Saturday, May 21, 2016

कबीर: इष्ट मिलै और मन मिलै मिलै सकल रस रीती

कबीर: इष्ट मिलै और मन मिलै मिलै सकल रस रीती कहै कबीर तहा जाइये, रह सन्तन कि प्रीती।

कबीर: एसि वाणी बोलीय, मनका आपा खोय।।
ओरन को शीतल करै , आपुही शीतल होये।

कबीर:आवत गारी एक है , उलट्ट होय अनेक।
कहै कबीर नहि उलटिय रहै एक की एक।

कबीर: गाली हि से उपजै कलह कस्त और मीच।
हार चलै सो साधु है , लागी मरे सो नीच।

सत साहेब बन्दिछोद सत्गुरुरामपालजी माहाराजकी जय हो।

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