Saturday, January 2, 2016

"परमात्मा प्राप्ति किसे होती है"???? prerak kahani




एक सुन्दर प्रेरणादायक कहानी है:----

एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने भगवान की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था।
एक दिन भगवान ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा---"राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। बोलो तुम्हारी कोई इच्छा है?"
प्रजा को चाहने वाला राजा बोला---"भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हॆ। आपकी कृपा से राज्य में सब प्रकार सुख-शान्ति है। फिर भी मेरी एक ईच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।"
"यह तो सम्भव नहीं है।" ---भगवान ने राजा को समझाया। परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले--"ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।"

राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और भगवान को धन्यवाद दिया।
अगले दिन सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के नीचे मेरे साथ पहुँचे, वहाँ भगवान आप सबको दर्शन देंगे।

दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा और स्वजनों को साथ लेकर पहाडी की ओर चलने लगा।
चलते-चलते रास्ते में एक स्थान पर तांबे कि सिक्कों का पहाड देखा। प्रजा में से कुछ एक उस ओर भागने लगे। तभी ज्ञानी राजा ने सबको सतर्क किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे क्योंकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो, इन तांबे के सिक्कों के पीछे अपने भाग्य को लात मत मारो।

परन्तु लोभ-लालच में वशीभूत कुछ एक प्रजा तांबे कि सिक्कों वाली पहाडी की ओर भाग गयी और सिक्कों कि गठरी बनाकर अपने घर कि ओर चलने लगे। वे मन ही मन सोच रहे थे कि पहले ये सिक्कों को समेट ले, भगवान से तो फिर कभी मिल लेंगे।

राजा खिन्न मन से आगे बढ़े। कुछ दूर चलने पर चांदी के सिक्कों का चमचमाता पहाड़ दिखाई दिया। इस बार भी बचे हुये प्रजा में से कुछ लोग उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बनाकर अपनी घर की ओर चलने लगे। उनके मन में विचार चल रहा था कि ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है। चांदी के इतने सारे सिक्के फिर मिले न मिले, भगवान तो फिर कभी मिल जायेगें।

इसी प्रकार कुछ दूर और चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड़ नजर आया। अब तो प्रजाजनो में बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों की गठरी लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये।

अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे। राजा रानी से कहने लगे---"देखो कितने लोभी ये लोग। भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं जानते हैं। भगवान के सामने सारी दुनिया कि दौलत क्या चीज है?" सही बात है--रानी ने राजा कि बात का समर्थन किया और वह आगे बढ़ने लगे।

कुछ दुर चलने पर राजा और रानी ने देखा कि सप्तरंगी आभा बिखरता हीरों का पहाड है। अब तो रानी से रहा नहीं गया, हीरों के आर्कषण से वह भी दौड़ पडी और हीरों की गठरी बनाने लगी। फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू मेँ भी बाँधने लगी। वजन के कारण रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये, परंतु हीरों की तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि ओर विरक्ति हुई। बड़े दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढ़ते गये।

वहाँ सचमुच भगवान खड़े उसका इन्तजार कर रहे थे। राजा को देखते ही भगवान मुस्कुराये और पूछा --"कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेकरारी से उनका इन्तजार कर रहा हुँ।"

राजा ने शर्म और आत्म-ग्लानि से अपना सर झुका दिया। तब भगवान ने राजा को समझाया--

"राजन जो लोग भौतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते है, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती और वह मेरे स्नेह तथा आर्शिवाद से भी वंचित रह जाते हैं।"

सार......
जो आत्मायें अपनी मन और बुद्धि से परमात्मा पर कुर्बान हो जाते हैं, सर्वभाव से परमात्मा के चरणों में समर्पित हो जाते है......वह परमात्मा के प्रिय बनते हैं, उन्हीं पुण्यात्माओं पर परमात्मा की विशेष रजा व दया होती है।
सर्वभाव से समर्पित आत्मा के परमात्मा प्राप्ति के मिशन में अर्थात् सतलोक जाने में कोई बाधा नहीं होती।
यहाँ 'सर्वभाव' से आशय यह है...
"जो परमात्मा को सर्वप्रथम माने..
"जो गुरुजी के एक-एक वचन को माने और उस पर चलें..
"जो परमात्मा की पूर्ण मर्यादा में रहकर आधीन भाव से सत्भक्ति करता रहें..
परमात्मा हमें यहाँ से हंस बनाकर सतलोक ले जायेंगे।

परमात्मा कहते है कि...'मेरा तो कोई एक है, ये काल का सब संसार'!!

सत् साहिब जी!
बन्दी छोड़ जी की जय!!

No comments:

Post a Comment