कबीर: इष्ट मिलै और मन मिलै मिलै सकल रस रीती कहै कबीर तहा जाइये, रह सन्तन कि प्रीती।
कबीर: एसि वाणी बोलीय, मनका आपा खोय।।
ओरन को शीतल करै , आपुही शीतल होये।
कबीर:आवत गारी एक है , उलट्ट होय अनेक।
कहै कबीर नहि उलटिय रहै एक की एक।
कबीर: गाली हि से उपजै कलह कस्त और मीच।
हार चलै सो साधु है , लागी मरे सो नीच।
सत साहेब बन्दिछोद सत्गुरुरामपालजी माहाराजकी जय हो।
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