कहै कविर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय…
अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय ।
राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय ।
कृष्ण करीमा एक है, नाम धराय दोय ।
काशी काबा एक है, एकै राम रहीम ।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कविरा जीम ।।
एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान ।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सांचा शब्द निहार ।
पक्षपान ना किजिये, कहै कविर विचार ।।
राम कविरा एक है, दूजा कबहू ना होय ।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय ।
राम कविर एक है, कहन सुजन को दोय ।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय ।।
भरम गये जग वेद पुराना । आदि राम का भेद न जाना ।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
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