Monday, December 28, 2015

गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर !

गरीब, हुक्का हरदम पिवते, लाल मिलावैं धूर !
इसमें संशय है नहीं, जन्म पिछले सूर(pig) ।।1।।
गरीब, सो नारी जारी करै, सुरा(alcohol) पान सौ बार !
एक चिलम हुक्का भरै, डुबै काली धार ।।2।।
गरीब, सूर गऊ कुं खात है, भक्ति बिहुनें राड !
भांग तम्बाखू खा गए, सो चाबत हैं हाड ।।3।।
गरीब, भांग तम्बाखू पीव हीं, सुरा पान सैं हेत !
गौस्त मट्टी खाय कर, जंगली बनें प्रेत ।।4।।
गरीब, पान तम्बाखू चाब हीं, नास नाक में देत !
सो तो इरानै गए, ज्यूंभड़भूजे का रेत ।।5।।
गरीब, भांग तम्बाखु पीव हीं, गोस्त गला कबाब !
मोर मृग कूं भखत हैं, देंगे कहाँ जवाब। ।।6।।
जगतगुरु तत्वदर्शी संत श्री रामपाल जी महाराज जी की जय हो
गरीब, मैं मैं करै सो मारिये, तू तुं करै सो छूट वे।इस मार में होशियार, गधा बने कै ऊँट वे।।
हूं हूं करै सो गधा होई, मैं मैं करै बोक वे।बंदा बिसारे बंदगी, तो श्वान है सब लोक वे।।

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