Monday, March 7, 2016

सत्संग

मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ???
एक बार एक युवक अपने गुरूदेव के पास आया और कहने लगा, 
" गुरू महाराज!  मैने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है
मै विवेकशील हुं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांती समझता हूं,किंतु फिर भी मेरे माता पीता मुझे निरंतर की सलाह देते रहते हैं| जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं,तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है? "
गुरूदेव ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई और पास ही जमीन पर गडे एक खूंटे पर मार दि | युवक अनमने भाव से चला गया | अगले दिन वह फिर गुरूदेव के पास आया और बोला," मैने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु आपने उत्तर नहीं दिया | क्या आज आप उत्तर देंगे? "गुरूदेव ने पुनः खूंटे के ऊपर हथौडी मार दि | किंतु बोले कुछ नहीं | युवक ने सोचा कि संत पुरूष हैं, शायद आज भी मौन में है
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वह तिसरे दिन फिर आया और अपना पश्र दोहराय | गुरूदेव ने फिर से खूंटे पर हथौडी चलाई |अब युवक परेशान होकर बोला " आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? मैं तीन दिन से आपसे पश्र पूछ रहा हुं|"
तब गुरूदेव बोले "मै तो तुम्हें
रोजजवाब दे रहा हुं | मैं इस खूंटे पर हर दीन हथौडी मारकर जमीन में इसकी पकड को मजबूत कर रहा हुं | यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं व्दारा
खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोडी सी हलचल होने पर यह निकाल जाएगा |"
यही काम सत्संग हमारे लिए करता है| वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हजारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें | युवक को गुरूदेव ने सही दिशा-बोध करा दिया | सत्संग हररोज नित्यपती हदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है,इसलिए सत्संग हमारी जीवन चयाॅ का अनिवार्य अंग होना चाहिए |

सत साहेब

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