साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ।टेक।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की,
22 लाख वर्ष तप किन्ना ,
एक तपस्वी करण,
कहाया तप सेँ राज
राज मदमान नरक ठिकाना पाया,
सिर धुन-2 कर पछताया ,
या थी बाजी हार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
योग विधि से सुखदेव रीषि,
तीनोँ लोक उड़ फिर आवेँ ,
उड़ा फिरे पक्षी की तरिहया
नहीँ मोक्ष द्वारा पावेँ ,
हठ योगी भटक-भटका खावेँ,
ना पावे युत्ति शब्द सार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
पाँच वक्त निमाज गुजारेँ ,
करे शाम को खूना ,
बिना बँदगी बोक बनेगेँ रहेँ जुनम जून्ना ,
खर देही बना अपला तुन्ना,
मिट्टी ढोहेँ कुम्हार की ।।
तेरे हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
वेँद पुराण शास्त्र पढ़ते ,
कथा करेँ चित लाके
गीता जी सार सुणावेँ ,
मिठ्ठी बात बणाकेँ ,
महाभारत रामायण समझावेँ ,
कथा करेँ उस काल करतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
तीर्थ व्रत साधना करतेँ ,
आशा चारोँ धाम की ,
कोटि यज्ञ अश्वमेँघ करतेँ ,
ना जाणेँ महिमा सतनाम की,
नाम बिना बेँकाम की ,
ये सम्पति संसार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
राबिया रंगी हरि रंग मेँ,
कैसे जीव दया दर्शायी ,
केश उखाड़े वस्त्र उतारेँ ,
एक कुतिया की प्यास भुझाई ,
मंजिल तीन मक्का ले आई,
वो थी प्यासी दिदार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की
राबिया सेँ बही बनसुरी ,
फिर गँणका ख्याल बणाया,
गँणका से फिर बही कमाली,
तेरा ही शरणा पाया ,
शरण आप की आन्नद पाया,
थी प्यासी दीदार की ।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
शेखफरीद ने द्वादस वर्ष,
तप किया अतिभारी ,
रक्त माँस और चाम सुखाया,
ना हुई फिर भी अलख सेँ यारी6!!
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
गोरखनाथ रिधि सिध्दी मेँ,
फुला नही समावेँ ,
मुर्देँ तक को जिवित करके ,
काल भगति दरढ़ावेँ ,
रामपाल जी सतगुरु शरणा पावेँ,
डोरी मकरतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु, सतलोक द्वार की ,।।
बन्दीँ छोँड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।
सत साहेब |
आत्मा तोहेँ पुकारती ।टेक।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की,
22 लाख वर्ष तप किन्ना ,
एक तपस्वी करण,
कहाया तप सेँ राज
राज मदमान नरक ठिकाना पाया,
सिर धुन-2 कर पछताया ,
या थी बाजी हार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
साहेँब कबीर जी आजा,
आत्मा तोहेँ पुकारती ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की,
योग विधि से सुखदेव रीषि,
तीनोँ लोक उड़ फिर आवेँ ,
उड़ा फिरे पक्षी की तरिहया
नहीँ मोक्ष द्वारा पावेँ ,
हठ योगी भटक-भटका खावेँ,
ना पावे युत्ति शब्द सार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
पाँच वक्त निमाज गुजारेँ ,
करे शाम को खूना ,
बिना बँदगी बोक बनेगेँ रहेँ जुनम जून्ना ,
खर देही बना अपला तुन्ना,
मिट्टी ढोहेँ कुम्हार की ।।
तेरे हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
वेँद पुराण शास्त्र पढ़ते ,
कथा करेँ चित लाके
गीता जी सार सुणावेँ ,
मिठ्ठी बात बणाकेँ ,
महाभारत रामायण समझावेँ ,
कथा करेँ उस काल करतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
तीर्थ व्रत साधना करतेँ ,
आशा चारोँ धाम की ,
कोटि यज्ञ अश्वमेँघ करतेँ ,
ना जाणेँ महिमा सतनाम की,
नाम बिना बेँकाम की ,
ये सम्पति संसार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु ,
सतलोक द्वार की ,
राबिया रंगी हरि रंग मेँ,
कैसे जीव दया दर्शायी ,
केश उखाड़े वस्त्र उतारेँ ,
एक कुतिया की प्यास भुझाई ,
मंजिल तीन मक्का ले आई,
वो थी प्यासी दिदार की ।।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की
राबिया सेँ बही बनसुरी ,
फिर गँणका ख्याल बणाया,
गँणका से फिर बही कमाली,
तेरा ही शरणा पाया ,
शरण आप की आन्नद पाया,
थी प्यासी दीदार की ।
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
शेखफरीद ने द्वादस वर्ष,
तप किया अतिभारी ,
रक्त माँस और चाम सुखाया,
ना हुई फिर भी अलख सेँ यारी6!!
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु,
सतलोक द्वार की ,
गोरखनाथ रिधि सिध्दी मेँ,
फुला नही समावेँ ,
मुर्देँ तक को जिवित करके ,
काल भगति दरढ़ावेँ ,
रामपाल जी सतगुरु शरणा पावेँ,
डोरी मकरतार की ,
तेरेँ हाथ मेँ चाँबी सतगुरु, सतलोक द्वार की ,।।
बन्दीँ छोँड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय ।
सत साहेब |
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