मातपिता मिलजाएगे लखचौरासिमाही
सत्गुरुदेव और बन्दगीफिर मिल्तेकोए नाही।सत साहेब ।
माता पिता तेरा कुटुम्ब कबिला, ये कोइ दिन का मेला रे ।
यहिं मिलाया यहिं बिछुड्जा, जाएगा हंस अकेला रे ।।
झर-झर गिरे अंगार। आग लगी आकाश मे
सत्गुरुदेव और बन्दगीफिर मिल्तेकोए नाही।सत साहेब ।
माता पिता तेरा कुटुम्ब कबिला, ये कोइ दिन का मेला रे ।
यहिं मिलाया यहिं बिछुड्जा, जाएगा हंस अकेला रे ।।
झर-झर गिरे अंगार। आग लगी आकाश मे
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
अर्थ :
यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर साहिब का मन उदासी से भर जाता है. —
कबीर परमेश्वर जी वचन
पत्थर मुख बोले नहीँ ,चाहे मारो सिर कूट ,!
सत आत्मा जानले,और बात सब झूठ !!
अर्थ -पत्थर कभी नहीँ बोलेगा ,चाहे उसे कितना भी मारो !पत्थर की प्रतिमा ,मूर्ति का चाहे पूजन करो या अपमान करो ,उसे कोई फर्क नहीँ पड़ता !अत:मनुष्य के ह्रदय में बसी सत्य आत्मा को पहचान लो और उसकी भक्ति करो ,बाकी सब मिथ्यामिथ्या बुद्धी
सत् साहेब जी
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस
दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥
व्याख्या: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त
करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का
अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये,
गुरुपद - पोत में न लगे।
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा
जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥
व्याख्या: व्यवहार में भी साधु को गुरु की
आज्ञानुसार ही आना - जाना चाहिए | सद् गुरु कहते
हैं कि संत वही है जो जन्म - मरण से पार होने के
लिए साधना करता है |
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥३॥
व्याख्या: गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त
जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु
गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥४॥
व्याख्या: कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा
है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म - जन्मान्तरो
की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते
हैं।
जन्म दूसरो ने दिया
नाम दूसरो ने रखा
शिक्षा दूसरो ने दी
रोटी भी दूसरो ने दिया
शमशान भी दूसरे ले जाऐँगे,
घमँड किस बात पर करते हैँ लोग.!
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
अर्थ :
यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर साहिब का मन उदासी से भर जाता है. —
कबीर परमेश्वर जी वचन
पत्थर मुख बोले नहीँ ,चाहे मारो सिर कूट ,!
सत आत्मा जानले,और बात सब झूठ !!
अर्थ -पत्थर कभी नहीँ बोलेगा ,चाहे उसे कितना भी मारो !पत्थर की प्रतिमा ,मूर्ति का चाहे पूजन करो या अपमान करो ,उसे कोई फर्क नहीँ पड़ता !अत:मनुष्य के ह्रदय में बसी सत्य आत्मा को पहचान लो और उसकी भक्ति करो ,बाकी सब मिथ्यामिथ्या बुद्धी
सत् साहेब जी
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस
दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥१॥
व्याख्या: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त
करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का
अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये,
गुरुपद - पोत में न लगे।
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा
जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥२॥
व्याख्या: व्यवहार में भी साधु को गुरु की
आज्ञानुसार ही आना - जाना चाहिए | सद् गुरु कहते
हैं कि संत वही है जो जन्म - मरण से पार होने के
लिए साधना करता है |
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥३॥
व्याख्या: गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त
जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु
गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥४॥
व्याख्या: कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा
है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म - जन्मान्तरो
की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते
हैं।
जन्म दूसरो ने दिया
नाम दूसरो ने रखा
शिक्षा दूसरो ने दी
रोटी भी दूसरो ने दिया
शमशान भी दूसरे ले जाऐँगे,
घमँड किस बात पर करते हैँ लोग.!
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