Saturday, April 30, 2016

यो सौदा फिर नाहीं संतों,

यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||टेक||
लोहे के सा ताव जात है,
काया देह सिराहीं|
यो दम टूटै पिण्डा फूटै,
हो लेखा दरगह माहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
तीन लोक और भवन चतुर्दश, यो जग सौदे आई |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
दूने तीने किये चौगने,
किनहूं मूल गंवाई |
उस दरगह में मार पड़ेगी,
जम पकरैंगें बाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
वा दिन की मोहि डरनी लागै,
लज्या रहै के नाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
नर नारायण देह पाय कर,
फिर चौरासी जाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
जा सतगुरु की मैं बलिहारी,
जामन मरण मिटाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
कुल परिवार सकल कबीला,
मसलति एक ठहराई |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
बांधि पिंजरी आगै धरिया,
मरहट में ले जाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
अग्नि लगा दिया जदि लंबा,
फूकि दिया उस ठाहीं |
वेद बांधि कर पंडित आये,
पीछै गरुड़ पढ़ाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
नर सेती फिर पशुवा कीजै,
गधा बैल बनाई
छप्पन भोग कहाँ मन बौरे,
कुरडी चरने जाई |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
प्रेत शिला पर जाय बिराजे,
पितरों पिंड भराहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
बहुरि शराध खान कूं आये,
काग भये कलि माहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
जो सतगुरु की संगत करते,
सकल कर्म कट जाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
अमरपुरी में आसन होते,
ना जहाँ धूप न छाहीं |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
सुरतिनिरति मन पवन पियाना,
शब्दें शब्द समाई |
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||
गरीबदास गलतान महल में,
मिले कबीर गोसांई ,
यो सौदा फिर नाहीं संतों,
यो सौदा फिर नाहीं ||

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