Saturday, April 2, 2016

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।

धर्मदास यह जग बौराना।
कोइ न जाने पद निरवाना।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रियदेवन की उत्पति भाई।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई।
मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन।
वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये।
ब्रम्हा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये।
इनमें यह जग धोखा खाये।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा।
सु निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सु ठिकाना।
ब्रम्हा विष्णु शिव भेद न जाना।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रम्हा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा।
आंधर जीव करत हैं सेवा।।
तीनों देव और औतारा।
ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में,
भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन,
कैसे उतरें पार।।।
।। सत साहेँब ।।

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