1. पूर्ण गुरु की पहचान
संत रामपाल जी महाराज
आज कलियुग में भक्त समाज के सामने पूर्ण गुरु की पहचान करना सबसे जटिल प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इसका बहुत ही लघु और साधारण–सा उत्तर है कि जो गुरु शास्त्रो के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्रा जैसे – कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, कुरआन, पवित्रा बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रो के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रो के विरूद्ध साधना करवा रहा है। इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई अध्यापक सलेबस (पाठयक्रम) से बाहर की शिक्षा देता है तो वह उन विद्यार्थियों का दुश्मन है। गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15, यजुर्वेद अध्याय न. 40 श्लोक न. 10, गीता अध्याय नं. 4 का श्लोक नं. 34
2. नशीली वस्तुओं का सेवन निषेध
2. नशीली वस्तुओं का सेवन निषेध
संत रामपाल जी महाराज
हुक्का, शराब, बीयर, तम्बाखु, बीड़ी, सिगरेट, हुलास सुंघना, गुटखा, मांस, अण्डा, सुल्फा, अफीम, गांजा और अन्य नशीली चीजों का सेवन तो दूर रहा किसी को नशीली वस्तु लाकर भी नहीं देनी है। बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज इन सभी नशीली वस्तुओं को बहुत बुरा बताते हुए अपनी वाणी में कहते हैं कि
3. तीर्थ स्थानों पर जाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी प्रकार का कोई व्रत नहीं रखना है। कोई तीर्थ यात्राा नहीं करनी, न कोई गंगा स्नान आदि करना, न किसी अन्य धार्मिक स्थल पर स्नानार्थ व दर्शनार्थ जाना है। किसी मन्दिर व ईष्ट धाम में पूजा व भक्ति के भाव से नहीं जाना कि इस मन्दिर में भगवान है। भगवान कोई पशु तो है नहीं कि उसको पुजारी जी ने मन्दिर में बांध रखा है। भगवान तो कण–कण में व्यापक है। ये सभी साधनाएँ शास्त्रो के विरुद्ध हैं।
ऐसे संतों की तलाश करो जो शास्त्रो के अनुसार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करते व बताते हों। फिर जैसे वे कहे केवल वही करना, अपनी मन मानी नहीं करना। सामवेद संख्या नं. 1400 उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5 , गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23, गीता अध्याय नं. 6 का श्लोक नं. 16, ग़रीब दास जी की वाणी
ऐसे संतों की तलाश करो जो शास्त्रो के अनुसार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करते व बताते हों। फिर जैसे वे कहे केवल वही करना, अपनी मन मानी नहीं करना। सामवेद संख्या नं. 1400 उतार्चिक अध्याय नं. 12 खण्ड नं. 3 श्लोक नं. 5 , गीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23, गीता अध्याय नं. 6 का श्लोक नं. 16, ग़रीब दास जी की वाणी
4. पितर पूजा निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी प्रकार की पितर पूजा, श्राद्ध निकालना आदि कुछ नहीं करना है। भगवान श्री कृष्ण जी ने भी इन पितरों की व भूतों की पूजा करने से साफ मना किया है। गीता जी के अध्याय नं. 9 के श्लोक नं. 25 में कहा है कि । बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज और कबीर साहिब जी महाराज भी कहते हैं ।
इसलिए उस(पूर्ण परमात्मा) परमेश्वर की भक्ति करो जिससे पूर्ण मुक्ति होवे। वह परमात्मा पूर्ण ब्र सतपुरुष(सत कबीर) है। इसी का प्रमाण गीता जी के अध्याय नं. 18 के श्लोक नं. 46 में है।, गीता अध्याय नं. 18 का श्लोक नं. 62 , and गीता अध्याय नं. 8 का श्लोक नं. 22
इसलिए उस(पूर्ण परमात्मा) परमेश्वर की भक्ति करो जिससे पूर्ण मुक्ति होवे। वह परमात्मा पूर्ण ब्र सतपुरुष(सत कबीर) है। इसी का प्रमाण गीता जी के अध्याय नं. 18 के श्लोक नं. 46 में है।, गीता अध्याय नं. 18 का श्लोक नं. 62 , and गीता अध्याय नं. 8 का श्लोक नं. 22
5. गुरु आज्ञा का पालन
