कबीर,राम नाम जाना नहीँ , ता मुख आन धरम ।
के मूसा के कातरा , खाता गया जनम ।।
कबीर, राम नाम जाना नही, पाला सकल कुटुम्ब ।
धन्धचही मेँ पचि मरा , बार भई नहिँ बुम्ब ।।
कबीर,राम नाम जाना नही, मेला मना बिसार ।
ते नर हाली बालदी , सदा पराये बार ।।
कबीर,इसऔसरि चेता नही, पशु ज्योँ पाली देह ।
राम नाम जाना नहीँ , अन्तपरि मुख खेह ।।
कबीर,कबिरा या संसार मेँ , घने मनुष्य मति हीन ।
राम नाम जाना नहीँ , आये टापा दीन ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, बात बिनूठी मूल ।
हरी सा ही तू बिसारिया, अन्तपरी मुख धुल ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, लागी मोटी खोरि ।
काया हांडी काठकी , ना वह चढैँ बहोरि ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, चूक्यो अबकी घात ।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहैगी लात ।।
कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस।
मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।
कबीर,हरिँ के नाम बिन , राजा रासभ(गधा)होय।
माटी लदै कुभंहार कै , घास ना नीरै कोय ।।
कबीर,हरि के नाम बिना, नारी कुकरी(कुत्ती)होय।
गली-2 भौँकत फिरै, टूक ना डालै कोय ।।
कबीर,पाँच पहर धंधै गया, तीन पहर रहा सोय ।
एक पहर हरि ना भज्योँ , मुक्त कहां ते होय ।।
कबीर,धूमधाम मेँ दिन गया, सोचत हो गई सांझ ।
एक घरि हरि ना भजा , जननी जनि भई बांझ ।।
कबीर,राति गवांई सोय के , घोस गवांया खाय ।
हीरा जन्म अमोल है , कौड़ी बदले जाय ।।
कबीर,चिँता तै हरिनाम की, और न चितवै दास ।
जा कछु चितवे नाम बिनु , सोइ काल का फाँस ।।
कबीर,जबही नाम ह्रदय धरयो , भयो पाप को नाश ।
मानौँ चिगांरी अग्नि की, परी पुराने घास ।।
कबीर,नाम जो रति एक है , पाप जो रति हजार ।
आध रति घट संचरै , जारि करै सब छार ।।
कबीर,राम नाम को सुमिरता , अधरे पतित अनेक ।
कबीर,राम नाम को सुमिरता, अधम तरे अपार ।
अजामेल गनिका सुपच , सदना सिवरी नार ।।
कबीर,स्वप/ मेँ बरराय के, जोरे कहैगा राम ।
वाके पग की पाँवड़ी , मेरे तन को चाम ।।
शेयर करेँ जन जन तक पहुँचाऐँ मालिँक का सनदेँश।।
http://www.jagatgururampalji.org/booksandpublications.php
*मालिक की और अन्य अमृतवाणी पढ़ने के लिए निचे दिए लिंक पर जाकर पढ़े*
http://m.facebook.com/groups/721807384582889
के मूसा के कातरा , खाता गया जनम ।।
कबीर, राम नाम जाना नही, पाला सकल कुटुम्ब ।
धन्धचही मेँ पचि मरा , बार भई नहिँ बुम्ब ।।
कबीर,राम नाम जाना नही, मेला मना बिसार ।
ते नर हाली बालदी , सदा पराये बार ।।
कबीर,इसऔसरि चेता नही, पशु ज्योँ पाली देह ।
राम नाम जाना नहीँ , अन्तपरि मुख खेह ।।
कबीर,कबिरा या संसार मेँ , घने मनुष्य मति हीन ।
राम नाम जाना नहीँ , आये टापा दीन ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, बात बिनूठी मूल ।
हरी सा ही तू बिसारिया, अन्तपरी मुख धुल ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, लागी मोटी खोरि ।
काया हांडी काठकी , ना वह चढैँ बहोरि ।।
कबीर,राम नाम जाना नहीँ, चूक्यो अबकी घात ।
माटी मिलन कुम्हार की, घनी सहैगी लात ।।
कबीर,कबीरा वा दिन यादकर, पग ऊपरि तल सीस।
मृतु मंडल मेँ आयके , बिसरि गया जगदीस ।।
कबीर,हरिँ के नाम बिन , राजा रासभ(गधा)होय।
माटी लदै कुभंहार कै , घास ना नीरै कोय ।।
कबीर,हरि के नाम बिना, नारी कुकरी(कुत्ती)होय।
गली-2 भौँकत फिरै, टूक ना डालै कोय ।।
कबीर,पाँच पहर धंधै गया, तीन पहर रहा सोय ।
एक पहर हरि ना भज्योँ , मुक्त कहां ते होय ।।
कबीर,धूमधाम मेँ दिन गया, सोचत हो गई सांझ ।
एक घरि हरि ना भजा , जननी जनि भई बांझ ।।
कबीर,राति गवांई सोय के , घोस गवांया खाय ।
हीरा जन्म अमोल है , कौड़ी बदले जाय ।।
कबीर,चिँता तै हरिनाम की, और न चितवै दास ।
जा कछु चितवे नाम बिनु , सोइ काल का फाँस ।।
कबीर,जबही नाम ह्रदय धरयो , भयो पाप को नाश ।
मानौँ चिगांरी अग्नि की, परी पुराने घास ।।
कबीर,नाम जो रति एक है , पाप जो रति हजार ।
आध रति घट संचरै , जारि करै सब छार ।।
कबीर,राम नाम को सुमिरता , अधरे पतित अनेक ।
कबीर,राम नाम को सुमिरता, अधम तरे अपार ।
अजामेल गनिका सुपच , सदना सिवरी नार ।।
कबीर,स्वप/ मेँ बरराय के, जोरे कहैगा राम ।
वाके पग की पाँवड़ी , मेरे तन को चाम ।।
शेयर करेँ जन जन तक पहुँचाऐँ मालिँक का सनदेँश।।
http://www.jagatgururampalji.org/booksandpublications.php
*मालिक की और अन्य अमृतवाणी पढ़ने के लिए निचे दिए लिंक पर जाकर पढ़े*
http://m.facebook.com/groups/721807384582889
No comments:
Post a Comment