Wednesday, April 12, 2017

मनमे उठे कु भाव को ख़त्म कैसे_करे???

एक भक्त ने सतगुरु जी से पूछा कि : “गुरुवर, मै इतना प्रभुनाम लेता हूँ, धर्म चर्चा करता हूँ, चिंतन-मनन करता हूँ, सभी नित्य नियम भी करता हु। फिर भी समय-समय पर मेरे मन में कुभाव क्यों उठते है?”



सतगुरु देव जी साधक को समझाते हुए बोले :

“एक आदमी ने एक कुत्ता पाल रखा था। वह रात-दिन उसी को लेकर मग्न रहता, कभी उसे गोद में लेता तो कभी उसके मुँह में मुँह लगाकर बैठा रहता था। उसके इस मूर्खतापूर्ण आचरण को देख एक दिन किसी जानकार व्यक्ति ने उसे यह समझाकर सावधान किया कि ‘कुत्ते का इतना लाड-दुलार नहीं करना चाहिए, आखिर जानवर की ही जात ठहरी, न जाने किस दिन लाड करते समय काट खाए।’

इस बात ने उस आदमी के मन में घर कर लिया। उसने उसी समय कुत्ते को गोद में से फेंक दिया और मन में प्रतिज्ञा कर ली कि अब कभी कुत्ते को गोद में नहीं लेगा । पर भला कुत्ता यह कैसे समझे ! वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद पर चढ़ने लगता। आखिर मालिक को कुछ दिनोंतक उसे पीट-पीट कर भगाना पड़ा तब कंही उसकी यह आदत छूटी।

गुरु जी ने कहा- तुम लोग भी वास्तव मे ऐसे ही हो । जिस कुत्ते(कुभाव,बिकार) को तुम इतने दीर्घ – काल तक छाती से लगाते आये हो उस से अब अगर तुम छुटकारा पाना भी चाहो तो वह भला तुन्हें इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकता है ?  अब से तुम उसका लाड करना छोड़ दो और अगर वह तुम्हारी गोद में चढने आए तो उसकी अच्छी तरह से मरम्मत करो। ऐसा करने से कुछ ही दिनों के अन्दर तुम उससे पूरी तरह छुटकारा पा जाओगे।”

बिशेष:- मित्र अगर कभी भी आपके मनमे कोई भी कुभाव,बिकार उत्पन्न हो जाये तो आप उसको तत्वज्ञान रूपी तलवार से डराओ,धमकाओ,अच्छी तरह से मरमत करो।  फिर देखना कुछ ही दिनो में वही शैतान रूपी मन आपका बहोत अच्छी मित्र बन जायेगा और सदैब आपको सही रास्ता,सकारात्मक बिचार,और अच्छी ब्याहवार में परिवर्तन कर देगा । फिर परमात्मा की चिंतन,भक्ति करने में सहयोग करेंगे।

अगर आप अभी से ही खुद को मिटी से स्वर्ण में परिवर्तन करना चाहते हे तो ...आप इस अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा का ज्ञान गहराई से अवश्य ग्रहण करे। !!सत् साहेब!!

आपका छोटा भाई "कृष्णा दास"  copy

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