Thursday, August 3, 2017

सारी उम्र सजाने सवारने में लगाते हो अंत में ये देहि राख बन जाएगी, और आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा,

जिस देहि को आप सारी उम्र सजाने सवारने में लगाते हो अंत में ये देहि राख बन जाएगी, और आपके हाथ कुछ नहीं लगेगा,
कबीर साहेब कहते हैं”

ये तन काचा कुंभ था, तू लिए फीरे था साथ,
ठुबका लाग्या फुट गया, तेरे कुछ न आया हाथ”

इस कच्चे घड़े जैसे शरीर पर अभिमान न करके इससे हमे भगति करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए.. जिसे आप गहनों और मोतियों से सजाने सवारने में लगे रहते हो…अंत में पता चला कि गहने घर के लूट ले गए और शरीर राख बनते ही कुछ हवा ले गई और कुछ गंगा का नीर ले गया..जो काम इस देहि से लेना था हमने वो तो कभी लिया नहीं

“गहने मोति तन की शोभा ये तन तो काचो भाँडो,
बिना भजन फिर कुतिया बनोगी राम भजो न रांडो”


ये देह परमात्मा ने भगती और मोक्ष के लिए दी है ।अन्यथा हमसे अच्छा जीवन तो जानवर भी जी रहे हैं, पशु पक्षी भी जी रहे हैं.फिर मालिक को मानुष शरीर देने की क्या जरूरत पड़ी..
.कबीर साहेब-

पतिव्रता मैली भली, काली कुचल करूप..,
पतिव्रता के मुख पर बरहों कोटि स्वरूप

“पतिव्रता जमी पर जियूं, जियूं धर है पाँव,
समरथ झाड़ू दैत हैं, न कांटा लग जाव

“परमात्मा कहते हैं भक्ति करने वाली नारी चाहे गोरी हो चाहे काली, सूंदर हो अथवा नहीं.. परमात्मा को भगती प्यारी है फिर चाहे वो कोई भी करता हो कुरूप स्त्री अगर भक्ति करती है तो वो सुंदर स्त्री से कई गुना सूंदर है परमात्मा की नजरों में,क्या फायदा अगर ये देह सुन्दर है पर इससे भक्ति नहीं बनी/ किया  तो अगला जनम कुतिया का होगा, फिर कहाँ जाएगी वो सुंदरता..

“बीबी परदे रहे थी, ड्योडी लगे थी बाहर..,
अब गात उघाड़े फिरती है वो बन कुतिया बाजार”

“वो परदे की सुंदरी, सुनो संदेसा मोर,
अब गात उघाड़े फिरती है वो करे सरायों शोर”

“नक बेसर नक पर बनी, पहने थी हार हमेल,
सुंदरी से कुतिया बनी सुण साहेब के खेल”

इस लिए सुन्दर देह का अभिमान न करके और इस को सजाने सवारने में समय बर्बाद ना करके, इस देहि से अपनी भक्ति रुपी कमाई करके सतलोक, सचखण्ड उस अमर धाम चलो जहाँ से फिर मुड़के इस गंदे लोक में न आना पड़े..

No comments:

Post a Comment