संत रामपाल जी महाराज
जी की आज्ञा के बिना घर में किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान नहीं करवाना है। जैसे बन्दी छोड़ अपनी वाणी में कहते हैं कि
गुरु बिन यज्ञ हवन जो करहीं, मिथ्या जावे कबहु नहीं फलहीं।
गुरु बिन यज्ञ हवन जो करहीं, मिथ्या जावे कबहु नहीं फलहीं।
6. माता मसानी पूजना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
आपने खेत में बनी मंढी या किसी खेड़े आदि की या किसी अन्य देवता की समाध नहीं पूजनी है। समाध चाहे किसी की भी हो बिल्कुल नहीं पूजनी है। अन्य कोई उपासना नहीं करनी है। यहाँ तक कि तीनों गुणों(ब्रा, विष्णु, शिव) की पूजा भी नहीं करनी है। केवल गुरु जी के बताए अनुसार ही करना है। गीता अध्याय नं. 7 का श्लोक नं. 15 कबीर साहिब भी अपनी वाणी में कहते हैं
7. संकट मोचन कबीर साहेब हैं
संत रामपाल जी महाराज
कर्म कष्ट (संकट) होने पर कोई अन्य ईष्ट देवता की या माता मसानी आदि की पूजा कभी नहीं करनी है। न किसी प्रकार की बुझा पड़वानी है। केवल बन्दी छोड़ कबीर साहिब को पूजना है जो सभी दु:खों को हरने वाले संकट मोचन हैं। सामवेद संख्या न. 822 उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8. कबीर साहिब भी अपनी वाणी में कहते हैं
8. अनावश्यक दान निषेध
संत रामपाल जी महाराज
कहीं पर और किसी को दान रूप में कुछ नहीं देना है। न पैसे, न बिना सिला हुआ कपड़ा आदि कुछ नहीं देना है। यदि कोई दान रूप में कुछ मांगने आए तो उसे खाना खिला दो, चाय, दूध, लस्सी, पानी आदि पिला दो परंतु देना कुछ भी नहीं है। न जाने वह भिक्षुक उस पैसे का दुरूपयोग करे। जैसे एक व्यक्ति ने किसी भिखारी को उसकी झूठी कहानी जिसमें वह बता रहा था कि मेरे बच्चे ईलाज बिना तड़फ रहे हैं। कुछ पैसे देने की कृपा करें को सुनकर भावनावस होकर 100 रु दे दिए। वह भिखारी पहले पाव शराब पीता था उस दिन उसने आधा बोतल शराब पीया और अपनी पत्नी को पीट डाला। उसकी पत्नी ने बच्चों सहित आत्म हत्या कर ली। आप द्वारा किया हुआ वह दान उस परिवार के नाश का कारण बना। यदि आप चाहते हो कि ऐसे दु:खी व्यक्ति की मदद करें तो उसके बच्चों को डॉक्टर से दवाई दिलवा दें, पैसा न दें। कबीर साहिब कहते हैं
9. झूठा खाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
ऐसे व्यक्ति का झूठा नहीं खाना है जो शराब, मांस, तम्बाखु, अण्डा, बीयर, अफीम, गांजा आदि का सेवन करता हो।
10. सत्यलोक गमन(देहान्त) के बाद क्रिया–कर्म निषेध
संत रामपाल जी महाराज
यदि परिवार में किसी की मौत हो जाती है, तो उसके फूल आदि कुछ नहीं उठाने हैं, न पिंड आदि भरवाने हैं, न तेराहमी, छ: माही, बरसोधी, पिंड भी नहीं भरवाने हैं तथा श्राद्ध आदि कुछ नहीं करना है। किसी भी अन्य व्यक्ति से हवन आदि नहीं करवाना है। यदि आपने उसके(मरने वाले के) नाम पर कुछ धर्म करना है तो अपने गुरुदेव जी की आज्ञा ले कर बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की अमृतमयी वाणी का अखण्ड पाठ करवाना चाहिए। प्रतिदिन की तरह ज्योति व आरती, नाम स्मरण करते रहना है, यह याद रखते हुए कि
11. बच्चे के जन्म पर शास्त्र विरूद्ध पूजा निषेध
संत रामपाल जी महाराज
बच्चे के जन्म पर कोई छटी आदि नहीं मनानी है। सुतक के कारण प्रतिदिन की तरह करने वाली पूजा, भक्ति, आरती, ज्योति जगाना आदि बंद नहीं करनी है। कबीर साहेब हमें बताते हैं कि
12. देई धाम पर बाल उतरवाने जाना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
बच्चे के किसी देई धाम पर बाल उतरवाने नहीं जाना है। जब देखो बाल बड़े हो गए, कटवा कर फैंक दो। एक मन्दिर में देखा कि श्रद्धालु भक्त अपने लड़के या लड़कियों के बाल उतरवाने आए। वहाँ पर उपस्थित नाई ने बाहर के रेट से तीन गुना पैसे लीये और एक कैंची भर बाल काट कर मात–पिता को दे दिए। उन्होंने श्रद्धा से मन्दिर में चढ़ाए। पुजारी ने एक थैले में डाल लिए। रात्राी को उठा कर दूर एकांत स्थान पर फैंक दिए। यह केवल नाटक बाजी है। क्यों न पहले की तरह स्वाभाविक तरीके से बाल उतरवाते रहें तथा बाहर डाल दें। परमात्मा नाम से प्रसन्न होता है पाखण्ड से नहीं।
