Friday, March 3, 2017

साहेँब कबीर जी आजा, आत्मा तोहेँ पुकारती

साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ।टेक।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की,

22 लाख वर्ष तप किन्ना ,
एक तपस्वी करण,
कहाया तप सेँ राज
राज मदमान नरक ठिकाना पाया,
सिर धुन-2 कर पछताया ,
या थी बाजी हार की ।।

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ,

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,

योग विधि से सुखदेव रीषि,
तीनोँ लोक उड़ फिर आवेँ ,
उड़ा फिरे पक्षी की तरिहया
नहीँ मोक्ष द्वारा पावेँ ,
हठ योगी भटक-भटका खावेँ,
ना पावे युत्ति शब्द सार की ,

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,

पाँच वक्त निमाज गुजारेँ ,
करे शाम को खूना ,
बिना बँदगी बोक बनेगेँ रहेँ जुनम जून्ना ,
खर देही बना अपला तुन्ना,
मिट्टी ढोहेँ कुम्हार की ।।

तेरे हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,

वेँद पुराण शास्त्र पढ़ते ,
कथा करेँ चित लाके
गीता जी सार सुणावेँ ,
मिठ्ठी बात बणाकेँ ,
महाभारत रामायण समझावेँ ,
कथा करेँ उस काल करतार की ,

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,

तीर्थ व्रत साधना करतेँ ,
आशा चारोँ धाम की ,
कोटि यज्ञ अश्वमेँघ करतेँ ,
ना जाणेँ महिमा सतनाम की,
नाम बिना बेँकाम की ,
ये सम्पति संसार की ।।

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,

राबिया रंगी हरि रंग मेँ,
कैसे जीव दया दर्शायी ,
केश उखाड़े वस्त्र उतारेँ ,
एक कुतिया की प्यास भुझाई ,
मंजिल तीन मक्का ले आई,
वो थी प्यासी दिदार की ।।

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की

राबिया सेँ बही बनसुरी ,
फिर गँणका ख्याल बणाया,
गँणका से फिर बही कमाली,
तेरा ही शरणा पाया ,
शरण आप की आन्नद पाया,
थी प्यासी दीदार की ।

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,

शेखफरीद ने द्वादस वर्ष,
तप किया अतिभारी ,
रक्त माँस और चाम सुखाया,
ना हुई फिर भी अलख सेँ यारी6!!

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,

गोरखनाथ रिधि सिध्दी मेँ,
फुला नही समावेँ ,
मुर्देँ तक को जिवित करके ,
काल भगति दरढ़ावेँ ,
रामपाल जी सतगुरु शरणा पावेँ,
डोरी मकरतार की ,

तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु, सतलोक द्वार की ,।।

बन्दीँ छोँड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।
 सत साहेब |

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