अति आधीन दिन हो प्राणी,
ताते कहिए ये अकथ कहानी''
उच्चे पात्र जल ना जाई,
ताते नीचा हुजे भाई.....!!
ब्रम्हा विष्णु शिव है, तीन लोक प्रधान !
अष्टगी इनकी माता है, और पिता काल भगवान !!
एक लाख को काल, नित खावै सीना ताण !
ब्र्म्हा बनावै, विष्णु पालै, शिव कर दे कल्याण !!
अर्जुन डर के पूछता है, यह कौन रूप भगवान !
कहै निरंजन मै काल हुँ, सबको आया खान !!
ब्रम्हा नाम इसी का है, वैद करै गुणगान !
जन्म मरण चौरासी, यह इसका सविधान !!
चार राम की भक्ति मे, लग रहा संसार !
पाँचवें राम का ज्ञान नही, जो पार उतारणहार !!
ब्रम्हा विष्णु शिव तीन गुण है, दूसरा प्रकृति का जाल !
लाख जीव नित भक्षण करें, राम तीसरा काल !!
अक्षर पुरुष है राम चौथा, जैसे चन्द्रमा जान !
पाँचवाँ राम कबीर साहेब है, जैसे उदय हुआ भान !!
रामदेवानन्द गुरु जी, कर गए नज़र निहाल !
सतनाम का दिया खजाना, बरतै सतगुरू संत रामपाल जी महाराज !!
!! जय हो बंदी छोड़ की !!
!! सत साहेब जी !!
आजा बन्दे शरण राम की,फिर पाछे पछतावेगा
बालू की भीत पवन का खम्भा,कब लग खैर मनावेगा
आ जम तेरे घट ने घेरे,तू राम कहन ना पावेगा
काल बली तेरे सिर पे बैठा,भुजा पकङ ले जावेगा
मात पिता तेरा कुटुंब कबीला,सारा ही खङा लखावेगा
धरम राय तेरा लेखा लेगा,वहाॅ क्या बात बनावेगा
लाल खंम्भ से बांधा जावे,बिन सतगुरू कौन छुटावेगा
दिया लिया तेरे संग चलेगा,धरा ढका रह जावेगा
कहत कबीर सुनो भई साधो,करनी के फल पावेगा ।।
सत साहेब
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