Saturday, April 30, 2016

धर्मदास यह कठिन कहानी | गुरुमत ते कोई बिरले जानी ||

कबीर साहब बोले - सत्यज्ञान बल से सदगुरु काल पर विजय प्राप्त कर अपनी शरण में आये हुये हँस जीव को सत्यलोक ले जाते हैं । जहाँ पर हँस जीव मनुष्य सत्यपुरुष के दर्शन पाता है । और अति आनन्द को प्राप्त करता है । फ़िर वह वहाँ से लौटकर कभी भी इस कष्टदायक दुखदायी संसार में वापस नहीं आता । यानी उसका मोक्ष हो जाता है ।

हे धर्मदास ! मेरे वचन उपदेश को भली प्रकार से गृहण करो । जिज्ञासु इंसान को सत्यलोक जाने के लिये सत्य के मार्ग पर ही चलना चाहिये । जैसे शूरवीर योद्धा एक बार युद्ध के मैदान में घुसकर पीछे मुढकर नहीं देखता । बल्कि निर्भय होकर आगे बढ जाता है । ठीक वैसे ही कल्याण की इच्छा रखने वाले जिज्ञासु साधक को भी सत्य की राह पर चलने के बाद पीछे नहीं हटना चाहिये ।

अपने पति के साथ सती होने वाली नारी और युद्ध भूमि में सिर कटाने वाले वीर के महान आदर्श को देख समझकर जिस प्रकार मनुष्य दया संतोष धैर्य क्षमा वैराग विवेक आदि सदगुणों को गृहण कर अपने जीवन में आगे बढते हैं । उसी अनुसार दृण संकल्प के साथ सत्य सन्तमत स्वीकार करके जीवन की राह में आगे बढना चाहिये ।

जीवित रहते हुये भी मृतक भाव अर्थात मान अपमान हानि लाभ मोह माया से रहित होकर सत्यगुरु के बताये सत्यज्ञान से इस घोर काल कष्ट पीङा का निवारण करना चाहिये ।

हे धर्मदास ! लाखो करोंङो में कोई एक विरला मनुष्य ही ऐसा होता है । जो सती शूरवीर और संत के बताये हुये उदाहरण के अनुसार आचरण करता है । और तब उसे परमात्मा के दर्शन साक्षात्कार प्राप्त होता है ।

तब धर्मदास बोले - हे साहिब ! मुझे मृतक भाव क्या होता है ? इसे पूर्ण रूप से स्पष्ट बताने की कृपा करें ।

कबीर साहब बोले - हे धर्मदास ! जीवित रहते हुये जीवन में मृतक दशा की कहानी बहुत ही कठिन है । इस सदगुरु के सत्यज्ञान से कोई बिरला ही जान सकता है । सदगुरु के उपदेश से ही यह जाना जाता है ।

धर्मदास यह कठिन कहानी । गुरुमत ते कोई बिरले जानी ।

जीवन में मृतक भाव को प्राप्त हुआ सच्चा मनुष्य अपने परम लक्ष्य मोक्ष को ही खोजता है । वह सदगुरु के शब्द विचार को अच्छी तरह से प्राप्त करके उनके द्वारा बताये गये सत्य मार्ग का अनुसरण करता है ।

उदाहरण स्वरूप जैसे भृंगी  ( पंख वाला चींटा जो दीवाल खिङकी आदि पर मिट्टी का घर बनाता है । ) किसी मामूली से कीट के पास जाकर उसे अपना तेज शब्द घूँ घूँ घूँ सुनाता है ।

तव वह कीट उसके गुरु ज्ञान रूपी शब्द उपदेश को गृहण करता है । गुंजार करता हुआ भृंगी अपने ही तेज शब्द स्वर की गुंजार सुना सुनाकर कीट को प्रथ्वी पर डाल देता है । और जो कीट उस भृंगी शब्द को धारण करे । तब भृंगी उसे अपने घर ले जाता है । तथा गुंजार गुंजार कर उसे अपना स्वाति शब्द सुनाकर उसके शरीर को अपने समान बना लेता है । भृंगी के महान शब्द रूपी स्वर गुंजार को यदि कीट अच्छी तरह से स्वीकार कर ले । तो वह मामूली कीट से भृंगी के समान शक्तिशाली हो जाता है । फ़िर दोनों में कोई अंतर नहीं रहता । समान हो जाता है ।

असंख्य झींगुर कीटों में से कोई कोई  बिरला कीट ही उपयुक्त और अनुकूल सुख प्रदान कराने वाला होता है । जो भृंगी के प्रथम शब्द गुंजार को ह्रदय से स्वीकारता है । अन्यथा कोई दूसरे और तीसरे शब्द को ही शब्द स्वर मानकर स्वीकार कर लेता है । तन मन से रहित भृंगी के उस महान शब्द रूपी गुंजार को स्वीकार करने में ही झींगुर कीट अपना भला मानते हैं ।

भृंगी के शब्द स्वर गुंजार को जो कीट स्वीकार नहीं करता । तो फ़िर वह कीट योनि के आश्रय में ही पङा रहता है । यानी वह मामूली कीट से शक्तिशाली भृंगी नहीं बन सकता ।

हे धर्मदास ! यह मामूली कीट का भृंगी में बदलने का अदभुत रहस्य है । जो कि महान शिक्षा प्रदान करने वाला है । इसी प्रकार जङ बुद्धि शिष्य जो सदगुरु के उपदेश को ह्रदय से स्वीकार करके गृहण करता है । उससे वह विषय विकारों से मुक्त होकर अज्ञान रूपी बंधनों से मुक्त होकर कल्याणदायी मोक्ष को प्राप्त होता है ।

हे धर्मदास ! भृंगी भाव का महत्व और श्रेष्ठता को जानों । भृंगी की तरह यदि कोई मनुष्य निश्चय पूर्ण बुद्धि से गुरु के उपदेश को स्वीकार करे । तो गुरु उसे अपने समान ही बना लेते हैं । जिसके ह्रदय में गुरु के अलावा दूसरा कोई भाव नहीं होता । और वह सदगुरु को समर्पित होता है । वह मोक्ष को प्राप्त होता है । इस तरह वह नीच योनि में बसने वाले कौवे से बदलकर उत्तम योनि को प्राप्त हो हँस कहलाता है ।

Jai Ho Bandichhor sadguru Rampal ji maharaj ki......

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