Saturday, March 18, 2017

बन्दीछोड़ गरीबदास जी महाराज जी कृत सतग्रन्थ साहिब के पृष्ठ नं. 423 से 427 और 431 से 437 से सहाभार

सौ करोर दे यज्ञ आहूती, तौ जागै नहीं दुनिया सूती।
कर्म काण्ड उरले व्यवहारा, नाम लग्या सो गुरु हमारा।।
शंखौं गुणी मुनी महमंता, कोई न बूझै पदकी संथा।।
शंखौं मौनी मुद्रा धारी, पावत नांही अकल खुमारी।
शंखौं तपी जपी और जोगी, कोईन अमी महारस भोगी।।
गरीब, शालिग पूजि दुनिया मुई, प्रतिमा पानी लाग।
चेतन होय जड पूजहीं, फूटे जिनके भाग।।81।।
शंखौं नेमी नेम करांही, भक्ति भाव बिरलै उर आंही।
उस समर्थ का शरणा लैरे, चौदह भुवन कोटि जय जय रे।।

ऊपर की साखियो चौपाईयों में गरीबदास जी महाराज जीकह रहे हैं कि -

ज्ञानहीन प्राणी नहीं समझते कि सच्चे नाम व सच्चे (अविनाशी) भगवान (सत साहेब) के भजन व शरण बिना भावें करोड़ो यज्ञ करो । संखों विद्वान(गुणी) महंत व ऋषि अपने स्वभाव वश सच्चाई (सत्य साधना) को स्वीकार नहीं करते । अपने मानवश शास्त्र विधि रहित पूजा (साधना) करते हैं तथा नरक के भागी होते हैं । गीता जी के अध्याय 16 के श्लोक 23,24 में यही प्रमाण है।

संखों मौनी (मौन धारण करने वाले ) तथा पाँचों मुद्रा प्राप्ति (चांचरी-भूचरी, खैंचरी-अगोचरी, ऊनमनी) किए हुए भी काल जाल मे ही रहते हैं। शंखो जप (केवल ऊँ नाम का व ऊँ नमो भागवते वासुदेवाय नमः, ऊँ नमो शिवाय, राधा स्वामी नाम व पाँचों नाम-ओंकार, ज्योति निंरजन, रंरकार, सोहं, सतनाम जाप या अन्य नाम जो पवित्र गीता जी व पवित्र वेदों तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की अमृतवाणी व अन्य प्रभु प्राप्त संतों की अमृतवाणी से भिन्न हैं) करने वाले तथा तपस्वी व योगी भी पूर्ण मुक्त नहीं हैं । पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं है। नाना प्रकार के भेष (वस्त्र भिन्न गैरुवे वस्त्र पहनना, जटा रखना या पत्थर पूजने वाले, मूंढ मुंडवाना, नाना पंथो के अनुयायी बन जाना) भी व आचार-विचार कर्मकाण्ड करने वाले, शंखो दानी दान करने वाले व गंगा-किदारनाथ गया आदि अड़सठ तीर्थ या चारों धामो की यात्रा करने वाले भी परमात्मा का तत्वज्ञान न होने से पूर्ण मुक्त नहीं हो सकते।

श्री गीता जी के अध्याय 11 के श्लोक 48 में स्पष्ट कहा है कि अर्जुन मेरे इस वास्तविक ब्रह्म (काल-विराट) रूप को कोई न तो पहले देख पाया न ही आगे देख सकेगा। चूं कि मेरा यह रूप न तो यज्ञों से, न ही तप से, न ही दान से , न ही जप से, न ही वेद पढ़ने से, अर्थात् वेदों में वर्णित विधि से न ही क्रियाओं से देखा जा सकता अर्थात् परमात्मा { जो यहाँ तीन लोक व इक्कीस ब्रह्मण्ड का भगवान (काल) है } की प्राप्ति किसी भी साधना से नहीं हो सकती। पवित्र गीता जी मे वर्णित पूजा (उपासना) विधि से सिद्धियाँ प्राप्ति, चार मुक्ति (जो स्वर्ग मे रहने की अवधि भिन्न हो ती है तथा कुछ समय इष्ट देव के पास उसके लोक में रह कर फिर चौरासी लाख जूनियो में भ्रमणा-भटकणा बनी रहेगी)। वह काल (ब्रह्म) भजन के आधार पर कुछ अधिक समय स्वर्ग में रख कर फिर नरक मे भेज देता है। क्योंकि पवित्र गीता जी में कहा है कि जैसे(जैसे का भाव पुण्य भी तथा पाप भी दोनों भोग्य हैं) कर्म प्राणी करेगा वे उसे भोगने पड़ेंगे । फिर कहते हैं कि कल्प के अंत मे सर्व (ब्रह्मलोक पर्यान्त) लोकों के प्राणी नष्ट हो जाएंगे । उस समय स्वर्ग व नरक समाप्त हो जाएंगे तथा कहा है कि फिर सृष्टि रचूंगा। वे प्राणी फिर कर्माधार पर जन्मते मरते रहेंगे। फिर पूर्ण मुक्ति कहाँ ?

श्री गीता जी के अध्याय 9 का श्लोक 7 में प्रमाण है। इसमें साफ लिखा है कि प्रलय के समय सर्व भूत प्राणी नष्ट हो जाएंगे। फिर अर्जुन कहाँ बचेगा ? इसलिए गरीबदास जी महाराज कहते है कि उस पूर्ण परमात्मा (समर्थ) पूर्ण ब्रह्म (कबीर साहेब) की शरण मे जाओ जिसको प्राप्त कर फिर सदा के लिए जन्म-मरण मिट जाएगा। पूर्ण मुक्त हो जाओगे । इसी का प्रमाण श्री गीता जी देती है। अध्याय 18 श्लोक 46 , 62 , 66 और अध्याय 8 के श्लोक 8, 9, 10 और अध्याय 2 का श्लोक 17 मे प्रमाण है ।

साभार : बंदीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी
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सत साहेब

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