Friday, January 1, 2016

सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार । दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, ऐके धका दरार ॥

सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार । 
दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, ऐके धका दरार ॥
यह मन ताको दीजिये, साँचा सेवक होय ।
सिर ऊपर आरा सहै, तऊ न दूजा होय ॥
सेवक सेवा में रहै, सेवक कहिये सोय ।
कहैं कबीर सेवा बिना, सेवक कभी न होय ॥
सतगुरु चले शिकार पर, ले कर तीर-कमान ।
मूरख मूरख बच गये, कोई मर गये संत सुजान ॥
मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।
बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥

No comments:

Post a Comment