञान ना बुझई कहे कबीर विचार।।
पंडित और मशालची, दोनों सूझे ना।
औरो को करे चांदना, आप अंधेरे मा।।
।।सत् साहिब।।
कहे कबीर ता दास को, काल कर्म की पीड।।
गुरुवा गाम बिगाड़े संतों, गुरुवा गाम बिगाड़े।
ऐसे कर्म जीव के ला दिये, इब झडे ना झाडे।।
औरो पन्थ बतावहि, स्वयं ना जानें राह ।
अन अधिकारी कथा पाठ करे व दिक्षा देवे, बहूत करे गुनाह ।।
कबीर- जिन राम कृषण व निरंजन कियो, सो तो कर्ता न्यार।
अंधा ज्ञान ना बुझई कहे कबीर विचार।।
पंडित और मशालची, दोनों सूझे ना।
औरो को करे चांदना, आप अंधेरे मा।।
।।सत् साहिब।।
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