13. नाम जाप से सुख
संत रामपाल जी महाराज
नाम(उपदेश) को केवल दु:ख निवारण की दृष्टि कोण से नहीं लेना चाहिए बल्कि आत्म कल्याण के लिए लेना चाहिए। फिर सुमिरण से सर्व सुख अपने आप आ जाते हैं। कबीर जी की वाणी
14. व्यभिचार निषेध
संत रामपाल जी महाराज
पराई स्त्री को माँ–बेटी–बहन की दृष्टि से देखना चाहिए। व्याभीचार महापाप है। जैसे
15. निन्दा सुनना व करना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
अपने गुरु की निंदा भूल कर भी न करें और न ही सुनें। सुनने से अभिप्राय है यदि कोई आपके गुरु जी के बारे में मिथ्या बातें करें तो आपने लड़ना नहीं है बल्कि यह समझना चाहिए कि यह बिना विचारे बोल रहा है अर्थात् झूठ कह रहा है।
जैसे.... निन्दा तो किसी की भी नहीं करनी है और न ही सुननी है। चाहे वह आम व्यक्ति ही क्यों न हो। कबीर साहेब कहते हैं कि
जैसे.... निन्दा तो किसी की भी नहीं करनी है और न ही सुननी है। चाहे वह आम व्यक्ति ही क्यों न हो। कबीर साहेब कहते हैं कि
16. गुरु दर्श की महिमा
संत रामपाल जी महाराज
सतसंग में समय मिलते ही आने की कोशिश करे तथा सतसंग में नखरे(मान–बड़ाई) करने नहीं आवे। अपितु अपने आपको एक बिमार समझ कर आवे। जैसे बिमार व्यक्ति चाहे कितने ही पैसे वाला हो, चाहे उच्च पदवी वाला हो जब हस्पताल में जाता है तो उस समय उसका उद्देश्य केवल रोग मुक्त होना होता है। जहाँ डॉक्टर लेटने को कहे लेट जाता है, बैठने को कहे बैठ जाता है, बाहर जाने का निर्देश मिले बाहर चला जाता है। फिर अन्दर आने के लिए आवाज आए चुपके से अन्दर आ जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि आप सतसंग में आते हो तो आपको सतसंग में आने का लाभ मिलेगा अन्यथा आपका आना निष्फल है। सतसंग में जहाँ बैठने को मिल जाए वहीं बैठ जाए, जो खाने को मिल जाए उसे परमात्मा कबीर साहिब की रजा से प्रसाद समझ कर खा कर प्रस चित्त रहे। जैसे
17. गुरु महिमा
संत रामपाल जी महाराज
यदि कहीं पर पाठ या सतसंग चल रहा हो या वैसे गुरु जी के दर्शनार्थ जाते हों तो सर्व प्रथम गुरु जी को दण्डवत्(लम्बा लेट कर) प्रणाम करना चाहिए बाद में सत ग्रन्थ साहिब व तसवीरें जैसे साहिब कबीर की मूर्ति – गरीबदास जी की व स्वामी राम देवानन्द जी व गुरु जी की मूर्ति को प्रणाम करें जिससे सिफर्ल भावना बनी रहेगी। मूर्ति पूजा नहीं करनी है। केवल प्रणाम करना पूजा में नहीं आता यह तो भक्त की श्रद्धा को बनाए रखने में सहयोग देता है। पूजा तो वक्त गुरु व नाम मन्त्रा की करनी है जो पार लगाएगा। कबीर साहेब कहते हैं
18. मांस भक्षण निषेध
संत रामपाल जी महाराज
मांस भक्षण व जीव हिंसा नहीं करनी है। यह महापाप होता है। अनजाने में हुई हिंसा का पाप नहीं लगता। बन्दी छोड़ कबीर साहिब कहते हैं :
‘‘इच्छा कर मारै नहीं, बिन इच्छा मर जाए। कहैं कबीर तास का, पाप नहीं लगाए।।‘‘
‘‘इच्छा कर मारै नहीं, बिन इच्छा मर जाए। कहैं कबीर तास का, पाप नहीं लगाए।।‘‘
19. गुरु द्रोही का सम्पर्क निषेध
संत रामपाल जी महाराज
यदि कोई भक्त गुरु जी से द्रोह(गुरु जी से विमुख हो जाता है) करता है वह महापाप का भागी हो जाता है। यदि किसी को मार्ग अच्छा न लगे तो अपना गुरु बदल सकता है। यदि वह पूर्व गुरु के साथ बैर व निन्दा करता है तो वह गुरु द्रोही कहलाता है। ऐसे व्यक्ति से भक्ति चर्चा करने में उपदेशी को दोष लगता है। उसकी भक्ति समाप्त हो जाती है। जैसे.... अर्थात् गुरु द्रोही के पास जाने वाला भक्ति रहित होकर नरक व लख चौरासी जूनियों में चला जाएगा।
20. जुआ निषेध
संत रामपाल जी महाराज
जुआ–तास कभी नहीं खेलना चाहिए। कबीर साहेब कहते हैं...
