Tuesday, April 19, 2016

सतलोक में चल मेरी सुरतां, मत न लावै देरी।

.......कबीर परमात्मा......
सतलोक में चल मेरी सुरतां,
मत न लावै देरी।
साच कहूँ न झूठ रति भर,
तू बात मान ले मेरी ।।टेक।।
प्रथम जाना सतसंग के में ,
चर्चा सुनिए आत्म ज्ञान की,
सुनकै सतसंग जागी ,
नहीं तो पूछ श्वान की ।
तीर्थ व्रत ये पित्र पूजा ,
कोन्या किसे काम की,
लै कै नाम गुरु से ,
भक्ति करिए कबीर भगवान की ।।
मत सुनना मन सैतान की,
ये चौकस घालै घेरी ।।1।।
काल लोक में कष्ट उठावै ,
यह कोन्या तेरा ठिकाना,
मात पिता संतान सम्पति का ,
झूठा तन री ताना ।
जाप अजपा मिल जावै ,
जब सुमरण में मन लाना,
सार शब्द तेरे काटे बंधन ,
आकाशै उड जाना।।
त्रिकुटी में आना हे सुरतां,
मतना भटकै बेरी ।।2।।
त्रिकुटी में पहुँच कै सुरतां ,
चारों ओर लखावै,
शब्द गुरु फिर प्रकट होवे,
उसते ब्याह करवावै।
नूरी रूप गुरु का हो,
कै तेरै आगे-आगे जावै,
सतलोक में सेज बिछी ,
तेरे चौकस लाड लडावै।।
जन्म मरन मिट जावै हे सुरतां,
हो आनन्द काया तेरी ।।3।।
सतलोक में जा कै ,
हे सुरतां संकट कट जां सारे,
अलख लोक और ,
अगम लोक के दिखैं सभी नजारे।
लोक अनामी जावैगी ,
वहां कोन्या मिलैं चौबारे,
आत्मा और परमात्मा ,
वहां कोन्या रहते न्यारे।।
रामपाल प्रीतम प्यारे की आत्मा,
अब पूर्ण आनन्द लेरी ।।4।।
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