Wednesday, April 27, 2016

"एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय"

बलख बुखारे के बादशाह इब्राहिम सुलतान अधम
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परमात्मा की लीलाएँ देखकर एवं भक्ति की प्रबल प्रेरणा से बलख बुखारा राज्य त्यागकर जंगल में जाकर रहने लगा और परमात्मा की भक्ति करने लगा। एक दिन सुलतान अधम को परिश्रम करने पर भी भोजन नहीं मिला। उन्होंने परमात्मा को धन्यवाद दिया। दूसरे दिन भी भोजन नहीं मिला तो परमात्मा को धन्यवाद दिया। इसी प्रकार सात दिन तक भोजन नहीं मिला और वह बराबर परमात्मा को धन्यवाद करते रहे। आठवें दिन दुर्बलता बहुत बढ़ गयी तब सुलतान अधम के मन में कुछ भोजन मिलने की इच्छा हुई। परमात्मा की कृपा से एक व्यक्ति उनके पास आया और विनय करने लगा कि आप मेरे यहाँ भोजन करने चलिये। 

उसके प्रेम और भक्ति भाव को देखकर सुलतान अधम उसके साथ गये, जब वह उस आदमी के घर पहुँचे तब उसके अमीराना ठाट और मकानात देखकर उन्हें मालूम हुआ कि यह कोई बड़ा धनी आदमी है। उसने सुलतान अधम को एक सजी हुई कोठरी में ले जाकर बैठाया और उनके चरणों में गिरकर विनय पूर्वक कहने लगा कि, मैं आपका मोल लिया हुआ दास हुँ सो यह सब वैभव आपकी सेवा में अर्पण करता हुँ, इसे स्वीकार कीजिये। अधम ने उसी समय उससे कहा कि, आज से मैं आपको दासत्व से स्वतंत्र करता हुँ और यह सब माल असबाब भी तेरे को ही देता हूँ। इतना कहकर सुलतान अधम वहाँ से उठकर जंगल में चले आये 

और परमात्मा से प्रार्थना करने लगे "हे प्रभु ! आज से तेरे सिवाय दूसरा कुछ नहीं चाहूँगा। तू तो रोटी के टुकड़े के बदले संसार भर की माया मेरे गले बांधना चाहता है"। सात दिन मेरे मन में कोई इच्छा नहीं हुई और आठवें दिन भोजन मिलने की इच्छा हुई तो तूने संसार भर की माया दे दी। मुझे तेरे सिवाय कुछ नहीं चाहिए। उसके बाद उन्होंने अपने मन को दण्ड़ देने के लिए कई दिनों तक भोजन नहीं किया।

सार----

गुरुजी सत्संग में बताते है...हमें परमात्मा से सांसारिक वस्तुएँ मांगने की बजाय 'भक्ति भाव व मोक्ष' ही माँगना चाहिए। परमात्मा से एक भक्ति माँगने पर सब कुछ मिल जाता है। यहाँ के जो सांसारिक सुख है वह इस भक्ति में ही है सब कुछ।

परमात्मा कहते है "एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय" इसलिए हमें परमात्मा से मोक्ष उद्देश्य से केवल भक्ति ही माँगनी चाहिए।
जय हो बन्दी छोड़ की! =========================

चंडाली के चौक में सतगुरू बैठे जाय चौंसठ लाख गारत गये दो रहे सतगुरू पाय ।
भडवा -भडवा सब कहें जानत नहीं खोज दास गरीब कबीर कर्म बाटत सीर का बोझ ।

अधूरे शिष्यों  से पीछा छुटाने केलिए पूर्ण गुरु ऐसी लीला करते ही करते हैं। 

शंखों लहर महर की उपजे कहर ना जहाँ कोई दास गरीब अचल अविनाशी सुख का सागर सोही। 

गुरूदेव दाता से विनती करते रहो हे दाता महर की लहर उपजाये रखना ताकि मुझसे मन वचन कर्म से किसी का बुरा न हो जाये ।क्योंकि हम ऐसे स्थान पर रहते जहाँ न चाहते हुए भी गलती हो ही जाती है ।

जैसे सावधानी हटी दुर्घटना धटी ।

हे गुरूदेव हम जीवों के बस की बात नहीं आप ही कमी -बेसी का ख्याल रखो ।

सत साहेब जी ।

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