Wednesday, June 1, 2016

कबीर सुखिया ढुंढत मैं फिरू, सुखिया मिले न कोय।

कबीर सुखिया ढुंढत मैं फिरू, सुखिया मिले न कोय।
जाके आगे दुःख कहुँ, पहले उठे रोय।
अर्थ - कबीर साहब कहते है की दुनिया में सुखी आदमी जब ढुढंने के लिये गया, तो पूरी दुनिया में कोई भी सुखी आदमी नहीं मिला। कबीर साहब ने जिसको अपना दुःख बताया तो पता चला की वो पहले से ही दुःखी हो रहा है|
कबीर जाके आगे एक कहूँ, सो कहे इक्कीस ।
एक एक से दाझिया(जलना), कहाँ से काढू बीस।|
अर्थ - कबीर साहब कहते है की जिसे आप एक दुःख बताते है, वो आपको खुद के इक्कीस (21) दुःख बताना शुरू करते है। एक दुःख से आदमी जलता है, कबीर साहब के मन में एक प्रश्न तैयार होता है, की एक ही दुःख से मैं इतना परेशान हूँ तो उस व्यक्ति के और बीस दुःख मैं कैसे निकालू |

कबीर जा दिन ये जीव जनमिया (जन्म होना), कबहू न पाया सुख।
डाल डाल मैं फिरा, पातें पातें दुःख।।
अर्थ - जन्म से ही दुःख हमारे साथ है। कबीर साहब कहते है, वृक्ष की डाल डाल और पत्ती पत्ती मैं फिरा और देखा की दुनिया में दुःख हर जगह पर है।
कबीर सात दिप नौ खंड में, तीन लोक ब्रम्हाण्ड।
कहे कबीर सबको लगे, देह धरे का दंड(दुःख)।|
अर्थ - कबीर साहब ने पुरे विश्व में सात द्वीप,नौ खंड और तीनो ब्रम्हाण्ड में दुःख को देखा है। जिसने जिसने देह धारण किया है, उसे उसे दंड(दुःख) है।
कबीर, राजा दुःखी संन्यासी दुःखी, अमिर दुःखी रंक दुःखी ब प्रीती|
कह कबीर और सब दुःखीया एक संत सुखी मन जीती||
अर्थ -- कबीर जी कहते है कि राजा, संन्यासी, अमीर और गरीब सब दुःखी है, यहा तो वो ही सुखी है जिसने मन को जीत लिया |
कबीर, देह धरे का दंड है, सब काहू को होय।
ज्ञानी भुगते ज्ञान करे, अज्ञानी भुगते रोय।।
अर्थ - जिसने मनुष्य का देह धारण किया है, उन सभी लोगो को दुःख है।ज्ञानी व्यक्ति जिंदगी में दुःख है इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुये, उस दुःख को बर्दाश्त करता है, उसे तकलीफ कम होती है। अज्ञानी व्यक्ति दुःख होने के बाद रोते बैठता है और इस तरह दुःख से होनेवाली तकलीफ उसे ज्यादा परेशान करती है। कुछ लोग दुःख है इस वास्तव को स्वीकार करने के बजाय दुःख से छुटकारा पाने के लीये जंतर मंतर उपायो के पीछे पड जाते है।

कबीर, सुख में सुमिरण ना किया, दुःख में करते याद।
कहे कबीर दास की, कौन सुने फरियाद।।
अर्थ - सुख में मग्न होकर आदमी जिंदगी को नहीं समझता है और जब दुःख आता है तब जिंदगी को समझने की कोशिश करता है, लेकिन उस समय उसकी फरियाद कोई नहीं सुनता है।प्यास(दुःख) लगने के बाद कुँआ अगर खोदने की कोशिश की तो प्यास नहीं बुझती, लेकिन प्यास लगने के पहले ही अगर आदमी कुँआ खोदेगा तो जब उसे प्यास लगेगी तो उसकी प्यास तुरंत बुझेगी।
कबीर दुःख में सुमिरण सब करे, सुख में करे ना कोय।
जो सुख में सुमिरण करे, दुःख काहे को होय।।
अर्थ - जब आदमी सुख के दौर से गुजरता है, अगर उस समय उसने जिंदगी के सच्चाई को गहराई तक समझने की कोशिश की तो उसे दुःख भला क्यों होगा।

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