21. नाच–गान निषेध
संत रामपाल जी महाराज
किसी भी प्रकार के खुशी के अवसर पर नाचना व अश्लील गाने गाना भक्ति भाव के विरूद्ध है। जैसे एक समय एक विधवा बहन किसी खुशी के अवसर पर अपने रिश्तेदार के घर पर गई हुई थी। सभी खुशी के साथ नाच–गा रहे थे परंतु वह बहन एक तरफ बैठ कर प्रभु चिंतन में लगी हुई थी। फिर उनके रिश्तेदारों ने उससे पूछा कि आप ऐसे क्यों निराश बैठे हो? आप भी हमारे की तरह नाचों, गाओ और खुशी मनाओ। इस पर वह बहन कहती है कि किस की खुशी मनाऊँ? मुझ विावा का एक ही पुत्रा था वह भी भगवान को प्यारा हो चुका है। अब क्या खुशी है मेरे लिए? ठीक इसी प्रकार इस काल के लोक में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति है।
22. छूआछात निषेध
संत रामपाल जी महाराज
हम सब एक मलिक के बंदे हैं। भगवान ने किसी भी जाती या मज़हब के स्त्री पुरुषों में कोई अंतर नहीं किया तो हम क्यूँ करें?
23. दहेज लेना तथा देना निषेध
संत रामपाल जी महाराज
दहेज लेना व देना कुरीति है तथा मानव मात्र की अशांति का कारण है। उपदेशी के लिए मना है। जिसने अपने कलेजे की कोर पुत्री को दे दिया फिर बाकी क्या रहा?
विशेष: स्त्री तथा पुरूष दोनों ही परमात्मा प्राप्ति के अधिकारी हैं। स्त्रिायों को मासिक धर्म (menses) के दिनों में भी अपनी दैनिक पूजा, ज्योति लगाना आदि बन्द नहीं करना चाहिए। किसी के देहान्त या जन्म पर भी दैनिक पूजा कर्म बन्द नहीं करना है।
नोट :–– जो भक्तजन इन इक्कीस सुत्रीय आदेशों का पालन नहीं करेगा उसका नाम समाप्त हो जाएगा। यदि अनजाने में कोई गलती हो भी जाती है तो वह माफ हो जाती है और यदि जान बुझकर कोई गलती की है तो वह भक्त नाम रहित हो जाता है। इसका समाधान यही है कि गुरुदेव जी से क्षमा याचना करके दोबारा नाम उपदेश लेना होगा।
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जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज को पहचानो और नाम उपदेश लेकर अपना मानव जीवन सफल कर लो
नोट :–– जो भक्तजन इन इक्कीस सुत्रीय आदेशों का पालन नहीं करेगा उसका नाम समाप्त हो जाएगा। यदि अनजाने में कोई गलती हो भी जाती है तो वह माफ हो जाती है और यदि जान बुझकर कोई गलती की है तो वह भक्त नाम रहित हो जाता है। इसका समाधान यही है कि गुरुदेव जी से क्षमा याचना करके दोबारा नाम उपदेश लेना होगा।
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Jagatguru tatvdarshi bandi chhod satgutu sant rampalji maharaj ki jai. . 😇🙏🙏🙏🙏🙏🙏 parampita kabir parmeshwar ko jai 😊🙏🙏
ReplyDeleteSat saheb ji
ReplyDeleteBandi chhod sant guru rampal ji maharaj ki jay
ReplyDeleteबंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जो भगवान की जय हो।
ReplyDelete🙏 "Satlok chalo tv" Channal ko youtubepar jakar ke subscribe jarur kare।
क्या इन 21 आदेश के अलावा भी कोई अन्य आदेश है
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