Wednesday, April 27, 2016

Bhakti kaise hoti he

`कबीर' भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आइ ।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई ॥
भावार्थ - कबीर कहते हैं - कलाल की भट्ठी पर बहुत सारे आकर बैठ गये हैं, पर इस मदिरा को एक वही पी सकेगा, जो अपना सिर कलाल को खुशी-खुशी सौंप देगा, नहीं तो पीना हो नहीं सकेगा । [कलाल है सद्गुरु, मदिरा है प्रभु का प्रेम-रस और सिर है अहंकार ।]

मान बडाई(अहंकारी) जमपुर जाई  होई रहो दासन दासा
साधु(भगत) बनना सहज है, दुर्लभ बनना दास|
दास तब जानिये, जब हाडा पर रहै ना मॉस||
अभिमान तज गुरु वचन पे हो अटल विरला सुर है|
हँस बने सतलोक जावे मुक्ति ना फ़िर दूर है||

मन मगन बऐ का सुन रासा...२
ऐ इन्दरी पृकति पर रे डाल चलो त्रिगुण पासा,
सपम सपा हो मिल नुर मे काम कृोध का कर नासा,
यो तन काख मिलेगा भाई कै पेर मल-मल खासा,
पिण्ड बृह्मड कुछ थिर नही रे गगन मण्डल मे कर बासा,
चिन्ता चेरी दुर पर रे री काट चलो जम का फॉसा,
मान बडाई जम पुर जाई होय रहो दासन दासा,
गरीबदास पद अरस अनाहद सतनाम जप स्वासा,.....
मन मगन बऐ सुन रासा....२

लागी का मार्ग ओर है, लाग चोट कलेजा करके....
जय बंदीछोड की

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